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इस ऐप की मदद से तुरंत पकड़े जाते हैं अपराधी, लेकिन इसके खतरे भी कम नहीं

ऐप के जरिए लोग अपने सीसीटीवी कैमरों की फुटेज पुलिस को दे रहे हैं, जिनसे अपराध हल किए जा रहे हैं. लेकिन कार्यकर्ता कहते हैं कि ये ऐप खतरनाक हो सकते हैं.

इस ऐप की मदद से तुरंत पकड़े जाते हैं अपराधी, लेकिन इसके खतरे भी कम नहीं
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पिछले महीने इंदौर की एक अंधेरी गली में डकैतों ने एक बाइक सवार को रोक लिया. बाइक सवार दिन भर की बिक्री का पैसा अपने बॉस को देने जा रहा था. डकैतों ने उसे चाकू दिखाकर धमकाया और दस लाख रुपये छीनकर चंपत हो गए.

इस तरह के अपराधों को हल करना आसान नहीं होता, लेकिन उस इलाके में एक निजी सीसीटीवी लगा था. उस फुटेज की मदद से पुलिस ने कुछ ही घंटों में डकैतों को खोज लिया और उनसे लूट की रकम भी बरामद कर ली.

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इस मामले को हल करने में पुलिस को मदद मिली ‘सिटिजन आई' से. यह ‘सिटिजनकॉप' नाम की एक मोबाइल ऐप का फीचर है. यह ऐप उन लोगों के काम आता है, जिनके घरों या दुकानों वगैरह में सीसीटीवी लगे हैं. इस ऐप के जरिए वे लोग पुलिस को अपराधों की फुटेज दे सकते हैं.

इस ऐप को सिटिजनकॉप (CitizenCOP) फाउंडेशन ने तैयार किया है. इसे मध्य प्रदेश के अलावा छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र में भी प्रयोग किया जा रहा है. सिर्फ इंदौर में इस ऐप के जरिए पुलिस को एक लाख से ज्यादा कैमरों तक पहुंच मिल गई है. भोपाल में भी ऐसी ही एक ऐप काम कर रही है, जिसका नाम है भोपाल आई.

पुलिस का काम आसान

पुलिस आयुक्त हरिनारायणचारी मिश्रा कहते हैं, "अपराधों की गुत्थी सुलझाने में सीसीटीवी कैमरों की फुटेज बहुत काम आती है, लेकिन बहुत से इलाके हैं जहां सार्वजनिक सीसीटीवी कैमरे नहीं हैं. उन इलाकों में हुए अपराधों को सुलझाने में पुलिस को बहुत ज्यादा वक्त लगाना पड़ता है.

ऐप की वजह से डकैती का केस सुलझाने में मिली हालिया कामयाबी को हरिनारायणचारी अहम मानते हैं. उन्होंने कहा, "यह घटना सबसे बड़ी और सबसे तेज सुलझाई गई घटनाओं में से एक थी. ये ऐप की वजह से संभव हुआ.”

भारत भर में अधिकारी सीसीटीवी और चेहरा पहचाने वाली तकनीकें लगा रहे हैं. उनका कहना है कि पुलिस कर्मियों की तादाद कम है, लिहाजा देश में ये तकनीकें अपराध रोकने में अहम भूमिका निभा सकती हैं. बच्चों के अपहरण से लेकर सामान की चोरी तक, तमाम तरह के अपराधों को रोकने और सुलझाने में इन तकनीकों पर भरोसा किया जा रहा है.

निजता का उल्लंघन

इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन की अनुष्का जैन कहती हैं कि सिटिजनकॉप जैसे ऐप इस बात का सबूत हैं कि लोगों की निजी सुरक्षा व्यवस्थाओं में घुसपैठ कर पुलिस किस तरह निगरानी का विस्तार कर रही है. वह चेताती हैं कि जो लोग अपने डेटा को पुलिस के साथ साझा करते हैं और जिन्हें निशाना बनाया जाता है, दोनों के ही पास कानूनी सुरक्षा अधिकार ना के बराबर हैं.

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वह बताती हैं, "लोग अपनी मर्जी से अगर अपने सीसीटीवी की फुटेज पुलिस को देना चाहते हैं, तो उन्हें रोका तो नहीं जा सकता लेकिन ऐसा कोई कानून नहीं है जिसके आधार पर पुलिस इस फुटेज को ले रही है. उस डेटा तक किसकी पहुंच होगी और कैसे उसे सुरक्षित रखा जाएगा, इसपर भी नियम नहीं हैं. इसलिए इसका नतीजा लोगों की निजता के अधिकार में घुसपैठ जैसा हो सकता है. ऐसे लोगों को जासूस बनाया जा रहा है, जिन्हें डेटा को रिकॉर्ड करने और उसे बेहद मामूली कारणों से पुलिस के साथ साझा करने की कानूनी बारीकियों का कोई ज्ञान नहीं है.”

क्लोज्ड सर्किट टेलीविजन (सीसीटीवी) कैमरे दुनियाभर में आम हो चले हैं. एक अनुमान है कि अपराधों को रोकने से लेकर ट्रैफिक की निगरानी जैसे विभिन्न कारणों से 2021 तक दुनियाभर में एक अरब सीसीटीवी कैमरे लगाए जा चुके थे.

तकनीकी वेबसाइट कम्पेयरटेक के मुताबिक चीन के बाहर हैदराबाद, दिल्ली, चेन्नई और इंदौर दुनिया के सबसे ज्यादा सीसीटीवी कैमरों वाले शहरों में शामिल हैं. सीसीटीवी की मौजूदगी और अपराधों की संख्या में गिरावट का कोई सीधा संबंध नहीं है. हां, शोधकर्ताओं ने यह जरूर बताया है कि निगरानी व्यवस्था से वे लोग ज्यादा निशाना बनते हैं, जो पहले से ही पुलिस की ज्यादतियों के शिकार होते हैं. इनमें कम आय वाले परिवार और धार्मिक या नस्लीय अल्पसंख्यक समुदाय शामिल हैं.

जिम्मेदारी कैसे तय हो?

सिटिजनकॉप ऐप के जरिए आम लोग घटनाओं और संदिग्धों के बारे में पुलिस को सूचित कर सकते हैं. निकिता सोनावने कहती हैं कि इसका खतरा बहुत ज्यादा है क्योंकि लोग अपने पूर्वाग्रहों के आधार पर अन्य लोगों को निशाना बना सकते हैं.

क्रिमिनल जस्टिस ऐंड पुलिस अकाउंटेबिलिटी प्रॉजेक्ट की सह-संस्थापक सोनावने कहती हैं, "यह ऐप जिन ऐतिहासिक और सामाजिक संदर्भों में काम कर रही है, वे हैं भेदभाव, जातिवाद और कमजोर तबकों की जरूरत से ज्यादा निगरानी. वे कौन लोग हैं जिन्हें कथित नागरिक-पुलिस कहा जा रहा है? वे किसे निशाना बना रहे हैं? यह लोकतांत्रिक भागीदारी के नाम पर पहले से रचे-बसे पूर्वाग्रहों का डिजिटल रूप है.”

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सिटिजनकॉप फाउंडेशन के संस्थापक और इस ऐप के डिजाइनर राकेश जैन कहते हैं कि सरकार के पास संसाधनों की कमी है और ये ऐप लोगों की भागीदारी से उस कमी को पूरा करने में मदद कर रहे हैं. वह बताते हैं, "हर कोई तो पुलिस वाला नहीं बन सकता, लेकिन हर कोई एक जिम्मेदार नागरिक बन सकता है और समाज में योगदान दे सकता है. यह ऐप आम नागरिकों और पुलिस के बीच बेहतर सहयोग का साधन है.”

वह बताते हैं कि सिटिजनकॉप ऐप को पांच लाख से ज्यादा बार डाउनलोड किया गया है और इससे चोरी के हजारों मोबाइल और गाड़ियां खोजने के अलावा ट्रैफिक नियमों के उल्लंघन से लेकर घरेलू हिंसा तक हजारों अपराधों को हल करने में मदद मिली है.


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