गृह मंत्री अमित शाह ने ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता विनोद कुमार शुक्ल को श्रद्धांजलि दी
हिंदी साहित्य के प्रख्यात विद्वान और ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित विनोद कुमार शुक्ल का मंगलवार को रायपुर स्थित एम्स में इलाज के दौरान निधन हो गया। वह 89 वर्ष के थे

गृह मंत्री अमित शाह और प्रधानमंत्री मोदी ने जताया गहरा शोक
- रायपुर में बुधवार को होगा विनोद कुमार शुक्ल का अंतिम संस्कार
- ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’ और ‘नौकर की कमीज’ से मिली साहित्यिक पहचान
- छत्तीसगढ़ के पहले लेखक बने जो ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित हुए
नई दिल्ली/रायपुर। हिंदी साहित्य के प्रख्यात विद्वान और ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित विनोद कुमार शुक्ल का मंगलवार को रायपुर स्थित एम्स में इलाज के दौरान निधन हो गया। वह 89 वर्ष के थे। शुक्ला अपनी-अपनी प्रयोगात्मक लेकिन सरल लेखन शैली के लिए प्रसिद्ध थे। वह काफी समय से कई अंगों में संक्रमण से जूझ रहे थे, जिसके चलते उन्होंने शाम 4:48 बजे अंतिम सांस ली।
जानकारी के अनुसार सांस लेने में तकलीफ के कारण उन्हें 2 दिसंबर को एम्स में भर्ती कराया गया था और उन्हें ऑक्सीजन और वेंटिलेटर पर रखा गया था।
उनका अंतिम संस्कार बुधवार को सुबह 11 बजे रायपुर के मारवाड़ी मुक्तिधाम में किया जाएगा। उनके परिवार में उनकी पत्नी, पुत्र और एक पुत्री हैं।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने शुक्ल के निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया। गृह मंत्री ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा कि प्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार, भारतीय ज्ञानपीठ से सम्मानित विनोद कुमार शुक्ल जी का निधन साहित्य जगत के लिए बहुत बड़ी क्षति है। सादगीपूर्ण लेखन और सरल व्यक्तित्व के लिए प्रसिद्ध विनोद कुमार शुक्ल जी अपनी विशिष्ट लेखन कला के लिए सदैव याद किए जाएंगे। मेरी संवेदनाएं उनके परिजनों, प्रशंसकों और असंख्य पाठकों के साथ हैं। ईश्वर दिवंगत आत्मा को अपने श्रीचरणों में स्थान दें। ॐ शांति शांति शांति
इससे पहले प्रधानमंत्री मोदी ने उनके निधन पर दुख जताते हुए एक्स पर लिखा कि ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित प्रख्यात लेखक विनोद कुमार शुक्ल के निधन से अत्यंत दुख हुआ है। हिन्दी साहित्य जगत में अपने अमूल्य योगदान के लिए वे हमेशा स्मरणीय रहेंगे। शोक की इस घड़ी में मेरी संवेदनाएं उनके परिजनों और प्रशंसकों के साथ हैं। ओम शांति।
छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले में 1 जनवरी, 1937 को जन्मे शुक्ला ने अध्यापन को अपना पेशा चुना, लेकिन अपना जीवन साहित्य को समर्पित कर दिया।
उनकी पहली कविता, 'लगभग जयहिंद,' 1971 में प्रकाशित हुई, जिसने हिंदी साहित्य में उनके उल्लेखनीय सफर की शुरुआत की।
उनके उल्लेखनीय उपन्यासों में 'दीवार में एक खिड़की रहती थी,' 'नौकर की कमीज,' और 'खिलेगा तो देखेंगे' शामिल हैं।
फिल्म निर्माता मणि कौल ने 1979 में 'नौकर की कमीज' के ऊपर बॉलीवुड फिल्म भी बनाई, जबकि 'दीवार में एक खिड़की रहती थी' के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला।
शुक्ला की लेखन शैली अपनी सहज सरलता और अनूठी शैली के लिए जानी जाती थी, जिसमें अक्सर रोजमर्रा की जिंदगी को गहन कथाओं में पिरोया जाता था।
उनकी रचनाओं ने भारतीय साहित्य को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई और पाठकों में एक नई चेतना का संचार किया।
2024 में उन्हें 59वें ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया, जिससे वे छत्तीसगढ़ के पहले लेखक बन गए जिन्हें यह प्रतिष्ठित पुरस्कार प्राप्त हुआ।
वे इस पुरस्कार से सम्मानित होने वाले 12वें हिंदी लेखक हैं।
हिंदी साहित्य में विनोद कुमार शुक्ला का अद्वितीय योगदान, उनकी रचनात्मकता और उनकी विशिष्ट शैली साहित्यिक इतिहास में सुनहरे अक्षरों में अंकित रहेगी।
उनका निधन एक युग का अंत है, लेकिन उनकी विरासत पाठकों और लेखकों की पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेगी।


