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दिल्ली हाईकोर्ट ने सलमान खुर्शीद की किताब पर रोक लगाने की मांग वाली याचिका खारिज की

दिल्ली हाईकोर्ट ने गुरुवार को पूर्व केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद की विवादास्पद किताब के प्रकाशन, प्रसार और बिक्री को रोकने के लिए निर्देश देने की मांग वाली एक याचिका को खारिज कर दिया

दिल्ली हाईकोर्ट ने सलमान खुर्शीद की किताब पर रोक लगाने की मांग वाली याचिका खारिज की
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नई दिल्ली, दिल्ली हाईकोर्ट ने गुरुवार को पूर्व केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद की विवादास्पद किताब के प्रकाशन, प्रसार और बिक्री को रोकने के लिए निर्देश देने की मांग वाली एक याचिका को खारिज कर दिया। याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में यह करते हुए इसके प्रकाशन एवं बिक्री पर रोक लगाने की मांग की थी कि खुर्शीद ने अपनी पुस्तक 'सनराइज ओवर अयोध्या: नेशनहुड इन आवर टाइम्स' में हिंदुत्व की तुलना आईएसआईएस और बोको हराम जैसे आतंकवादी समूहों के जिहादी इस्लाम से की है।

अधिवक्ता राज किशोर चौधरी ने याचिकाकर्ता अधिवक्ता विनीत जिंदल की ओर से पेश हुए अपनी दलीलें रखी। याची ने कांग्रेस नेता की किताब के पृष्ठ 113 पर 'द सैफरोन स्काई' शीर्षक अध्याय के तहत पुस्तक से एक अंश का हवाला देते हुए कहा कि पुस्तक की सामग्री हिंदू धर्म को आईएसआईएस और बोको हराम के बराबर होने का दावा करती है, जो आतंकवादी समूह हैं।

उन्होंने दलील देते हुए कहा कि यह पूरे हिंदू समुदाय के लिए काफी उत्तेजक और मानहानिकारक बयान है और एक समाज के बारे में उनके मूल्यों और गुणों पर भी सवाल उठता है। याचिका में कहा गया है कि आईएसआईएस और बोको हराम के लिए हिंदू धर्म की तुलना को एक नकारात्मक विचारधारा के रूप में माना जा सकता है।

सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा की पीठ ने मौखिक रूप से कहा कि यह किताब का एक अंश मात्र है। इसके अलावा, वकील ने तर्क दिया कि पुस्तक सांप्रदायिक समस्याएं पैदा करेगी और फिर अंश को हटाने का अनुरोध किया।

न्यायाधीश ने याचिका को खारिज करते हुए कहा, "सभी को बताएं कि किताब बुरी तरह से लिखी गई है। उन्हें कुछ बेहतर पढ़ने के लिए कहें। अगर लोग इतने संवेदनशील हैं तो हम क्या कर सकते हैं। आखिर किसी ने उन्हें इसे पढ़ने के लिए नहीं कहा है।"

याचिका के अनुसार, आईएसआईएस और बोको हराम के साथ हिंदू धर्म की तुलना एक नकारात्मक विचारधारा के साथ ही उन चीजों का अपमान भी है, जिसका हिंदू पालन कर रहे हैं।

इसके अलावा याचिकाकर्ता ने अदालत में कहा कि भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का गलत फायदा नहीं उठाया जाना चाहिए। किसी भी व्यक्ति को दूसरों की भावनाओं का उल्लंघन करने का अधिकार नहीं है। इसमें कहा गया है कि इस किताब में अनुच्छेद 19 में दर्ज उचित प्रतिबंधों का उल्लंघन किया गया है।


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