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एनपीए पर सियासत : कांग्रेस ने कर्जदारों की सूची मांगी, भाजपा ने पारदर्शी नीतियों को बताया उपलब्धि का कारण

बैंकिंग सेक्टर में एनपीए कमी से जुड़ी वित्त मंत्रालय की रिपोर्ट पर राजनीति जारी है

एनपीए पर सियासत : कांग्रेस ने कर्जदारों की सूची मांगी, भाजपा ने पारदर्शी नीतियों को बताया उपलब्धि का कारण
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नई दिल्ली। बैंकिंग सेक्टर में एनपीए कमी से जुड़ी वित्त मंत्रालय की रिपोर्ट पर राजनीति जारी है। वित्त मंत्रालय ने संसद में जानकारी दी कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की सकल गैर-निष्पादित परिसंपत्तियां (एनपीए) घटकर 3 प्रतिशत से नीचे आ चुकी हैं। मार्च 2025 में एनपीए दर 2.58 प्रतिशत रही।

हालांकि, इसके बाद कांग्रेस सवाल उठा रही है। कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने सरकार से मांग की है कि बैंकों से कर्ज लेने वाले लोगों की सूची दें।

सांसद मनीष तिवारी ने मीडिया से बात करते हुए कहा, "बुनियादी बात यह है कि जब से आईबीसी कानून लागू हुआ है, 2016 से 2019 के बीच बैंकों से लोगों ने बड़े-बड़े कर्ज लिए हैं और ये लोग कौड़ियों के दाम पर छूट गए।"

उन्होंने कहा, "सरकार को बताना चाहिए कि पिछले 9-10 साल में कितने ऐसे लोग हैं, जिन्होंने बैंकों से कर्ज लिया और बाद में सिर्फ 4-5 प्रतिशत राशि चुकाकर बच निकले, जिससे बैंकों को काफी नुकसान हुआ।"

इस मुद्दे पर कांग्रेस के राज्यसभा सांसद राजीव शुक्ला ने भी प्रतिक्रिया दी। संक्षिप्त में जवाब देते हुए उन्होंने कहा, "एनपीए बहुत बकाया है। इस कारण छोटे लोग बहुत परेशान हैं।"

विपक्ष के आरोपों पर भारतीय जनता पार्टी के सांसद दामोदर अग्रवाल ने पलटवार किया। उन्होंने कहा, "एनपीए कांग्रेस सरकार में 10 प्रतिशत होता था। क्योंकि कांग्रेस के राजनीतिक दखल के कारण कई ऐसे लोगों को कर्ज दिया जाता था, जो कर्ज वापस नहीं कर सकते थे। इस कारण बैंकों को वित्तीय घाटा भुगतना पड़ता था।"

भाजपा सांसद ने आगे कहा, "यह खुशी की बात है कि पिछले कुछ समय से केंद्र सरकार की पारदर्शी नीतियों के कारण और अनुचित दबाव से मुक्त होने के कारण बैंकों ने पात्र व्यक्तियों को लोन दिया है। इसीलिए पहले 9 प्रतिशत से अधिक वाली एनपीए दर अब 3 प्रतिशत से कम है। यह सरकार की बैंकिंग क्षेत्र में बड़ी उपलब्धि है।"


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