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यादों में 'हिम्मत' : बोलती कलाकृतियां, खुद की शैली, टेराकोटा को दिया समकालीन रूप

गुजरात के लोथल में जन्मे भारत के प्रसिद्ध प्रतिष्ठित मूर्तिकार हिम्मत शाह ने अपनी रचनात्मकता से मूर्तिकला को जीवंत किया

यादों में हिम्मत : बोलती कलाकृतियां, खुद की शैली, टेराकोटा को दिया समकालीन रूप
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नई दिल्ली। गुजरात के लोथल में जन्मे भारत के प्रसिद्ध प्रतिष्ठित मूर्तिकार हिम्मत शाह ने अपनी रचनात्मकता से मूर्तिकला को जीवंत किया। ललित कला अकादमी के राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित हिम्मत शाह बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। उन्होंने विभिन्न रूपों और माध्यमों में प्रयोग किए, जले हुए कागज के कोलाज, वास्तुशिल्पीय भित्ति चित्र, रेखाचित्र और टेराकोटा के साथ ही कांसे की मूर्तियां बनाईं, हालांकि वे स्वयं को एक मूर्तिकार ही मानते थे।

हिम्मत शाह का जन्म 22 जुलाई 1933 में गुजरात के लोथल में एक जैन परिवार में हुआ था। लोथल हड़प्पा सभ्यता (3,300-1,300 ईसा पूर्व) के सबसे महत्वपूर्ण स्थलों में से एक है। टेराकोटा के साथ उनके दीर्घकालिक जुड़ाव की जड़ें उनके जन्मस्थान के प्राचीन पूर्वजों में हैं, जो विशेष रूप से उनकी मूर्तिकला में दिखाई देती हैं।

बचपन में ही परिवार ने उनकी रुचि को पहचान ली थी और शाह को भावनगर के घरशाला में शिक्षा प्राप्त कराई। यह गुजरात में राष्ट्रवादी पुनर्जागरण से जुड़ा एक विद्यालय था। उन्होंने कलाकार-शिक्षक जगुभाई शाह के सानिध्य में कला की शिक्षाएं प्राप्त कीं। चौदह वर्ष की उम्र में उन्होंने घर छोड़कर अहमदाबाद का रुख किया और अनुभवी कलाकार रसिकलाल पारिख के मार्गदर्शन में सीएन कला निकेतन में अध्ययन किया।

हिम्मत शाह ने जे.जे. स्कूल ऑफ आर्ट, बॉम्बे और फिर एम.एस. यूनिवर्सिटी, बड़ौदा (1956-60) में अध्ययन किया। इसके बाद वे फ्रांसीसी सरकार की छात्रवृत्ति पर 1967 में दो साल के लिए पेरिस गए और वहां पर एटेलियर 17 में प्रिंटमेकर एस.डब्ल्यू. हेटर और कृष्णा रेड्डी के अधीन अध्ययन किया। विदेश में रहने के दौरान वो यूरोपीय आधुनिकता के साथ जुड़े।

शाह ने स्व-निर्मित औजारों और नवीन तकनीकों से अपने पसंदीदा माध्यम, टेराकोटा को एक समकालीन रूप प्रदान किया। वे अपनी कृतियों को तराशने, आकार देने और ढालने के लिए कई हस्त औजारों, ब्रशों और उपकरणों का इस्तेमाल करते थे। साथ ही ईंट, सीमेंट और कंक्रीट से स्मारकीय भित्ति चित्र डिजाइन और निर्मित किए।

हिम्मत शाह कलाकारों के समूह 1890 के संस्थापक सदस्यों में से एक थे, जिसकी स्थापना 1962 में हुई थी। उन्होंने अपनी मूर्तिकला के दौरान आधुनिकता पर जोर दिया। 1980 के दशक में उन्होंने खुद की मूर्तिकला शैली विकसित की, जिसमें प्लास्टर, सिरेमिक और टेराकोटा से बने सिर और अन्य वस्तुएं शामिल थीं। इन वस्तुओं को अक्सर चांदी या सोने से लेपित किया जाता था। 2000 के दशक में उन्होंने जयपुर में अपने स्टूडियो की शुरुआत की।

लौवर, रॉयल एकेडमी ऑफ आर्ट्स, बिएनले डी पेरिस, म्यूजियम लुडविग, म्यूजियो डे ला नेसिओन और नेशनल गैलरी ऑफ मॉडर्न आर्ट, दिल्ली जैसी कई प्रतिष्ठित दीर्घाओं में उनकी मूर्तियों को प्रदर्शित किया गया है। हिम्मत शाह के जीवन पर आधारित एक प्रदर्शनी 'हैमर ऑन द स्क्वायर' शीर्षक से 2016 में म्यूजियम ऑफ आर्ट, नई दिल्ली में प्रदर्शित की गई।

'ग्रुप 1890' के संस्थापक सदस्य रहे शाह को 1956 और 1962 में ललित कला अकादमी के राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उन्हें 1988 में साहित्य कला परिषद पुरस्कार और 2003 में मध्य प्रदेश सरकार से कालिदास सम्मान मिला। 2 मार्च 2025 को हृदयघात के कारण जयपुर में उनका निधन हो गया।


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