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जांच एजेंसियों की साख

दिल्ली सरकार के कथित शराब घोटाले के सिलसिले में मिले नोटिस के अनुरूप वैसे तो दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को गुरुवार को प्रवर्तन निदेशालय के दिल्ली कार्यालय में उपस्थित होना था

जांच एजेंसियों की साख
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दिल्ली सरकार के कथित शराब घोटाले के सिलसिले में मिले नोटिस के अनुरूप वैसे तो दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को गुरुवार को प्रवर्तन निदेशालय के दिल्ली कार्यालय में उपस्थित होना था, लेकिन वे यह कहकर नहीं आये कि पहले से ही उनका आज मध्य प्रदेश में राजनीतिक कार्यक्रम तय है जहां विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं। वहां उनके उम्मीदवार खड़े हैं। इस चुनावी व्यस्तता के कारण वे अभी ईडी कार्यालय नहीं आ सकेंगे। यह जवाब उन्होंने गुरुवार की सुबह ही ईमेल के जरिये भेजा था। साथ में यह आरोप भी लगाया कि ईडी द्वारा उन्हें भेजा गया समन 'अवैध और राजनीति से प्रेरितÓ है। यह नोटिस केन्द्र में सत्तारुढ़ भारतीय जनता पार्टी के इशारे पर भेजा गया है ताकि वे विभिन्न राज्यों के चुनाव प्रचार के लिए न जा सकें। उन्होंने यह भी कहा कि ईडी को यह नोटिस तत्काल वापस लेना चाहिए।

उल्लेखनीय है कि इस मामले में दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया और आप के राज्यसभा सदस्य संजय सिंह पहले से ही न्यायिक हिरासत में हैं। साल 2021-22 की दिल्ली सरकार की आबकारी नीति को उप राज्यपाल वीके सक्सेना ने कथित अनियमितताओं के चलते रद्द कर दिया था। उनके अनुसार इसमें 338 करोड़ रुपये का मनी लॉन्ड्रिंग का केस बनता है। साथ ही यह मामला केन्द्रीय जांच एजेंसियों को सौंप दिया गया था। 16 अप्रैल को वैसे केजरीवाल सीबीआई के कार्यालय में बैठकर करीब 9 घंटों तक चली पूछताछ के दौरान 56 सवालों के जवाब दे चुके थे और उन्होंने पूरे मामले को बेबुनियाद, मनगढ़ंत और आप को खत्म करने का प्रयास करार दिया था। अब 30 अक्टूबर को उन्हें फिर से समन दिया गया था कि वे गुरुवार को उपस्थित हों। इससे केजरीवाल की गिरफ्तारी तय बतलाई जा रही थी। मुमकिन है कि उन्हें ईडी दूसरा समन जारी करे या गिरफ्तार कर ले। वैसे गुरुवार को केजरीवाल मध्यप्रदेश के सिंगरौली में पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान के साथ एक रोड शो करने के लिये निकल गये थे।

ईडी के इस तरह से अचानक व संक्षिप्त नोटिस पर केजरीवाल को फिर से बुलाये जाने का मकसद उनकी गिरफ्तारी हो सकती है जिसके कारण उनकी पार्टी के नेताओं और अन्य दलों से जुड़े लोगों में प्रतिक्रिया होना भी स्वाभाविक है। य़ह साफ है कि जिस आम आदमी पार्टी को कभी भाजपा अपने सहयोगी दल के रूप में देख रही थी, अब इसलिये खटकने लगी है क्योंकि वह कांग्रेस के नेतृत्व में बने संयुक्त विपक्षी गठबन्धन इंडिया का हिस्सा बन गई है। आप सरकार के मंत्री गोपाल राय ने गुरुवार को ही आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा कि भाजपा एक सुनियोजित राजनीतिक साजिश के तहत केजरीवाल को गिरफ्तार करना चाहती है। इसके लिए वह केंद्रीय एजेंसियों का दुरुपयोग कर रही है क्योंकि उसे डर है कि यदि सारे विपक्षी दल एक हो गए तो वह 2024 का लोकसभा चुनाव नहीं जीत पाएगी। पार्टी की एक अन्य मंत्री आतिशी ने पहले ही भाजपा पर आप नेताओं को झूठे मामलों में फंसाने का प्रयास करने का आरोप लगाया था। उन्होंने कहा था कि हर तरफ से जानकारी मिल रही है कि 2 नवंबर को जब अरविंद केजरीवाल ईडी के सामने पेश होंगे तो ईडी उन्हें गिरफ्तार कर लेगी।

आगे ईडी और आप क्या करने जा रही है, यह तो फिलहाल पता नहीं परन्तु कई लोगों के अनुसार ईडी के सामने उपस्थित न होकर केजरीवाल अपना पक्ष कमजोर कर रहे हैं। सम्भव है कि तकनीकी रूप से और कानूनी प्रक्रिया के अंतर्गत यह सही भी हो परन्तु यह भी ज़रूरी है कि जहां आवश्यक हो वहां प्रतिरोध भी किया जाना चाहिये। केजरीवाल हों या अन्य विपक्षी नेता, सभी के मामलों में साफ होता जा रहा है कि केन्द्र सरकार अपने पास मौजूद जांच एजेंसियों का उपयोग अपनी मर्जी से तथा राजनैतिक हित साधने के लिये करने में कोई गुरेज़ नहीं करती। सच तो यह है कि जांच एजेंसियों ने भी अपनी रीढ़ की हड्डी को गंवा दिया है। वह पिछले तकरीबन एक दशक से भाजपा के इशारे पर ही नाच रही है। भाजपा के लिये उसके नियम-कानून और हैं तो विपक्षी दलों के लिये कुछ और। देश भर में अनेक ऐसे मामले हुए हैं जिनकी जांच या उन पर फैसला चेहरे व पार्टी देखकर होता है।

केन्द्र के अधीन काम करने वाली ये जांच एजेंसियां भाजपा के लिये अनेक सरकारों को गिराने या बनाने के काम में भी प्रत्यक्ष-परोक्ष रूप से सहयोग करती दिखाई देती हैं। भाजपा विरोधी नेताओं को डराकर उसके खेमे में लाने का काम महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक आदि राज्यों में सारे लोग देख ही चुके हैं। महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री के रूप में कार्यरत अजित पवार का मामला साफ बताता है कि भाजपा के लिये ये एजेंसियां उपकरण के तौर पर कार्य कर रही हैं। देवेन्द्र फडनवीस के मुख्यमंत्री बनाने के लिये जब समर्थन की आवश्यकता थी तो राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी को साथ लेकर रातों-रात अजित पवार के खिलाफ लम्बित मामले हटा दिये गये और उन्हें क्लीन चिट दी गई। जब उद्धव ठाकरे की सरकार गिरानी थी तो पहले शिवसेना को एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में तोड़ा गया तथा बाद में फिर से अजित पवार को लाकर उनके व उनकी पत्नी के खिलाफ बचे-खुचे प्रकरण वापस ले लिये गये।

केजरीवाल को आज नहीं तो कल फिर से समन मिलना ही है और उन पर गिरफ्तारी की तलवार अभी भी लटकी हुई है, परन्तु अब गिरफ्तारियों का डर विरोधियों के मन से जा रहा है। अलबत्ता इन एजेंसियों की साख पूर्णत: मिट्टी में मिल चुकी है।


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