Top
Begin typing your search above and press return to search.

सुप्रीम कोर्ट ने नागरिकता पर फैसले से पहले सीएए आवेदकों को वोटर लिस्ट में शामिल करने पर उठाया सवाल

उच्चतम न्यायालय ने सवाल उठाया है कि नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए), 2019 के तहत नागरिकता के लिये आवेदन करने वाले व्यक्तियों को नागरिकता प्रदान करने से पहले मतदाता सूची में अनंतिम रूप से कैसे शामिल किया जा सकता है

सुप्रीम कोर्ट ने नागरिकता पर फैसले से पहले सीएए आवेदकों को वोटर लिस्ट में शामिल करने पर उठाया सवाल
X

उच्चतम न्यायालय ने नागरिकता पर फैसले से पूर्व सीएए आवेदकों को मतदाता सूची में शामिल करने पर सवाल उठाया

नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने सवाल उठाया है कि नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए), 2019 के तहत नागरिकता के लिये आवेदन करने वाले व्यक्तियों को नागरिकता प्रदान करने से पहले मतदाता सूची में अनंतिम रूप से कैसे शामिल किया जा सकता है।

मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ मंगलवार को एक गैर सरकारी संगठन(एनजीओ) आत्मदीप की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें पश्चिम बंगाल में चल रहे विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के बाद सीएए के तहत नागरिकता के लिये पात्र बताए गये बांग्लादेशी प्रवासियों को मतदाता सूची में शामिल करने के निर्देश देने की मांग की गई थी।

वरिष्ठ अधिवक्ता करुणा नंदी ने एनजीओ का पक्ष रखते हुये तर्क दिया कि हजारों शरणार्थियों के सीएए आवेदनों पर कार्रवाई नहीं हुई। उन्होंने कहा कि नागरिकता का अधिकार आवेदन की तारीख से मिलना चाहिए, अन्यथा उनके आवेदनों पर कार्रवाई होने से पहले ही एसआईआर प्रक्रिया उन्हें मतदाता सूची से बाहर कर देगी। पीठ ने हालांकि यह कहा कि जब आवेदकों की नागरिकता की स्थिति की पुष्टि सक्षम प्राधिकारी ने नहीं की है, तो न्यायालय इसमें हस्तक्षेप कैसे कर सकता है।

मुख्य न्यायाधीश ने टिप्पणी की, "आपको अभी तक नागरिकता प्रदान नहीं की गई है। संशोधित कानून आपको नागरिकता के लिए आवेदन करने का अधिकार दे सकता है, लेकिन ऐसे हर दावे पर इस बात का निर्धारण किया जाना आवश्यक है, क्या आप निर्दिष्ट अल्पसंख्यक समुदाय से हो, क्या निर्दिष्ट देशों से हो, और क्या आप भारत में हो। पहले इन मामलों का निर्धारण होना जरूरी है।"

न्यायमूर्ति बागची ने आगे कहा, "पहले आप नागरिकता हासिल करते हैं, तब मतदाता सूची में आपके नाम की बात आती है।"

पीठ ने कहा कि स्थिति तय होने से पहले एनजीओ मतदाता के तौर पर पंजीकरण की मांग नहीं कर सकती। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ता एक एनजीओ है और किसी भी व्यक्तिगत आवेदक ने सीधे न्यायालय का रुख नहीं किया है। न्यायालय ने कहा कि वह केवल नागरिकता संबंधी दावों के निर्धारण में सहायता कर सकता है, वैधानिक प्रक्रिया को दरकिनार नहीं कर सकता।

मुख्य न्यायाधीश ने कहा, "हम केवल आपकी स्थिति के निर्धारण में सहायता कर सकते हैं, इससे अधिक कुछ नहीं।"

श्री नंदी ने न्यायालय से लंबित सीएए आवेदनों पर निर्णय के लिए एक समय-सीमा निर्धारित करने का आग्रह किया, और बासुदेव दत्ता बनाम पश्चिम बंगाल राज्य मामले में न्यायालय के पूर्व निर्देश का हवाला दिया, जिसमें सरकारी नियुक्तियों में पुलिस सत्यापन के लिए छह महीने की समय-सीमा निर्धारित की गई थी। उन्होंने इसी तरह की समय-सीमा की मांग करते हुए प्रस्ताव रखा कि अब तक प्राप्त आवेदनों पर फरवरी 2026 तक निर्णय लिया जाए।

पीठ ने ऐसा करने से इनकार कर दिया। मुख्य न्यायाधीश कांत ने कहा, "हम ऐसा नहीं कर पायेंगे।" निर्वाचन आयोग की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने स्पष्ट किया कि नागरिकता निर्धारित करने में निर्वाचन आयोग की कोई भूमिका नहीं है। उन्होंने कहा, "नागरिकता के मामले में हमारी कोई भूमिका नहीं है। सीएए के आवेदनों पर फैसला केन्द्र सरकार को ही लेना चाहिए।"

दलीलें सुनने के बाद न्यायालय ने अटॉर्नी जनरल के माध्यम से केन्द्र सरकार को नोटिस जारी करते हुए याचिकाकर्ता को निर्देश दिया गया कि वह याचिका की एक प्रति भारत के सॉलिसिटर जनरल को भी सौंपे।

इस मामले में अगले सप्ताह फिर से सुनवाई होगी।


Next Story

Related Stories

All Rights Reserved. Copyright @2019
Share it