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कोटा में लगातार बारिश के दौर से फसलों को नुकसान

राजस्थान के कोटा संभाग में गत पांच दिनों से जारी बारिश किसानों के खेतों में बर्बादी का मंजर उत्पन्न कर रही है

कोटा में लगातार बारिश के दौर से फसलों को नुकसान
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कोटा। राजस्थान के कोटा संभाग में गत पांच दिनों से जारी बारिश किसानों के खेतों में बर्बादी का मंजर उत्पन्न कर रही है। संभाग के कोटा, बूंदी, बारां और झालावाड़ जिलों में पिछले चार-पांच दिनों से शुरू हुआ बे-मौसम बरसात का यह दौर कई जगह अब भी जारी रहा जबकि कल आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा का दिन था।

कोटा जिले में सांगोद क्षेत्र के कुराडिया कलां गांव निवासी प्रगतिशील किसान उम्मेद सिंह कुराडिया ने बताया पिछले कृषि सत्र रबी में लहसुन के उचित दाम नहीं मिलने से किसान अभी पूरी तरह से उभरा भी नहीं था कि अब खेतों में बे-मौसम बरसात के कहर से जमीन पर बिखरी पड़ी सोयाबीन-धान की फसल किसानों की बर्बादी की नई इबारत लिख रही है। सांगोद क्षेत्र के ज्यादातर गांव में बीते दिनों में हुई अतिवृष्टि में यह ही नजारा नुमाया किया है, उसे देखते हुए किसानों को अपनी इस बर्बादी को समेटने में भी आने वाले कई दिन लग जाने वाले हैं।

श्री सिंह ने बताया कि फसलों की बर्बादी का यह आलम अकेले उनके कुराड़िया कलां गांव में नहीं है बल्कि इस क्षेत्र के कुंदनपुर, विनोद कलां, राजगढ़, अडूसा, पालकिया, मंडीता, किशनपुरा, घाटोलिया, सूंडक्या, कांगणिया, मंडाप, थूणपुर आदि गांव में कमोबेश ऐसे ही हालात हैं। उन्होंने बताया कि बरसात और तेज हवाओं के असर से खेतों में खड़ी धान की फसल अब धरती पर आडी पड़ी है जिसे बे-मौसम बरसात का दौर शुरू होने से पहले किसान काटने की तैयारी कर रहे थे।

उन्होंने बताया कि सोयाबीन की फसल की बर्बादी के हालात तो और भी अधिक है क्योंकि इलाके के ज्यादातर किसानों ने पक जाने के बाद सोयाबीन की कटाई करवा दी थी लेकिन ज्यादातर फसलें कटकर खेतों में ही पड़ी थी जिसे थ्रेसर से निकालने की तैयारी की ही जा कही थी कि असमय बरसात का दौर शुरू हो गया और खेतों में पड़ी सोयाबीन वहां पड़े-पड़े पानी में डूब गई। अब ज्यादातर फ़सल किसी उपयोग की नहीं रह गई है क्योंकि बरसात का दौर थमेगा तब भी सूखने से पहले या तो तरबतर होने के कारण फूल कर सड़ने लगेगी या फिर पड़ी-पड़ी फूटने (उगने) लगेगी और दोनों ही स्थितियों में यह किसी काम की नहीं रहेगी। सूखने के बाद यदि इसे थ्रेसर से निकाला भी तो बुरादा ही हाथ आएगा जिसका कोई मोल नही है इसलिए किसानों की बेहतरी इसे नष्ट कर देने में ही रहने वाली है।.


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