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भारत में पर्यावरण संरक्षण पर नई बहस तेज, वनों की कटाई और अवैध खनन पर रोक की मांग

पर्यावरणविदों और सामाजिक संगठनों ने हाल ही में सरकार की नीतियों पर सवाल उठाते हुए कहा है कि मौजूदा संशोधन और फैसले वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की भावना का उल्लंघन करते हैं

भारत में पर्यावरण संरक्षण पर नई बहस तेज, वनों की कटाई और अवैध खनन पर रोक की मांग
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हिमालयी बेल्ट और संवेदनशील क्षेत्रों की सुरक्षा पर जोर

  • पर्यावरण कानूनों की समीक्षा और NGT को मजबूत करने की अपील
  • स्थानीय समुदायों के साथ साझेदारी और सतत विकास पर विशेषज्ञों का दृष्टिकोण

नई दिल्ली। पर्यावरणविदों और सामाजिक संगठनों ने हाल ही में सरकार की नीतियों पर सवाल उठाते हुए कहा है कि मौजूदा संशोधन और फैसले वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की भावना का उल्लंघन करते हैं। उनका कहना है कि देश को अब एक पर्यावरण के लिए नया सौदा अपनाने की आवश्यकता है, ताकि प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा की जा सके और आने वाली पीढ़ियों को सुरक्षित भविष्य दिया जा सके।

नुकसान रोकने की मांग

वनों की कटाई पर रोक: ग्रेट निकोबार, हसदेव अरण्य (छत्तीसगढ़) और धीरौली (मध्य प्रदेश) जैसे क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर वनों की कटाई को रोकने की अपील की गई है।

अवैध खनन पर नकेल: अरावली रेंज और पश्चिमी घाट जैसे पर्यावरण-संवेदनशील इलाकों में अवैध खनन को तुरंत बंद करने की आवश्यकता बताई गई है।

हिमालयी बेल्ट की सुरक्षा: हिमालयी क्षेत्रों में पहाड़ों के अंधाधुंध विनाश को रोकने की मांग की गई है।

कानूनों और नीतियों की समीक्षा

वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 और नियम 2022 : विशेषज्ञों का कहना है कि इन संशोधनों को वापस लिया जाए क्योंकि ये आदिवासी समुदायों के हितों के खिलाफ हैं और बिना परामर्श के जंगलों की सफाई की अनुमति देते हैं।

पोस्ट-फैक्टो मंजूरी खत्म हो: पर्यावरण कानूनों का उल्लंघन करने वाले बड़े निगमों को बाद में मंजूरी देने की प्रथा समाप्त की जाए।

NGT को मजबूत करें: राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) को रिक्तियों से कमजोर होने से बचाकर उसकी स्वतंत्र स्थिति बहाल की जाए।

अंतर-सरकारी समन्वय: NCR में वायु प्रदूषण और भूजल में यूरेनियम संदूषण जैसे मुद्दों पर राज्यों और केंद्र के बीच बेहतर तालमेल की आवश्यकता है।

सहकारी संघवाद: पर्यावरण मामलों में सहकारी संघवाद की भावना को लागू करने पर जोर दिया गया है।

विशेषज्ञों का मानना है कि भारत की पर्यावरणीय नीतियों को तीन मूलभूत सिद्धांतों पर आधारित होना चाहिए।

  • कानून के शासन का सम्मान
  • स्थानीय समुदायों के साथ साझेदारी
  • पर्यावरण और मानव विकास के बीच अटूट संबंध की समझ

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