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भारतीय संस्कृति एवं परम्परा के प्रतीक थे दीनदयाल उपाध्याय: आनंदीबेन

उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदी बेन पटेल ने आज कहा कि भारतीय संस्कृति एवं परम्परा के प्रतीक, राजनीति के पुरोधा, बहुमुखी प्रतिभा के धनी और लक्ष्य अंत्योदय-प्रण अंत्योदय-पंथ अंत्योदय..

भारतीय संस्कृति एवं परम्परा के प्रतीक थे दीनदयाल उपाध्याय: आनंदीबेन
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लखनऊ। उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदी बेन पटेल ने आज कहा कि भारतीय संस्कृति एवं परम्परा के प्रतीक, राजनीति के पुरोधा, बहुमुखी प्रतिभा के धनी और लक्ष्य अंत्योदय-प्रण अंत्योदय-पंथ अंत्योदय... एकात्म मानववाद के प्रणेता पंडित दीनदयाल उपाध्याय देश के उन महान सपूतों में थे, जिन्होंने देश और समाज की सेवा करते हुए अपना सारा जीवन राष्ट्र के चरणों में अर्पित कर दिया।

राज्यपाल ने आज राजभवन लखनऊ से दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय में स्थापित दीनदयाल उपाध्याय शोध पीठ द्वारा आयोजित ‘पण्डित दीनदयाल जी का एकात्म मानवदर्शन: सतत् विकास का व्यवहार्य मार्ग’ विषयक त्रिदिवसीय अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का आनलाइन उद्घाटन करते हुए व्यक्त किये। उन्होंने कहा कि पं0 दीनदयाल उपाध्याय सामान्य व्यक्ति, सक्रिय कार्यकर्ता, कुशल संगठक और मौलिक विचारक के साथ-साथ समाजशास्त्री, अर्थशास्त्री एवं दार्शनिक भी थे।

एकात्म मानववाद व अंत्योदय के विचारों से उन्होंने देश को एक प्रगतिशील विचारधारा दी । उनका सामाजिक जीवन समरसता व राष्ट्रभक्ति का अनुपम उदाहरण है।

राज्यपाल ने कहा कि दीनदयाल जी ने दुनिया के समक्ष उपस्थित चुनौतियों से लड़ने के लिये जिस तत्व चिन्तन को प्रस्तुत किया, उसे ‘एकात्म मानवदर्शन के रूप में जाना जाता है। देश की आर्थिक समस्याओं पर उन्होंने गहन चिन्तन किया था। इसीलिए उनका मानवतावादी दर्शन समस्त मानव मात्र के लिये कल्याणकारी था। उन्होंने ममता, समता और बन्धुत्व की भावना को प्रतिष्ठापित करने के लिये एकात्म मानववाद का दर्शन प्रस्तुत किया।

आनंदीबेन पटेल ने कहा कि राष्ट्रहित, चिन्तन, उच्च विचार, मानवीय मूल्य और सादगी सभी एक साथ पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी के व्यक्तित्व में जीवन्त रूप में देखने को मिलते थे। वे मानव ही नहीं, बल्कि मानव से बहुत ऊंचे थे। वे समाज में समता, ममता, बंधुत्व के प्रेरक और गरीबों के प्रति समर्पित थे। राष्ट्र के लिये समर्पित एक निष्काम कर्मयोगी के रूप में उनका जीवन उच्च आदर्शों और सादगी का अभूतपूर्व उदाहरण था।

दीनदयाल जी का मानना था कि शिक्षा और विचार धाराओं के द्वारा प्रत्येक व्यक्ति को समाजनिष्ठ बनाया जाये।उन्होंने कहा कि देश के आर्थिक विकास का आधार खेती है। इसीलिये किसानों को आत्मनिर्भर बनाना होगा, क्योंकि खेती से ही उद्योग आगे बढ़ेंगे, जिनके उत्पाद बाजार में आने से लोगों की जरूरत पूरी होगी तथा राजस्व भी प्राप्त होगा। इसलिये ये बेहद जरूरी है कि किसान आत्मनिर्भर हों।


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