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राज्यसभा में ‘सबका बीमा सबकी रक्षा’ विधेयक पास, बीमा क्षेत्र में 100% एफडीआई को मंजूरी

राज्यसभा ने बुधवार को ‘सबका बीमा सबकी रक्षा (बीमा कानूनों में संशोधन) विधेयक, 2025’ को ध्वनि मत से पारित कर दिया

राज्यसभा में ‘सबका बीमा सबकी रक्षा’ विधेयक पास, बीमा क्षेत्र में 100% एफडीआई को मंजूरी
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वित्त मंत्री सीतारमण ने गिनाई बीमा क्षेत्र की उपलब्धियां, सार्वजनिक कंपनियों में 17,450 करोड़ का निवेश

  • जीएसटी परिषद का बड़ा फैसला: जीवन और स्वास्थ्य बीमा प्रीमियम पर टैक्स शून्य
  • विपक्ष का हमला - विदेशी नियंत्रण, काले धन और राज्यों की स्वायत्तता पर खतरे का आरोप
  • समर्थकों का दावा - विशेषज्ञता और सस्ते बीमा उत्पादों से बढ़ेगी पहुंच, 2047 तक ‘सबका बीमा’ लक्ष्य

नई दिल्ली। राज्यसभा ने बुधवार को ‘सबका बीमा सबकी रक्षा (बीमा कानूनों में संशोधन) विधेयक, 2025’ को ध्वनि मत से पारित कर दिया। इस विधेयक में बीमा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) की सीमा को 74 प्रतिशत से बढ़ाकर 100 प्रतिशत करने सहित कई अहम सुधारों का प्रावधान है। इसका उद्देश्य बीमा उद्योग का आधुनिकीकरण करना और ‘2047 तक सभी के लिए बीमा’ के लक्ष्य को हासिल करना है।

इससे पहले यह विधेयक 16 दिसंबर को लोकसभा में पारित हो चुका है। इसके तहत बीमा अधिनियम, 1938; भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) अधिनियम, 1956; और बीमा विनियामक एवं विकास प्राधिकरण (आईआरडीएआई) अधिनियम, 1999 में संशोधन किया गया है।

विधेयक का मकसद कारोबार सुगमता बढ़ाना, वैश्विक पूंजी आकर्षित करना, पॉलिसीधारकों की सुरक्षा मजबूत करना और बीमा पहुंच को व्यापक बनाना है।

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने विधेयक का बचाव करते हुए कहा कि सरकार सार्वजनिक क्षेत्र की बीमा कंपनियों को मजबूत करने के लिए लगातार कदम उठा रही है। उन्होंने बताया कि तीन गैर-जीवन सार्वजनिक क्षेत्र की बीमा कंपनियों में 17,450 करोड़ रुपये का निवेश किया गया, जिसके चलते पिछले वर्ष एलआईसी, जीआईसी और कृषि बीमा कंपनी ऑफ इंडिया लिमिटेड (एआईसीआईएल) ने रिकॉर्ड मुनाफा दर्ज किया।

सीतारमण ने 2014 के बाद बीमा क्षेत्र की प्रगति गिनाते हुए कहा कि बीमा कंपनियों की संख्या 53 से बढ़कर 74 हो गई है, बीमा पैठ 3.3 प्रतिशत से बढ़कर लगभग 3.8 प्रतिशत, प्रति व्यक्ति बीमा घनत्व 55 डॉलर से बढ़कर 97 डॉलर, कुल प्रीमियम 4.15 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 11.93 लाख करोड़ रुपये और प्रबंधनाधीन परिसंपत्तियां तीन गुना बढ़कर 74.43 लाख करोड़ रुपये हो गई हैं।

उन्होंने बताया कि एफडीआई सीमा को चरणबद्ध तरीके से 26 प्रतिशत से 49 प्रतिशत, फिर 74 प्रतिशत तक बढ़ाने से विदेशी पुनर्बीमा कंपनियों की शाखाएं खुलीं और घरेलू क्षमता मजबूत हुई। वर्ष 2019 में बीमा मध्यस्थों के लिए 100 प्रतिशत एफडीआई की अनुमति से सलाहकारी सेवाओं में सुधार हुआ।

वित्त मंत्री ने 56वीं जीएसटी परिषद के उस फैसले की भी सराहना की, जिसमें व्यक्तिगत जीवन और स्वास्थ्य बीमा प्रीमियम पर जीएसटी 18 प्रतिशत से घटाकर शून्य कर दिया गया, जिससे बीमा अधिक किफायती बना।

उन्होंने ‘आपकी पूंजी, आपका अधिकार’ अभियान का जिक्र करते हुए बताया कि जिला स्तर पर आयोजित शिविरों के माध्यम से 1,000 करोड़ रुपये से अधिक की लावारिस राशि लोगों को लौटाई गई है, जबकि ‘बीमा भरोसा’ पोर्टल दावों के निपटारे में मदद कर रहा है।

सीतारमण ने सांसदों से बीमा के प्रति जागरूकता बढ़ाने की अपील की और आश्वासन दिया कि सभी बीमा कंपनियों के लिए ग्रामीण और सामाजिक क्षेत्र की अनिवार्य जिम्मेदारियां तय रहेंगी। साथ ही, दंड की राशि 1 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 10 करोड़ रुपये की जा रही है, जिसका उपयोग पॉलिसीधारकों की शिक्षा के लिए किया जाएगा। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि प्रीमियम पर सीमा रहेगी और निजी कंपनियां मनमाने ढंग से प्रीमियम तय नहीं कर सकेंगी।

हालांकि, विपक्ष ने विधेयक का कड़ा विरोध किया। डीएमके सांसद डॉ. कनिमोझी एनवीएन सोमु ने आरोप लगाया कि विदेशी बोर्ड प्रीमियम पर नियंत्रण करेंगे, जिससे काले धन का खतरा और राज्यों की स्वायत्तता पर असर पड़ सकता है। उन्होंने कहा कि यह सहकारी बीमा कंपनियों और एलआईसी जैसे सार्वजनिक उपक्रमों को नुकसान पहुंचाएगा और तंज कसते हुए कहा, “यह सबका बीमा नहीं, बल्कि सबका बकवास है।”

तृणमूल कांग्रेस सांसद साकेत गोखले ने बीमा को सामाजिक सुरक्षा बताते हुए कहा कि इस क्षेत्र में शेयरधारकों से अधिक पॉलिसीधारकों के हितों को प्राथमिकता मिलनी चाहिए। उन्होंने विधेयक को जल्दबाजी में लाने का आरोप लगाया।

विपक्षी दलों ने इसे प्रवर समिति को भेजने की मांग की और डेटा गोपनीयता, मुनाफे की विदेश वापसी और संप्रभुता पर संभावित असर को लेकर चिंता जताई।

वहीं, समर्थकों का कहना है कि 100 प्रतिशत एफडीआई से विशेषज्ञता आएगी और सस्ते बीमा उत्पाद उपलब्ध होंगे। यह बहस बीमा जैसे अहम क्षेत्र में उदारीकरण और घरेलू हितों के संरक्षण के बीच संतुलन की चुनौती को रेखांकित करती है।


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