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दिल्ली हाईकोर्ट यासीन मलिक को मौत की सजा की मांग वाली एनआईए की याचिका पर फरवरी में सुनवाई करेगा

दिल्ली हाईकोर्ट ने जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के प्रमुख यासीन मलिक को मौत की सजा देने की मांग वाली एनआईए की याचिका पर सुनवाई 14 फरवरी 2024 तक के लिए टाल दी

दिल्ली हाईकोर्ट यासीन मलिक को मौत की सजा की मांग वाली एनआईए की याचिका पर फरवरी में सुनवाई करेगा
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नई दिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार को जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (जेकेएलएफ) के प्रमुख यासीन मलिक को मौत की सजा देने की मांग वाली एनआईए की याचिका पर सुनवाई 14 फरवरी 2024 तक के लिए टाल दी। यासीन आतंकी फंडिंग मामले में उम्रकैद की सजा काट रहा है।

न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत और न्यायमूर्ति शलिंदर कौर की पीठ ने तिहाड़ जेल के जेल अधीक्षक को सुनवाई की अगली तारीख पर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग (वीसी) के माध्यम से मलिक को जेल से पेश करने का भी निर्देश दिया।

पिछले साल मई में मलिक ने अपना गुनाह कबूल कर लिया था। मलिक को एक विशेष एनआईए अदालत ने आतंकी फंडिंग मामले में उम्रकैद की सजा सुनाई थी और आईपीसी की विभिन्न धाराओं के तहत अपराध का दोषी ठहराया था।

एनआईए ने ट्रायल कोर्ट के आदेश को चुनौती दी है और मलिक के लिए मौत की सजा की मांग की है। पिछली बार अगस्त में दोषी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए कोर्ट में पेश हुआ था। 29 मई को सॉलिसिटर जनरल (एसजी) तुषार मेहता ने कहा था कि मलिक ने बहुत चतुराई से अपराध स्वीकार करके मौत की सजा को टाल दिया।

उन्होंने तर्क दिया था, ''मुद्दा हमें परेशान कर रहा है कि कोई भी आतंकवादी आ सकता है, आतंकवादी गतिविधियां कर सकता है और अदालत कह सकती है कि क्योंकि उसने अपना गुनाह कबूल कर लिया है, इसलिए हम उसे उम्रकैद की सजा दे रहे हैं। हर कोई यहां आएगा और दोष स्वीकार करके मुकदमे से बच जाएगा क्योंकि उन्हें पता होगा कि अगर वे मुकदमे में प्रवेश करेंगे तो फांसी ही होगी।''

हाईकोर्ट ने 29 मई को एनआईए की याचिका पर मलिक को बुधवार के लिए पेशी वारंट भी जारी किया था। हालांकि, 4 अगस्त को अदालत ने अपने आदेश में संशोधन किया और तिहाड़ जेल अधीक्षक के तत्काल आवेदन को अनुमति दे दी, जिसमें सुरक्षा मुद्दों का हवाला देते हुए उन्हें वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से पेश करने की मांग की गई थी।

पिछले साल राष्ट्रपति द्वारा जारी आदेश का हवाला देते हुए, जेल अधिकारियों की ओर से पेश हुए दिल्ली सरकार के स्थायी वकील संजय लाओ ने कहा था, ''मलिक समाज के लिए खतरा है और इसलिए उसे एक साल या मुकदमा पूरा होने तक जेल से बाहर नहीं निकाला जाएगा या दिल्ली से बाहर नहीं ले जाया जाएगा।''

21 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट अपने सामने मलिक को देखकर तब दंग रह गया जब वह जम्मू की एक विशेष अदालत के आदेश के खिलाफ सीबीआई द्वारा दायर अपील में उपस्थित हुआ था, जिसमें उसके खिलाफ अपहरण और हत्या के मामलों की सुनवाई के लिए उसे फिजिकल रूप से पेश होने के लिए कहा गया था। लाओ ने अदालत को उपरोक्त घटना से भी अवगत कराया था।

राष्ट्रपति द्वारा जारी आदेश को ध्यान में रखते हुए, अदालत ने कहा था, "मामले को देखते हुए 29 मई 2023 के आदेश को आवश्यक रूप से इस हद तक संशोधित किया जाता है कि जेल अधीक्षक को 9 अगस्त को यासीन मलिक को अकेले वीसी के माध्यम से पेश करने का निर्देश दिया जाता है, व्यक्तिगत रूप से नहीं। आवेदन में कोई और निर्देश पारित करना जरूरी नहीं है। आवेदन स्वीकार किया जाता है और तद्नुसार उसका निस्तारण किया जाता है।"

जेल प्राधिकरण ने सुनवाई के दौरान मलिक की व्यक्तिगत उपस्थिति का निर्देश देने वाले हाईकोर्ट के आदेश में संशोधन की मांग करते हुए कहा था कि दोषी को "बहुत उच्च जोखिम" कैदी के रूप में चिह्नित किया गया है, इसलिए उसे वीसी के माध्यम से कार्यवाही में शामिल होने की अनुमति दी जानी चाहिए।


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