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पूर्वोत्तर की बेटियां अब जर्मनी के अस्पतालों में दिखाएंगी हुनर

पूर्वोत्तर भारतीय राज्य मेघालय अपने युवाओं को विदेशी भाषाओं में ट्रेनिंग देकर काम करने बाहर भेज रहा है. इससे युवाओं के लिए नए रास्ते खुल रहे हैं

पूर्वोत्तर की बेटियां अब जर्मनी के अस्पतालों में दिखाएंगी हुनर
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पूर्वोत्तर भारतीय राज्य मेघालय अपने युवाओं को विदेशी भाषाओं में ट्रेनिंग देकर काम करने बाहर भेज रहा है. इससे युवाओं के लिए नए रास्ते खुल रहे हैं.

पूर्वोत्तर भारत के राज्य मेघालय ने अब अपने युवाओं को अंतरराष्ट्रीय मंचों तक पहुंचाने की गंभीर पहल की है. राज्य सरकार ने जर्मन संस्थाओं के सहयोग से एक विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू किया है, जिसके तहत नर्सिंग और हेल्थ सेक्टर से जुड़े युवा अब जर्मनी में नौकरी कर सकेंगे.

शुरुआत के लिए 20 युवाओं का एक बैच चुना गया है जिन्हें छह महीने तक जर्मन भाषा का बी2 स्तर तक प्रशिक्षण दिया जा रहा है. इसके बाद वीजा और इंटरव्यू की प्रक्रिया पूरी होने पर उनकी नियुक्ति जर्मनी के अस्पतालों में की जाएगी.

योजना नहीं, निवेश है

मुख्यमंत्री कोनराड संगमा इस कार्यक्रम को आर्थिक और सामाजिक परिवर्तन की एक शुरुआत मानते हैं. उनके अनुसार, "अगर हम 30,000 पेशेवरों को विदेश भेजने में सफल होते हैं, तो वे हर महीने करीब 250 करोड़ रुपये राज्य में भेज सकते हैं. यह रकम सालाना 3,000 करोड़ रुपये तक पहुंच सकती है.” मुख्यमंत्री का कहना है कि यह योजना केवल एक नौकरी कार्यक्रम नहीं है, बल्कि एक रणनीतिक निवेश है जो राज्य की युवा आबादी को वैश्विक ताकत में बदल सकता है.

कार्यक्रम की औपचारिक शुरुआत शिलॉन्ग में हुई जहां कोलकाता स्थित जर्मन वाणिज्य दूतावास की डिप्टी काउंसिल जनरल आंद्रेया येस्के और पीपल2हेल्प संस्था के कंट्री डायरेक्टर जनरल यान एबेन भी मौजूद थे. येस्के ने कहा, "जर्मन स्वास्थ्य प्रणाली को 2035 तक लाखों कुशल पेशेवरों की जरूरत होगी, और भारत जैसे देशों से सहयोग अनिवार्य है. मेघालय की यह पहल समय की मांग के अनुरूप है.” उन्होंने आगे कहा, "हम इन युवाओं को सिर्फ स्वास्थ्य पेशेवर नहीं, बल्कि भारत और जर्मनी के बीच सांस्कृतिक समझ के दूत के रूप में देखते हैं.”

महिलाएं बढ़ा रही हैं भरोसा

इस योजना में भाग ले रही एक युवती ने डीडब्ल्यू को बताया, "मेरी एक रिश्तेदार जापान में काम कर रही है. उसे देखकर ही मैंने इस कार्यक्रम में हिस्सा लेने का फैसला किया. अब मैं विदेश में अपने परिवार का नाम रोशन करना चाहती हूं.”

यह बयान उन कई लड़कियों की भावनाओं को जाहिर करता है जो सीमित संसाधनों और अवसरों के बावजूद अपने जीवन को बदलने के लिए तैयार हैं.

सामाजिक संगठनों ने भी इस पहल का स्वागत किया है. एक स्थानीय संगठन के सचिव जोबी लिंगदोह ने कहा, "यह कार्यक्रम बाकी युवाओं को भी प्रेरित करेगा, लेकिन इसे केवल एक बार की पहल न बनाकर नियमित और स्थायी कार्यक्रम में बदला जाना चाहिए.”

वहीं एक महिला संगठन की प्रमुख ईके संगमा ने इसे महिला सशक्तिकरण की दिशा में एक बड़ी पहल बताया. उन्होंने कहा, "युवतियों की भागीदारी दिखाती है कि वे अब पूर्वोत्तर की सीमाओं से निकलकर दुनिया में अपनी जगह बनाने को तैयार हैं.”

सम्मान भी जरूरी

हालांकि इस पहल के फायदे स्पष्ट हैं, लेकिन कुछ महत्वपूर्ण सवाल भी उठते हैं. क्या स्थानीय स्वास्थ्य सेवाएं तब प्रभावित होंगी जब कुशल प्रोफेशनल विदेश जाएंगे? क्या विदेशों में काम करने वाले युवाओं के अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित की जाएगी? मुख्यमंत्री संगमा का कहना है, "हमारी योजना में यह सुनिश्चित किया गया है कि हर प्रतिभागी को सुरक्षित, सम्मानजनक और पेशेवर माहौल में काम करने का अवसर मिले.”

मेघालय सरकार पहले ही जापान और सिंगापुर में इस तरह के मॉडल पर काम कर चुकी है. अब जर्मनी के साथ साझेदारी इस प्रयास को और व्यापक बनाने जा रही है. हाल ही में जापान की एक प्रमुख रोजगार एजेंसी का प्रतिनिधिमंडल भी मुख्यमंत्री से मिला और शिलांग में जापानी भाषा अकादमी खोलने पर चर्चा हुई.

मुख्यमंत्री ने स्पष्ट शब्दों में कहा, "यह सिर्फ भाषा प्रशिक्षण नहीं, बल्कि वैश्विक करियर की ओर पहला कदम है.”


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