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गंगा की अविरलता में बांध किसी भी रूप में बाधक नहीं है : विजय गोयल

 जीवनदायिनी नदी गंगा दिन पर दिन सूख रही है

गंगा की अविरलता में बांध किसी भी रूप में बाधक नहीं है : विजय गोयल
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नई दिल्ली। जीवनदायिनी नदी गंगा दिन पर दिन सूख रही है। गंगा के लिए करोड़ों रुपये की सरकारी योजनाएं जरूर हैं, लेकिन किसी नदी की जिंदगी के लिए परियोजनाओं की नहीं, पानी की जरूरत होती है, और गंगा का पानी उत्तराखंड में भागीरथी नदी पर बांध बनाकर रोक लिया गया है। लेकिन बांध से जुड़े एक शीर्ष अधिकारी का दावा है कि गंगा की अविरलता में बांध किसी भी रूप में बाधक नहीं है, अलबत्ता यह गर्मी के मौसम में नदी की अविरलता बनाए रखने में मदद करता है।

टीएचडीसी इंडिया लिमिटेड (टीएचडीसीआईएल) के निदेशक (कार्मिक) विजय गोयल का कहना है कि मॉनसून के तीन महीने की अवधि के बाद जितना पानी बांध में आता है, उसका तीन गुना पानी गंगा नदी में बांध से छोड़ा जाता है। इस तरह यह बांध गंगा नदी के प्रवाह को बनाए रखने में मदद कर रहा है।

टीएचडीसीएल केंद्र सरकार और उत्तर प्रदेश सरकार का एक संयुक्त उद्यम है, जिसे मिनीरत्न कंपनी का दर्जा प्राप्त है। देश के सबसे ऊंचे और एशिया के दूसरे सबसे ऊंचे टिहरी बांध का स्वामित्व इसी कंपनी के पास है।

गोयल ने कहा, "मॉनसून के तीन महीनों को छोड़ दें तो उसके बाद टिहरी जलाशय में भागीरथी नदी से मात्र 50-60 क्यूमेक्स पानी आता है, जबकि बांध से 150 क्यूमेक्स पानी गंगा नदी के लिए छोड़ा जाता है। यदि यह बांध न होता, तब गंगा की हालत आज से भी बुरी होती।"

उन्होंने आगे कहा, "भागीरथी में 75 प्रतिशत पानी मॉनसून के तीन महीने में आता है, जब 500 से 1,000 क्यूमेक्स का बहाव रहता है। बाकी नौ महीने में 25 प्रतिशत पानी आता है। हम तीन महीने का पानी जुटाकर बाकी नौ महीनों में उसे खर्च करते हैं।"

गोयल का तर्क अपनी जगह जायज हो सकता है, लेकिन जमीनी हकीकत को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। जिस गंगाजल से लोग आचमन करते रहे हैं, आज उसमें जगह-जगह काई जम गई है। काई जमने का सीधा अर्थ होता है कि जल में प्रवाह नहीं है। गंगातट पर बसे दुनिया के एक सबसे प्राचीन शहर वाराणसी में गंगा का पानी अस्सी घाट से आदिकेश्वर घाट तक सीढ़ियों को छोड़कर 30 से 80 फुट दूर चला गया है। पहले गर्मी के दिनों में भी गंगा का पानी 800 मीटर की चौड़ाई में होता था, और गंगा को तैरकर पार करना कठिन होता था, लेकिन आज पानी मात्र 200 मीटर की चौड़ाई में सिमट गया है।

ऐसे में लोगों की उस आस्था का क्या होगा, जिसके लिए लोग काशी जाते हैं, केंद्र सरकार की उस योजना का क्या होगा, जिसके तहत काशी को क्योटो बनाना है, और इलाहाबाद से हल्दिया तक गंगा को परिवहन गलियारे के रूप में इस्तेमाल करना है।

गोयल कहते हैं, "यह चिंता का विषय है, हमें इसपर विचार करना होगा। लेकिन गंगा के पानी की सबसे अधिक खपत पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सिंचाई में हो रही है। इसके अलावा दिल्ली का सोनिया विहार संयंत्र गंगा के पानी से चल रहा है, और 40 लाख दिल्लीवासियों की पानी की जरूरतें गंगा पूरी कर रही है। अब एक नदी पर इतनी निर्भरता, हमें इस पर भी सोचना होगा।"

टिहरी बांध के निर्माण के समय से ही तरह-तरह की आशंकाएं जताई जाती रही हैं, इसे विनाशकारी बताया जाता रहा है। गोयल ने कहा, "टिहरी बांध ने विनाश को रोका है। 2013 में केदारनाथ की त्रासदी के समय भागीरथी में 7,500 क्यूमेक्स से अधिक पानी आया था, और हमने 500 क्यूमेक्स छोड़ा था। यदि बांध न रहा होता तो सारा पानी गंगा में जाता और देवप्रयाग, ऋषिकेश, हरिद्वार में भारी तबाही होती। वैसे भी हमारा बांध भागीरथी नदी पर है। भागीरथी देव प्रयाग में अलकनंदा से मिलती है, तब गंगा बनती है। गंगा में 70 प्रतिशत पानी अलकनंदा का होता है और 30 प्रतिशत ही भागीरथी का।"


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