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बीएलओ को धमकाना बर्दाश्त नहीं, सुप्रीम कोर्ट का बड़ा आदेश

सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों को निर्देश दिया कि विशेष सघन पुनरीक्षण (एसआईआर) कार्य में लगे बूथ स्तर अधिकारियों (बीएलओ) को पर्याप्त सुरक्षा प्रदान की जाए

बीएलओ को धमकाना बर्दाश्त नहीं, सुप्रीम कोर्ट का बड़ा आदेश
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बीएलओ की सुरक्षा पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा आदेश, सभी राज्यों को चेतावनी

  • मतदाता सूची पुनरीक्षण पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, कहा– बीएलओ को मिले पूरी सुरक्षा
  • बीएलओ पर दबाव और धमकी पर सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप, राज्यों को निर्देश
  • सुप्रीम कोर्ट बोला– चुनाव आयोग सीधे कोर्ट से कर सकता है शिकायत

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को सभी राज्यों को निर्देश दिया कि विशेष सघन पुनरीक्षण (एसआईआर) कार्य में लगे बूथ स्तर अधिकारियों (बीएलओ) को पर्याप्त सुरक्षा प्रदान की जाए। अदालत ने स्पष्ट चेतावनी दी कि बीएलओ को धमकाने या उनके काम में बाधा डालने की किसी भी घटना को गंभीरता से लिया जाएगा। यह टिप्पणी उस समय आई जब एनजीओ सनातनी संसद की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता वी. गिरी ने आरोप लगाया कि पश्चिम बंगाल में मतदाता गणना के दौरान बीएलओ को धमकाया जा रहा है।

सभी राज्यों के लिए चेतावनी

मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्य बागची की बेंच ने कहा कि यह मुद्दा केवल पश्चिम बंगाल तक सीमित नहीं है, बल्कि सभी राज्यों के लिए लागू होता है। अदालत ने कहा कि चुनाव आयोग के काम में असहयोग एक गंभीर समस्या है और बीएलओ को पूरी सुरक्षा मिलनी चाहिए। यदि किसी राज्य के अधिकारी या पुलिस सहयोग नहीं करते हैं, तो चुनाव आयोग सीधे सुप्रीम कोर्ट से संपर्क कर सकता है।

बीएलओ की सुरक्षा पर सख्त रुख

सीजेआई की अगुवाई वाली बेंच ने कहा कि बीएलओ की सुरक्षा सुनिश्चित करना अनिवार्य है, अन्यथा अराजकता फैल सकती है। अदालत ने केंद्र और चुनाव आयोग से जवाब मांगा और आयोग को निर्देश दिया कि वह सभी राज्यों में स्थिति का आकलन करे तथा आवश्यकता पड़ने पर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करे।

काम के बोझ और तनाव पर चर्चा

सुनवाई के दौरान बीएलओ पर काम के दबाव और तनाव का मुद्दा भी उठा। कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने पहले आरोप लगाया था कि बीएलओ की मौतें बढ़ रही हैं और एसआईआर को बंद किया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने 4 दिसंबर के अपने आदेश का उल्लेख करते हुए कहा कि जिन बीएलओ को तनाव या स्वास्थ्य समस्याएँ हैं, उन्हें बीएलओ कार्य से हटने की अनुमति दी जाए और उनके स्थान पर पर्याप्त प्रतिस्थापन उपलब्ध कराया जाए।

चुनाव आयोग का पक्ष

चुनाव आयोग ने बताया कि एक बीएलओ को 37 दिनों में अधिकतम 1,200 मतदाताओं की गणना करनी होती है, यानी लगभग 35 मतदाता प्रतिदिन। आयोग ने सवाल उठाया कि क्या यह वास्तव में बहुत अधिक काम है।

न्यायाधीशों की टिप्पणी

जस्टिस बागची ने कहा कि बीएलओ का काम केवल डेस्क जॉब नहीं है। उन्हें घर-घर जाकर प्रपत्रों का सत्यापन करना होता है और फिर डेटा अपलोड करना पड़ता है। यह कार्य तनाव और शारीरिक थकान पैदा कर सकता है। अदालत ने जोर दिया कि एसआईआर का काम जमीनी स्तर पर बिना किसी रुकावट के होना चाहिए।

आरोपों पर सवाल

जस्टिस बागची ने पश्चिम बंगाल में बीएलओ को धमकी दिए जाने के आरोपों पर सवाल उठाते हुए कहा कि एकमात्र एफआईआर के अलावा कोई ठोस सबूत प्रस्तुत नहीं किया गया है। उन्होंने पूछा कि क्या एक घटना के आधार पर पूरे राज्य पर आरोप लगाया जा सकता है और क्या यह एकतरफा बयानबाजी नहीं है।

राज्यों का विरोध

चुनाव आयोग के वकील ने बताया कि पश्चिम बंगाल के अलावा तमिलनाडु और केरल में भी समस्याएँ सामने आई हैं, क्योंकि वहाँ की राज्य सरकारों ने एसआईआर के प्रति अपना विरोध सार्वजनिक रूप से व्यक्त किया है।

राजनीतिक और कानूनी विवाद

यह मामला स्पष्ट करता है कि मतदाता सूची पुनरीक्षण का कार्य केवल तकनीकी या प्रशासनिक प्रक्रिया नहीं है, बल्कि यह राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में एक गंभीर राजनीतिक और कानूनी विवाद का विषय बन गया है।


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