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नई संभावनाओं की खोज से भारत-रूस संबंध होंगे और मजबूत

भारत-रूस रणनीतिक साझेदारी के अहम मोड़ पर होने को मान्यता देते हुए, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को दोनों देशों के बीच नई संभावनाओं पर आधारित सहयोग को और मजबूत करने के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए

नई संभावनाओं की खोज से भारत-रूस संबंध होंगे और मजबूत
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नई दिल्ली। भारत-रूस रणनीतिक साझेदारी के अहम मोड़ पर होने को मान्यता देते हुए, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को दोनों देशों के बीच नई संभावनाओं पर आधारित सहयोग को और मजबूत करने के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए। यह बात गुरुवार को एक रिपोर्ट में कही गई।

‘इंडिया नैरेटिव’ की रिपोर्ट के अनुसार, सहयोग के नए क्षेत्रों में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई), पश्चिमी आईटी तकनीकों के विकल्प, आर्कटिक क्षेत्र, अफ्रीका और क्षेत्रीय सहयोग शामिल हैं, जो द्विपक्षीय जुड़ाव को और बढ़ा सकते हैं।

रिपोर्ट में कहा गया है कि एआई में सहयोग, खासकर संयुक्त अनुसंधान और विकास के ढांचे के निर्माण के रूप में, स्वास्थ्य, आपदा प्रबंधन और सूचना युद्ध जैसे प्रमुख क्षेत्रों में अहम भूमिका निभा सकता है। भारत आईटी सेक्टर में अग्रणी है, जबकि रूस के पास गणित, जीवविज्ञान, भौतिकी, आईटी और न्यूरोसर्जरी जैसे क्षेत्रों के विशेषज्ञ मौजूद हैं, जिन्होंने कृत्रिम न्यूरल नेटवर्क से जुड़े प्रोजेक्ट्स पर काम किया है।

रूसी निर्माताओं को माइक्रोचिप, संचार उपकरण, कंप्यूटर कॉम्पोनेंट्स, सैन्य उपकरणों के अहम हिस्से, नेविगेशन डिवाइस आदि जैसे पश्चिमी हाई-टेक आयात के विकल्प की ज़रूरत है। ‘मेक इन इंडिया’ पहल और उपभोक्ता बाज़ार, अनुकूल व्यापार समझौतों, कुशल श्रमबल और लागत लाभ को देखते हुए भारत उनके लिए एक संभावित विकल्प बन सकता है।

रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि जैसे अमेरिकी कंपनियां एप्पल और बोइंग भारत में विनिर्माण केंद्र की तलाश कर रही हैं, वैसे ही रूस भी इस क्षेत्र में सहयोग बढ़ा सकता है। रूस ने आर्कटिक क्षेत्र के ‘ईस्टर्नाइजेशन’ की बात कही है, जिसमें भारत की भूमिका अहम हो सकती है। भारत की 2022 की आर्कटिक नीति में विज्ञान व शोध, जलवायु और पर्यावरण संरक्षण, आर्थिक व मानव विकास, परिवहन और कनेक्टिविटी, शासन, अंतरराष्ट्रीय सहयोग और राष्ट्रीय क्षमता निर्माण पर जोर दिया गया है।

हालांकि अभी तक भारत ने आर्कटिक में रूस के साथ सहयोग के प्रति ठंडी प्रतिक्रिया दी है, लेकिन रिपोर्ट के मुताबिक आर्थिक सुरक्षा, डिजिटल कनेक्टिविटी और सैटेलाइट रिसीविंग स्टेशन बनाने जैसे क्षेत्रों में साझेदारी दोनों के लिए फायदेमंद होगी। विद्वानों ने अफ्रीका में भारत-रूस ‘पैराडिप्लोमेसी’ का सुझाव भी दिया है, जहां भारतीय प्रवासी समुदाय की बड़ी उपस्थिति और रूस के हित इसे एक अनूठा अवसर बना सकते हैं।

रिपोर्ट में यह भी उल्लेख है कि इस वर्ष के अंत में पुतिन की भारत यात्रा से पहले, दोनों देशों को न केवल नए सहयोग क्षेत्रों पर विचार करना चाहिए, बल्कि मौजूदा लंबित मुद्दों जैसे एस-400 मिसाइल सिस्टम की दो और यूनिट की आपूर्ति और व्लादिवोस्तोक-चेन्नई व्यापार गलियारे में प्रगति पर भी ध्यान देना चाहिए।

राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजीत डोभाल की हालिया रूस यात्रा, अमेरिका द्वारा रूसी तेल खरीदने पर भारत पर अतिरिक्त टैरिफ लगाने की घोषणा के बावजूद, भारत की रणनीतिक स्वायत्तता का संकेत है। भारत-रूस संबंध लंबे समय से स्थिर, सतत और नेतृत्व स्तर पर मजबूत बने हुए हैं, जिसमें एक-दूसरे के घरेलू मामलों और विदेश नीति में दखल न देने की परंपरा रही है।

वहीं, विदेश मंत्री एस. जयशंकर अगले सप्ताह रूस जाएंगे, जहां वे ‘भारत-रूस अंतर-सरकारी व्यापार, आर्थिक, वैज्ञानिक, तकनीकी और सांस्कृतिक सहयोग आयोग’ की 26वीं बैठक में भाग लेंगे। रूसी विदेश मंत्रालय ने कहा कि जयशंकर और रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव "महत्वपूर्ण द्विपक्षीय मुद्दों" और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर आपसी सहयोग पर चर्चा करेंगे।


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