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मीडिया के शोर में लोकदायित्व के भाव से बची है प्रेस की साख : के.जी. सुरेश

माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो के.जी. सुरेश ने कहा है कि सोशल मीडिया और डिजिटल क्रांति के दौर में प्रेस ने लोकदायित्व के भाव ने ही अपनी साख को बचाकर रखा

मीडिया के शोर में लोकदायित्व के भाव से बची है प्रेस की साख : के.जी. सुरेश
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भोपाल। माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो के.जी. सुरेश ने कहा है कि सोशल मीडिया और डिजिटल क्रांति के दौर में प्रेस ने लोकदायित्व के भाव ने ही अपनी साख को बचाकर रखा है। आंचलिक पत्रकार भुवन भूषण देवलिया की स्मृति में आयोजित व्याख्यानमाला और सम्मान समारोह में पत्रकार विनोद आर्य को देवलिया स्मृति अलंकरण से सम्मानित करते हुए प्रो. सुरेश ने कहा कि सोशल मीडिया और डिजिटल क्रांति के दौर में पत्रकारों की समाज के प्रति संवेदनशीलता और लोक दायित्व का भाव ही प्रेस की पहचान है। प्रेस ने बड़ी हद तक अपनी इस साख को बचाकर रखा है।

उन्होंने कहा कि तकनीक और भाषा के सहारे चलने वाला दुष्प्रचार कभी लोकदायित्व से भरी प्रेस की जगह नहीं ले सकता। इसके बावजूद पत्रकारिता की मुख्यधारा यदि आज कहीं सवालों के घेरे में है तो उसे अपनी सार्थकता बनाए रखने के लिए खुद में बदलाव लाना होगा।

'सोशल मीडिया के जूम एप और फेसबुक लाइव पर पत्रकारिता का लोकदायित्व' विषय पर आयोजित व्याख्यानमाला में प्रो. सुरेश ने कहा कि समाज के बीच जनसंचार कायम करने के लिए हमें सामुदायिक रेडियो को बढ़ावा देना होगा। आज बोलचाल की भाषा में कहा जाता है कि पत्रकार पक्षकार हो गए हैं, जबकि उनका तो एक ही पक्ष होता है वो है जनपक्ष या लोकपक्ष।

उन्होंने कहा, "मैं स्वयं तीन दशकों तक पत्रकार रहा हूं, इस आधार पर कह सकता हूं कि रोज शाम को टीवी पर चलने वाली बहसें पत्रकारिता नहीं हैं। ये बात भी सही है कि टेबल टाइप रिपोर्टिग मीडिया की मजबूरी है, लेकिन यदि वो जमीनी स्तर की सच्चाई उजागर नहीं करती तो उसका महत्व कुछ नहीं। मुख्यधारा का मीडिया यदि अपने भीतर बदलाव नहीं लाएगा तो आगे चलकर उसका महत्व ही समाप्त हो जाएगा।"

भारतीय जनसंचार संस्थान, नई दिल्ली के महानिदेशक प्रो.संजय द्विवेदी ने कहा, "कुछ लोग आंदोलनकारी बनकर खुद को पत्रकार बताने का प्रयास करते हैं, ऐसा करके वे पत्रकारों की तपस्या पर पानी फेर देते हैं। पत्रकारिता के पीछे जनता का विश्वास प्रमुख होता है। पत्रकार तो कोई भी बन सकता है, लेकिन पत्रकारिता करने वाले लोग अलग होते हैं। हमें ऐसे लोगों को संरक्षण देना होगा जो वास्तव में पत्रकारिता कर रहे हैं।"

जयदीप कार्णिक ने कहा कि जैसे कोई भी सच्ची खबर छुप नहीं सकती, उसी तरह पत्रकारिता की गंदगी भी छुपाई नहीं जा सकती। पत्रकारिता में आत्म अवलोकन का भाव हमेशा अच्छी पत्रकारिता को जिंदा रखता है।

वरिष्ठ पत्रकार शिव अनुराग पटैरिया ने कहा कि बिल्डर माफिया और शराब के व्यापारियों ने जब से अखबारों में घुसपैठ कर ली है, तबसे समाज की जन पक्षधरता लड़खड़ाने लगी है। अच्छे अखबारों का समर्थक बाजार न होने की वजह से लोकदायित्व की लड़ाई पिछड़ जाती है।

इस मौके पर पद्मश्री विजयदत्त श्रीधर राजेश सिरोठिया और अजय त्रिपाठी ने विचार व्यक्त किए। आभार प्रदर्शन मुख्यमंत्री प्रकोष्ठ के जनसंपर्क अधिकारी अशोक मनवानी ने किया।


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