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जर्जर भवन में पढ़ने को मजबूर दलित-आदिवासी बच्चे

सतना ज़िले के अनेक स्कूल भवन जर्जर अवस्था में है, जिसके कारण छात्रों को पठन-पाठन में कठिनाइयों सामना करना पड़ रहा है

जर्जर भवन में पढ़ने को मजबूर दलित-आदिवासी बच्चे
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भोपाल। सतना ज़िले के अनेक स्कूल भवन जर्जर अवस्था में है, जिसके कारण छात्रों को पठन-पाठन में कठिनाइयों सामना करना पड़ रहा है। सबसे ज्यादा खराब हालत ऊंचेहरा विकासखण्ड के परसमनिया पठार के स्कूलों की है।

इस इलाके में 80 से भी ज़्यादा गांव हैं,जहाँ के बच्चे अनहोनी के डर के साये में पढ़ने को मजबूर हैं। मसलन, झिरिया गांव के सरकारी स्कूल में महाराजपुर और झिरिया के करीब 50 छात्र-छात्रायें नामांकित हैं। ये बच्चे दलित और आदिवासी समुदाय के हैं। इन्हें पढ़ाने लिए यहाँ मात्र एक ही शिक्षक है। स्कूल में कमरा भी एक ही है, जिसमें पहली से पांचवीं तक की कक्षायें एक साथ लगती हैं। कमरा भी पूरी तरह जर्जर है। इसकी दीवारों में बड़ी-बड़ी दरारें पड़ गयी हैं।

दुर्घटना की आशंका से भयभीत बच्चे और शिक्षक अधिकांश समय बाहर खुले में बैठते हैं। बारिश के दिनों में स्कूल की छुट्टी ही रहती है,क्योंकि जब बारिश होती है,तब कमरे की छत से पानी रिसने लगता है और मजबूरन स्कूल की छुट्टी करना पड़ती है। इस स्थिति में बच्चों के माता-पिता भी हमेशा डरे-सहमे रहते हैं। उनका कहना है, कि यदि इस स्कूल भवन को लेकर कोई ठोस पहल नहीं की गई, तो वे अपने बच्चों को वहाँ भेजना बंद कर देंगे। गौरतलब है कि इस स्कूल में छात्राओं के लिए शौचालय की व्यवस्था भी नहीं है।
असमाजिक तत्वों की पनाहगाह

स्कूल के इकलौते कमरे में खिड़कियां और दरवाज़े न होने से यह हमेशा खुला ही रहता है और रात में असमाजिक तत्वों के लिए पनाहगाह बन जाता है। शराबियों और जुआड़ियों की गतिविधियां यहां आसानी से देखी जा सकती हैं।
स्थिति जस की तस

स्कूल भवन की समस्या पर विभागीय अधिकारी और क्षेत्र के जनप्रतिनिधि भी उदासीन हैं। इस दिशा में पिछले तीन सालों में ग्रामीणों और अध्यापक द्वारा संकुल केन्द्र बिचवा, संबंधित शिक्षाधिकारी और स्थानीय विधायक से समस्या के निदान हेतु कई बार आग्रह किया गया,लेकिन नतीजा सिफ़र ही रहा।


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