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केंद्रीय समिति में माकपा ने किया कांग्रेस से गठबंधन पर विचार

केंद्रीय समिति की तीन दिवसीय बैठक में मार्क्‍सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) का कांग्रेस से गठबंधन पर विचार जारी है

केंद्रीय समिति में माकपा ने किया कांग्रेस से गठबंधन पर विचार
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नई दिल्ली। केंद्रीय समिति की तीन दिवसीय बैठक में मार्क्‍सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) का कांग्रेस से गठबंधन पर विचार जारी है। रविवार तक दिल्ली में चलने वाली बैठक में पार्टी महासचिव सीताराम येचुरी के कार्यकाल पर भी विचार किया जाएगा। गौरतलब है कि माकपा की तीन दिवसीय केंद्रीय समिति की बैठक शुक्रवार को शुरू हुई। बैठक के एजेंडे में आगामी चुनावों के मद्देनजर कांग्रेस के साथ गठबंधन पर पार्टी की क्या नीति रहेगी, ये तक करना भी शामिल है। इसे बेहद अहम माना जा रहा है। सूत्रों के अनुसार पोलित ब्यूरो में कांग्रेस के साथ गठबंधन करने को लेकर मतभेद है। केरल का गुट बीजेपी के खिलाफ क्षेत्रीय दलों के साथ वामपंथी नेतृत्व वाले धर्मनिरपेक्ष गठबंधन पर जोर दे रहा है।

वहीं पश्चिम बंगाल के नेताओं के गुट का कहना है कि देश के सबसे बड़े विपक्षी दल (कांग्रेस) से गठबंधन के बिना कोई भी गठबंधन करना पार्टी के लिए अव्यावहारिक ही साबित होगा। ऐसे में राष्ट्रीय स्तर और क्षेत्रीय स्तर पर अलग-अलग नीति बनाने की जरूरत है। फिलहाल इस बैठक में आगे की रणनीति तय की जायेगी।

पिछले हफ्ते ही माकपा पत्रिका चिन्था के एक लेख में, केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने लिखा था कि कांग्रेस विपक्ष की धुरी नहीं हो सकती। सभी राज्यों में, केरल को छोड़कर, कांग्रेस के नेता भाजपा में शामिल होने के लिए पार्टी छोड़ रहे हैं और इसलिए, दोनों के बीच बहुत कम विशिष्ट अंतर हैं।

इससे पहले अप्रैल 2018 में हैदराबाद में आयोजित पार्टी की 22वीं केंद्रीय समिति की बैठक में बीजेपी और कांग्रेस दोनों को समान तौर पर देश के लिये घातक बताया गया था। पार्टी में सभी धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक ताकतों के लिए रैली करने की सहमती हुई थी। संसद के अंदर और बाहर कांग्रेस सहित सभी धर्मनिरपेक्ष विपक्षी दलों के साथ एक समझ रखने पर भी सहमति बनी थी। फिर भी इस सब में एक चेतावनी थी कि कांग्रेस पार्टी के साथ कोई राजनीतिक गठबंधन नहीं हो सकता।

सूत्रों के अनुसार शुक्रवार की बैठक में माकपा महासचिव सीताराम येचुरी ने तर्क भी दिया है कि जिस स्थिति के तहत 2018 में निर्णय लिया गया था, वह नहीं बदली है और बहस को फिर से खोलने का कोई कारण नहीं है। उन्होंने आगे कहा कि 2019 के आम चुनावों में भाजपा की लगातार दूसरी जीत के बाद दक्षिणपंथ से खतरा और बढ़ गया है और इसलिए 2018 की लाइन पर चलने आवश्यकता है। पहले दिन की बैठक में लगभग 20 प्रतिनिधियों ने अपनी बात रखी।

पिछले सप्ताह पोलित ब्यूरो द्वारा अनुमोदित राजनीतिक प्रस्ताव को केंद्रीय समिति के समक्ष रखा गया था।


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