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पंचों-सरपंचों पर मंडरा रहा खतरा कश्मीर में

कश्मीर में लोकतंत्र की जड़ कहे जाने वाले पंचों और सरपंचों पर खतरा फिर से मंडराने लगा है।

पंचों-सरपंचों पर मंडरा रहा खतरा कश्मीर में
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पंचों-सरपंचों पर मंडरा रहा खतरा कश्मीर में, क्योंकि दहशत फैलाने की मुहिम में निशाने पर हैं वे

जम्मू । कश्मीर में लोकतंत्र की जड़ कहे जाने वाले पंचों और सरपंचों पर खतरा फिर से मंडराने लगा है। ऐसा इसलिए क्योंकि कश्मीर में माहौल को दहशतजदा करने की अपनी मुहिम के तहत आतंकियों ने हमेशा ही पंचों व सरपंचों को निशाना बनाया है। ताजा घटनाक्रम में आतंकियों ने एक महिला सरपंच को अगवा कर उसे त्यागपत्र देने का निर्देश देकर छोड़ दिया है।

यह घटना सोपोर में हुई है। पांच दिन पहले ही आतंकियों ने एक कश्मीरी पंडित सरपंच अजय पंडिता की हत्या कर दी थी। वैसे पंडिता पहले ऐसे सरपंच या पंच नहीं थे जिनकी हत्या आतंकियों ने कश्मीर में इसलिए की थी क्योंकि वे कश्मीरियों को दहशतजदा करना चाहते थे।

आधिकारिक रिकार्ड कहता था कि पिछले 4 सालों में 10 सरपंचों और करीब दो दर्जन पंचों की हत्याएं आतंकियों द्वारा की जा चुकी हैं। अधिकारी खुद मानते हैं कि आम कश्मीरी तथा राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं में आतंक फैलाने की खातिर आतंकियों ने हमेशा ही लोकतंत्र की जड़ कहते जाने वाले पंचों व सरपंचों को निशाना बनाया था। यह बात अलग है कि पिछले 29 सालों के भीतर उन्होंने एक हजार से अधिक वरिष्ठ राजनीतिज्ञों को मौत के घाट भी उतारा है।

ताजा घटनाओं के बाद पंचों व सरपंचों में इस्तीफा देने की होड़ लगेगी इससे कोई इंकार नहीं करता। पिछले साल भी एक सरपंच के भाई सिख युवक की हत्या के बाद सिर्फ पुलवामा में ही 30 पंचों व सरपंचों ने त्यागपत्र दे दिया था।

पंचों व सरपंचों द्वारा इस्तीफे देने के पीछे का सबसे बड़ा कारण सुरक्षा की भावना है, जो इसलिए है क्योंंिक प्रशासन उन्हें सुरक्षा मुहैया करवाने में हमेशा असफल रहा है। अजय पंडिता के मामले को ही लें, पिछले दो महीनों से सुरक्षा की मांग करते हुए वह बीसियों चक्कर सुरक्षाधिकारियों के पास काट चुका था पर सुरक्षा नहीं मिली और वह जिन्दगी की जंग हार गया।

दरअसल अधिकारी कहते हैं कि कश्मीर में 20 हजार से अधिक पंच-सरपंचों के पद हैं और इतनी तादाद में सुरक्षाकर्मियों की उपलब्धता मुश्किल है। यह बात अलग है कि दावों के बावजूद अभी भी कश्मीर में 13 हजार के करीब पंचों व सरपंचों के पद नहीं भरे जा सके हैं। यह पद कहीं आतंक के चलते चुनावों के न होने और कहीं पर आतंकी दहशत के मारे इस्तीफे देने से खाली हो चुके हैं।

--सुरेश एस डुग्गर--


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