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दिल्ली दंगा मामला : उमर खालिद ने दिल्ली हाई कोर्ट के जमानत नहीं देने के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में दी चुनौती

वर्ष 2020 के दिल्ली दंगों के मामले में पिछले पांच वर्षों से जेल में बंद जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के पूर्व छात्र उमर खालिद ने दिल्ली उच्च न्यायालय के जमानत नहीं देने के आदेश को बुधवार को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी

दिल्ली दंगा मामला : उमर खालिद ने दिल्ली हाई कोर्ट के जमानत नहीं देने के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में दी चुनौती
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दिल्ली दंगा मामले में खालिद ने जमानत याचिका खारिज करने के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में दी चुनौती

नई दिल्ली। वर्ष 2020 के दिल्ली दंगों के मामले में पिछले पांच वर्षों से जेल में बंद जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के पूर्व छात्र उमर खालिद ने दिल्ली उच्च न्यायालय के जमानत नहीं देने के आदेश को बुधवार को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी।

गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम के तहत गिरफ्तार खालिद ने दिल्ली उच्च न्यायालय के दो सितंबर, 2025 के आदेश के खिलाफ शीर्ष अदालत में विशेष अनुमति याचिका दायर की।

इससे पहले शरजील इमाम और एक अन्य आरोपी ने अपनी जमानत याचिका खारिज किए जाने के खिलाफ इसी तरह की याचिकाएं दायर की थीं।

उच्च न्यायालय ने आरोपों की प्रकृति और विशेष रूप से अभियोजन पक्ष की दलीलों पर गौर करते हुए उमर खालिद, शरजील इमाम (जेएनयू के पूर्व छात्र) और अन्य की ओर से दायर ज़मानत याचिकाओं को खारिज कर दिया।

उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि यह कोई सामान्य विरोध प्रदर्शन या दंगा-फसाद का मामला नहीं है, बल्कि भारत की एकता, अखंडता और संप्रभुता को ख़तरा पहुंचाने वाली गैरकानूनी गतिविधियों को अंजाम देने की एक पूर्व-नियोजित और सुनियोजित साजिश है।

अदालत ने कहा था कि प्रस्तुत तथ्यों के मद्देनज़र, व्यक्तिगत अधिकारों और राष्ट्र के हितों के साथ-साथ आम जनता की सुरक्षा के बीच संतुलन बनाना अदालत का कठिन कार्य बन गया है। अदालत ने अपीलकर्ता इमाम और खालिद के खिलाफ सबूतों के सत्यापन योग्य तथ्यों के महत्व पर भी गौर किया और कहा, "इस स्तर पर प्रथम दृष्टया इन्हें कमज़ोर नहीं कहा जा सकता।"

अदालत ने सह-आरोपी देवांगना कलिता, नताशा नरवाल और आसिफ इकबाल तन्हा के साथ समानता के तर्कों को भी खारिज कर दिया। कलिता, नरवाल और तन्हा को पहले ज़मानत मिल चुकी थी।

उच्च न्यायालय ने कहा कि पूरी साज़िश में अपीलकर्ता शरजील और खालिद की भूमिका प्रथम दृष्टया गंभीर है, जिन्होंने मुस्लिम समुदाय के सदस्यों को बड़े पैमाने पर लामबंद करने के लिए सांप्रदायिक आधार पर भड़काऊ भाषण दिए थे।

उच्च न्यायालय की पीठ ने 3000 पृष्ठों के आरोपपत्र और 30,000 पृष्ठों के इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य और गवाहों की संख्या को देखते हुए कहा कि मुकदमे की गति स्वाभाविक रूप से आगे बढ़ेगी।

पीठ ने कहा, "जल्दबाजी में मुकदमा चलाना अपीलकर्ताओं और सरकार दोनों के अधिकारों के लिए हानिकारक होगा।"

गौरतलब है दिल दहलाने वाले इन दंगों के सिलसिले में 14 सितंबर, 2020 को दिल्ली पुलिस ने खालिद को गिरफ्तार किया और तब से वह जेल में बंद है। दिल्ली पुलिस के अनुसार इन दंगों में 54 लोग मारे गए थे और 700 से अधिक घायल हुए थे।

उच्च न्यायालय ने खालिद और इमाम के अलावा अन्य आरोपियों अतहर खान, अब्दुल खालिद सैफी, मोहम्मद सलीम खान, शिफा उर रहमान, मीरान हैदर, गुलफिशा फातिमा और शादाब अहमद की भी इसी तरह की जमानत याचिका खारिज कर दी थी।


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