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दिव्यांगों को सस्ती और तेज कानूनी सेवाएं देने के लिए कदम उठा रही सरकार: अर्जुन राम मेघवाल

ई-कोर्ट्स प्रोजेक्ट के तीसरे फेज में दिव्यांग लोगों और अन्य नागरिकों के लिए आसान डिजिटल सिस्टम बनाने के कई कदम उठाए गए हैं। यह जानकारी शुक्रवार को संसद को दी गई

दिव्यांगों को सस्ती और तेज कानूनी सेवाएं देने के लिए कदम उठा रही सरकार: अर्जुन राम मेघवाल
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नई दिल्ली। ई-कोर्ट्स प्रोजेक्ट के तीसरे फेज में दिव्यांग लोगों और अन्य नागरिकों के लिए आसान डिजिटल सिस्टम बनाने के कई कदम उठाए गए हैं। यह जानकारी शुक्रवार को संसद को दी गई।

कानून और न्याय राज्य मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने बताया कि इस प्रोजेक्ट में इस्तेमाल होने वाले प्लेटफॉर्म में ऐसे फीचर्स हैं जिनसे दिव्यांग लोग आसानी से कंटेंट देख सकते हैं, जिसे आमतौर पर देखना मुश्किल होता है।

लोकसभा में शुक्रवार को एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि दिव्यांग लोगों के लिए बेहतर डिजिटल सुविधाएं देने के लिए 752 कोर्ट (हाई कोर्ट सहित) की वेबसाइटों को 'एस3डब्ल्यूएएएस' प्लेटफॉर्म (सुरक्षित, स्केलेबल और आसान वेबसाइट एज ए सर्विस) पर लाया गया है। इससे ये वेबसाइट दिव्यांग लोगों के लिए आसानी से उपयोग करने योग्य हो गई हैं। सरकार सस्ती, अच्छी और तेज कानूनी सेवाएं देने के लिए कई कदम उठा रही है।

अर्जुन राम मेघवाल ने बताया कि लीगल सर्विस अथॉरिटी एक्ट, 1987 के तहत समाज के कमजोर तबके (जिसमें दिव्यांग लोग भी शामिल हैं) को मुफ्त और अच्छी कानूनी सेवा मिलती है। उन्होंने कहा कि नेशनल लीगल सर्विस अथॉरिटी ने दिव्यांग लोगों, मानसिक रूप से बीमार और बौद्धिक रूप से दिव्यांग लोगों के लिए “लीगल सर्विस स्कीम, 2024” शुरू की है। इस स्कीम का मकसद है कि उन्हें कानूनी और सामाजिक जरूरतों के अनुसार सेवाएं मिलें।

मेघवाल ने बताया कि इस स्कीम के तहत लद्दाख और दादर एवं नगर हवेली को छोड़कर सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में मानसिक रूप से बीमार और बौद्धिक रूप से दिव्यांग लोगों के लिए खास 'लीगल सर्विस यूनिट' बनाई गई हैं। सरकार जिला और सबऑर्डिनेट कोर्ट के लिए नई सुविधाओं के विकास के लिए सेंट्रली स्पॉन्सर्ड स्कीम लागू कर रही है।

इसके तहत कोर्ट हॉल, ज्यूडिशियल ऑफिसर्स के लिए रेजिडेंशियल यूनिट, वकीलों के हॉल, डिजिटल कंप्यूटर रूम और टॉयलेट कॉम्प्लेक्स बनाए जा रहे हैं।

स्कीम की गाइडलाइन के अनुसार, राज्य और केंद्र शासित प्रदेश यह सुनिश्चित करते हैं कि ये इमारतें दिव्यांग के लिए उचित हों। इसके डिजाइन में केंद्रीय लोक निर्माण विभाग और सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के तय किए गए नियम और एक्सेसिबिलिटी स्टैंडर्ड्स का पालन किया जाता है।


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