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दुष्प्रचार साबित हुआ सीडब्ल्यूजी घोटाला

2010 में दिल्ली में आयोजित हुए राष्ट्रमंडल खेल (कॉमनवेल्थ गेम- सीडब्ल्यूजी) से जुड़े कथित मनी लॉंड्रिंग के मामले को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के निवेदन पर दिल्ली की राउज़ एवेन्यू कोर्ट ने बन्द कर दिया

दुष्प्रचार साबित हुआ सीडब्ल्यूजी घोटाला
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2010 में दिल्ली में आयोजित हुए राष्ट्रमंडल खेल (कॉमनवेल्थ गेम- सीडब्ल्यूजी) से जुड़े कथित मनी लॉंड्रिंग के मामले को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के निवेदन पर दिल्ली की राउज़ एवेन्यू कोर्ट ने बन्द कर दिया। इस मामले में कांग्रेस के दिग्गज नेता सुरेश कलमाड़ी समेत 14 लोगों को आरोपी बनाया गया था तथा तब के प्रमुख विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी ने शक की ऊंगलियां तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह और दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित की ओर भी उठाई थी। मामले के करीब एक वर्ष बाद अस्तित्व में आई आम आदमी पार्टी ने भी इसे लेकर शीला दीक्षित की घेराबन्दी की थी जिसका लाभ उसे 2015 के विधानसभा चुनाव में मिला था। दीक्षित के नेतृत्व में शानदार काम कर रही कांग्रेस सरकार की हार हुई थी। उसके बाद हुए 2020 एवं 2025 के चुनावों में कांग्रेस का विधानसभा में नामलेवा तक न रहा।

सीडब्ल्यूजी के शानदार आयोजन ने चाहे दुनिया भर में भारत की प्रतिष्ठा को ऊं चा किया हो, लेकिन इस झूठे मामले की बड़ी कीमत कांग्रेस को चुकानी पड़ी थी। कह सकते हैं कि 2014 में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार को जिन झूठे आरोपों के कारण 2014 के आम चुनावों में हार का मुंह देखना पड़ा था, उनमें कथित 2जी घोटाले और कोयला घोटाले के साथ यह आरोप भी था। भाजपा द्वारा कोल ब्लॉक की नीलामी में लगाये गये बड़े भ्रष्टाचार का आरोप भी ईडी या केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) साबित नहीं कर पाई तथा वह मामला भी बन्द हो गया।

सोनिया गांधी, राहुल गांधी समेत पांच लोगों के खिलाफ नेशनल हेराल्ड मामला हो या प्रियंका गांधी के पति रॉबर्ट वाड्रा का हरियाणा में कथित जमीन खरीद घोटाला, सरकार की जांच एजेंसियां अब तक पूछताछ ही कर रही हैं। साफ है कि कांग्रेस को इन घोटालों द्वारा भाजपा द्वारा बदनाम किया गया। टूजी स्पेक्ट्रम और कोयला खानों के आवंटन के मामले में विनोद राय ने तो माफी भी मांगी थी जो भारत के महालेखाकार थे और जिनकी रिपोर्ट में ही यह आरोप लगा था। बाद में जब उन्हें भाजपा सरकार ने राज्यसभा सदस्य बनाया था, तभी साबित हो गया था कि पूरी रणनीति बनाकर मनमोहन सिंह सरकार को बदनाम कर कांग्रेस को हराया गया था।

सीबीआई का आरोप था कि कॉमनवेल्थ गेम्स- 2010 के लिए दो अनुबंधों के अवैध आवंटन से आयोजन समिति को 30 करोड़ रुपयों की हानि हुई थी। सीबीआई ने इस कथित घोटाले को लेकर 19 एफआईआर दर्ज की थीं और जनवरी 2014 में सबूतों के अभाव में अपनी क्लोजर रिपोर्ट दाखिल कर दी थी, वहीं ईडी की जांच में भी किसी भी मामले में 'घोटाले' का कोई भी जिम्मेदार पकड़ा नहीं जा सका। इसे देखते हुए राउज़ एवेन्यू अदालत ने मनी लॉन्ड्रिंग मामले में ईडी की क्लोज़र रिपोर्ट स्वीकृत कर ली।

इस फैसले के साथ मनी लॉन्ड्रिंग के सारे आरोप भी खत्म हो गये। इस तरह कॉमनवेल्थ गेम्स आयोजन समिति के प्रमुख सुरेश कलमाड़ी, महासचिव ललित भनोत और अन्य आरोपियों के खिलाफ जारी जांच भी समाप्त हो गयीं। कोर्ट ने स्वीकार किया कि जांच से हेराफेरी का कोई गुनाह साबित नहीं होता इसलिये ईडी द्वारा प्रस्तुत की गई समापन रिपोर्ट को उसने स्वीकार कर लिया। स्पेशल जज संजीव अग्रवाल ने टिप्पणी की कि सीबीआई पहले ही आरोपियों को बरी कर चुकी है, जिसके आधार पर ईडी ने मनी लॉन्ड्रिंग की जांच शुरू की थी। कोर्ट ने ईडी के इस तर्क को मान लिया कि जब मनी लॉन्ड्रिंग की पुष्टि नहीं होती तो मामले को आगे बढ़ाने का कोई कारण नहीं है। सीबीआई ने पहले ही इस मामले में समापन रिपोर्ट दायर की थी जिसमें उसने कहा था कि मामले में कोई भी विश्वसनीय सबूत सामने नहीं आए हैं जिनके बल पर आरोप साबित हो सकें।

उल्लेखनीय है कि 3 से 14 अक्टूबर, 2010 तक नयी दिल्ली में राष्ट्रमंडल खेलों का आयोजन हुआ था लेकिन उसकी शुरुआत के पहले ही उसके मुख्य स्थल जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम के निकट नए बने पैदल यात्री पुल ढह जाने से इसमें बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे। अंतरराष्ट्रीय मीडिया में भी इस पर खूब चर्चा हुई थी। वैसे सीडब्ल्यूजी के आयोजन से दिल्ली की सूरत काफी बदल गयी थी। विश्व के सामने देश की छवि को संवारने के लिये, जिसमें आयोजकों को सफलता व प्रशंसा दोनों ही मिली थी, अनेक नागरिक सुविधाएं विकसित हुई थीं। अनेक नवनिर्माण हुए और पुराने भवनों व स्टेडियमों का जीर्णोद्धार किया गया। शहर का नये सिरे से सौंदर्यीकरण किया गया था तथा उसे दुनिया भर से आने वाले खिलाड़ियों, दर्शकों एवं मेहमानों को प्रभावित करने वाला विश्वस्तरीय काम हुआ था; परन्तु अनियमितताओं के अनेक आरोपों के कारण दिल्ली सरकार तथा देश की बदनामी भी बहुत हुई थी। शीला दीक्षित के नेतृत्व वाली कांग्रेस की सरकार को तो इसका बड़ा खामियाजा भुगतना पड़ा था।

इसके चलते सुरेश कलमाड़ी का एक तरह से राजनैतिक कैरियर ही खत्म हो गया और आप ने बहती गंगा में हाथ धोते हुए इसका भरपूर सियासी लाभ उठाया था। उन्होंने शीला दीक्षित को 'देश की सर्वाधिक भ्रष्ट सीएम' तक कह डाला था। वैसे जिस भाजपा ने इस मामले को लेकर शीला दीक्षित तथा मनमोहन सिंह को बदनाम किया था, उसे भी चुनावी सफलता नहीं मिल पाई थी। लाभ तो आप ले गयी। हालांकि अब भी दिल्लीवासियों का मानना है कि दिल्ली का असली कायाकल्प करने वाली शीला दीक्षित थीं जिन्होंने इसी खेल आयोजन के अवसर पर देश की राजधानी में व्यापक सुधार किये थे।

सवाल है कि क्या भाजपा अच्छे-भले कामों में कोई घोटाला न होने के बावजूद बदनाम करने की अपनी प्रवृत्ति समाप्त करेगी या नहीं और क्या जनता वास्तविक भ्रष्टाचार और दुष्प्रचार के बीच अंतर करना सीखेगी?


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