गोपाष्टमी : क्यों मनाते हैं यह पर्व, जानें इसकी कथा
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को गोपाष्टमी है। मान्यता है कि इस दिन से भगवान श्रीकृष्ण ने गायों को चराना शुरू किया था। यह पर्व मुख्य रूप से ब्रज क्षेत्र में मनाया जाता है

नई दिल्ली। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को गोपाष्टमी है। मान्यता है कि इस दिन से भगवान श्रीकृष्ण ने गायों को चराना शुरू किया था। यह पर्व मुख्य रूप से ब्रज क्षेत्र में मनाया जाता है।
गोपाष्टमी भगवान श्री कृष्ण की बाल लीलाओं से जुड़ा पर्व है। ब्रजवासी इस तिथि को गायों को स्नान आदि करवा कर उनकी पूजा अर्चना करते हैं। वहीं, इसके पीछे एक कथा भी काफी प्रचलित है, जिसमें बताया गया है कि इस तिथि से ही भगवान श्री कृष्ण ने गायों को चराना शुरू किया था। गोपाष्टमी को लेकर दो कथाएं प्रचलित हैं।
पहली कथा के अनुसार, जब भगवान श्री कृष्ण 6 वर्ष के थे, तब उन्होंने मैया यशोदा से कहा कि मैं भी अब बड़ा हो गया हूं और बछड़ों के साथ गायों को भी चराने के लिए जाया करूंगा। ये सुनकर माता यशोदा ने मुस्कराते हुए कहा, "बेटा, इसके लिए अपने पिता नंद बाबा से बात करो।"
इसके बाद बाल गोपाल अपने पिता नंद बाबा के पास पहुंचे और गाय चराने की जिद करने लगे। नंद बाबा ने उन्हें मना करते हुए कहा कि लाला, अभी तुम छोटे हो। फिलहाल सिर्फ बछड़ों को ही चराओ, लेकिन कृष्ण नहीं माने। वे अड़े रहे। आखिरकार नंद बाबा बोले, "ठीक है, पंडित जी को बुलाओ।"
इसके बाद श्री कृष्ण दौड़ते हुए पंडित जी को अपने साथ लेकर आए, जिसके बाद पंडित जी ने पंचांग देखकर नंद बाबा से कहा कि गाय चराने का शुभ मुहूर्त आज ही है। इसके बाद पूरे साल कोई मुहूर्त नहीं बनेगा।
यह सुनते ही बाल गोपाल खुशी से उछल पड़े और गायों को चराने निकल गए। वह दिन कार्तिक पक्ष शुक्ल अष्टमी था। तभी से ब्रज में गोपाष्टमी मनाई जाती है और गोवंश की पूजा की परंपरा चली आ रही है।
दूसरी पौराणिक कथा गोवर्धन लीला से जुड़ी है, जिसमें बताया गया है कि कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से लेकर सप्तमी तिथि तक भगवान श्री कृष्ण ने कनिष्ठा ऊंगली पर गोवर्धन पर्वत उठाकर ब्रजवासियों, गायों, बछड़ों और अन्य जीवों को इंद्र देव के प्रकोप से बचाया था, और अष्टमी के दिन ही इंद्र देव श्री कृष्ण की शरण में आए थे और क्षमा मांगी थी। इसके बाद कामधेनु गाय ने श्रीकृष्ण का दूध से अभिषेक किया था।


