शांति और चुप्पी के बीच पल रहा खतरा
प्रधानमंत्री मोदी 2-3 जनवरी को लक्षद्वीप में थे। यहां समुद्र किनारे टहलते, बैठे, गोताखोरी की पोशाक में उनके कई वीडियो और तस्वीरें सोशल मीडिया पर छाई रहीं

प्रधानमंत्री मोदी 2-3 जनवरी को लक्षद्वीप में थे। यहां समुद्र किनारे टहलते, बैठे, गोताखोरी की पोशाक में उनके कई वीडियो और तस्वीरें सोशल मीडिया पर छाई रहीं। खुद प्रधानमंत्री ने यहां की कुछ तस्वीरों को साझा करते हुए कहा- प्राकृतिक सुंदरता के अलावा लक्षद्वीप की शांति भी मंत्रमुग्ध कर देने वाली है।
बेशक चुनावी, सियासी और धार्मिक व्यस्तताओं के बीच समुद्र की लहरों के शोर में श्री मोदी को शांति का अनुभव हुआ होगा। लेकिन उनकी लक्षद्वीप यात्रा के बाद एक अनावश्यक विवाद खड़ा हो गया है, जिससे अशांति के खतरे बढ़ रहे हैं। न जाने किस सोच के तहत लक्षद्वीप और मालदीव की तुलना शुरु हो गई। फिर मालदीव की नयी सरकार के दो-तीन मंत्रियों ने मोदीजी की तस्वीरों और भारत के पर्यटन व आतिथ्य उद्योग पर आपत्तिजनक टिप्पणी कर दी, मालदीव सरकार ने उनके बयानों से किनारा करते हुए उन्हें सरकार से बर्खास्त भी कर दिया।
लेकिन अब भी विवाद चल ही रहा है। राष्ट्रवाद के उन्मादी चैनल मालदीव को घुटने पर लाने, मालदीव के आका चीन को सबक सिखाने जैसे शीर्षकों से खबरें देने लगे हैं। यह बात समझ से परे है कि आखिर हम किस तरह की विदेश नीति को लागू करना चाहते हैं, जिसमें अपने पड़ोसियों से सौहार्द्रपूर्ण संबंध की जगह लड़ने-भिड़ने-झुकाने की बातें होने लगी हैं। कभी हम पाकिस्तान के लिए घर में घुसकर मारने की बात कहते हैं, कभी नेपाल की बाहें मरोड़ते हैं और कभी मालदीव को घुटने पर लाते हैं। हालांकि चीन का नाम लेने से भी घबराते हैं।
खैर अभी किस प्रयोजन से मालदीव का विवाद खड़ा किया गया है, इसका खुलासा शायद निकट भविष्य में हो। क्योंकि यह खुला तथ्य है कि भारत के फिल्मी सितारों से लेकर रईसों के लिए मालदीव छुट्टियां बिताने के लिए पसंदीदा स्थल है। बेशक भारत में एक से बढ़कर एक खूबसूरत पर्यटक स्थल हैं, लेकिन अधिकतर संपन्न और सक्षम भारतीय छुट्टियां बिताने के लिए विदेश ही जाना चाहते हैं। विदेशी पर्यटक भारत की विविधता भरी संस्कृति, प्राकृतिक सौंदर्य, ऐतिहासिक धरोहरों को देखने के लिए भारत आते हैं।
देश में पसरी हुई गंदगी, विदेशी के नाम पर कई बार होने वाली ठगी, अभद्रता, असुरक्षा के बावजूद भारत के अनूठेपन को महसूस करने के लिए विदेशी सैलानी सदियों से भारत आते रहे हैं और आते रहेंगे। लेकिन अधिकतर भारतीयों के लिए पर्यटन का अर्थ अब नयी जगहों को देखना, खान-पान, संस्कृति की विविधता का आनंद उठाना न रहकर, दिखावा हो गया है। कुदरत की खूबसूरत को आंखों से होकर दिल में उतारने और इतनी सुंदर कायनात का हिस्सा होने पर रोमांचित होने की जगह अब इस बात को गर्व का विषय बनाया जाने लगा है कि किसने कितनी बार विदेशों में छुट्टियां बिताईं और कितनी खरीदारी विदेशी बाजार से की और कैसे पांच सितारा सुविधाओं का लुत्फ उठाया। अब इन्हीं संपन्न और सक्षम लोगों में से कुछ ने अचानक लक्षद्वीप को बढ़ावा देना शुरु कर दिया है। इनमें वो फिल्मी सितारे भी हैं, जिन्होंने नए साल का जश्न मालदीव में मनाया और दो दिन भारत के लोगों को लक्षद्वीप जैसे स्थलों को बढ़ावा देने के उपदेश देने लगे। इस दुचित्तेपन का कोई इलाज नहीं है, ये तो लोगों को अपने विवेक से समझना होगा कि जिन लोगों को उन्होंने अपना नायक बना कर रखा है, उनकी कथनी और करनी में कितना फर्क है।
जहां तक सवाल लक्षद्वीप के पर्यटन को बढ़ावा देने का है, तो यह काम बेशक प्रधानमंत्री, उनकी सरकार और समर्थक करें, लेकिन इसके साथ उन सवालों पर भी विचार कर लें, जिनकी वजह से एक खूबसूरत स्थल में शांति की जगह विकास का शोर हावी हो जाएगा। मोदीजी जब लक्षद्वीप की शांति को सोशल मीडिया पर साझा कर रहे थे, उसी दौरान मनाली की भी तस्वीरें सामने आई थीं, जहां कई किलोमीटर तक कारों की कतार लगी थी। हिमाचल के इस सुंदर पर्यटन स्थल पर अब छुट्टियां मनाने लोगों की भीड़ उमड़ती है। हर साल ऐसी तस्वीरें सामने आती हैं जब कुल्लू-मनाली, शिमला, या इसी तरह के हिल स्टेशन पर पर्यटकों का बोझ बढ़ जाता है। लोगों को प्राकृतिक नजारों का आनंद तो लेना है, लेकिन उसके लिए जरा सा भी कष्ट नहीं उठाना है। इसलिए पर्यटकों की सुविधा के लिए कहीं पहाड़ खोदकर सुरंग बनाई जाती है, कहीं जंगल काटकर रास्ते बनाए जाते हैं।
नवंबर में सिलक्यारा सुरंग का जो हादसा हुआ, वह भी ऐसी ही एक परियोजना का हिस्सा है, जिसमें पर्यटक चारों धाम की यात्रा आसानी से कर लें। उत्तराखंड में केदारनाथ हादसे के वक्त भी हताहतों की संख्या इसलिए बढ़ी क्योंकि जरूरत से अधिक पर्यटक वहां मौजूद थे। नदी, जंगल, तालाब, पहाड़, रेगिस्तान, समुद्री किनारे, खाइयां, गुफाएं, हर तरह की धन-संपदा प्रकृति ने भारत पर लुटाई है, और भारतीय उतनी ही बेरहमी से इस संपदा को खत्म होते भी देख रहे हैं। लक्षद्वीप की बात करने वालों ने शायद अंडमान-निकोबार द्वीप समूह में काटे जा रहे वनों और आदिवासी संस्कृति के साथ हो रहे खिलवाड़ की ओर कभी ध्यान नहीं दिया। मुंबई के बीच में ही आरे वन को मेट्रो शेड के लिए काटा गया और उसका विरोध हुआ तो लक्षद्वीप की वकालत करने वाले फिल्मी सितारों ने चुप्पी साध ली। अभी छत्तीसगढ़ में हसदेव के जंगलों के लाखों पेड़ों को काटने की तैयारी है और कई हजार पेड़ काटे जा चुके हैं। यहां कोयले का भंडार है, जिसे निकालकर खरबपतियों को अपनी जेब का वजन और ज्यादा बढ़ाना है। जंगल के कटने से जैव विविधता, जंगली जानवर, आदिवासी सबका अस्तित्व खतरे में आ चुका है, लेकिन एक अजीब सी चुप्पी सत्ता के ऊपरी स्तरों पर पसरी हुई है।
शांति और चुप्पी के बीच देश की प्राकृतिक धरोहर और प्रचुर संपदा के लिए बढ़ रहे खतरे को पहचानने की जरूरत है।


