कोविड-19 : जम्मू में छोटे शिविरों में रह रहे रोहिंग्या शरणार्थियों की बढ़ी मुसीबतें
देश भर में कोरोनावायरस के प्रकोप के बीच जम्मू में रहने वाले रोहिंग्या शरणार्थियों को कई तरह की मुसीबतों का सामना करना पड़ा रहा है

जम्मू। देश भर में कोरोनावायरस के प्रकोप के बीच जम्मू में रहने वाले रोहिंग्या शरणार्थियों को कई तरह की मुसीबतों का सामना करना पड़ा रहा है। जम्मू क्षेत्र के बाहरी इलाके में नरवाल के पास शिविरों में शरण लिए लोग लॉकडाउन के कारण पेट भर भोजन के लिए भी संघर्ष कर रहे हैं। शिविरों में रह रहे ज्यादातर लोग जम्मू शहर और आसपास के इलाके में दिहाड़ी-मजदूरी कर अपना घर चलाते हैं। लॉकडाउन के बाद बंद विभिन्न आर्थिक गतिविधियों के कारण उनके आय का कोई साधन नहीं रह गया है। उनकी मुसीबतें यहीं खत्म नहीं होतीं, क्योंकि उन्हें कोरोना के संक्रमण फैलने वाले संवेदनशील समय पर तंग शिविरों में रहना पड़ा रहा है। यहां एक छोटे से शिविर में ही कई-कई लोगों को दिन-रात गुजारने होते हैं।
लॉकडाउन के बीच पैसे और संसाधनों की कमी होती जा रही है और हर गुजरते दिन के साथ उनके सामने स्थिति और कठिन होती जा रही है।
जम्मू प्रशासन ने हालांकि स्थानीय स्वयंसेवकों के माध्यम से उन्हें भोजन और अन्य आवश्यक चीजें प्रदान कर कुछ राहत प्रदान करने की कोशिश जरूर की है।
जम्मू-कश्मीर पुलिस उन्हें खाने के पैकेट उपलब्ध कराने में भी मदद कर रही है।
जम्मू संभाग (डिविजनल) के आयुक्त संजीव वर्मा ने कहा, हम सुनिश्चित कर रहे हैं कि खाद्य आपूर्ति जम्मू में फंसे मजदूरों और लोगों तक पहुंचे।
जम्मू एवं कश्मीर में 10,000 से अधिक रोहिंग्या रह रहे हैं। जम्मू में 1,500 पंजीकृत रोहिंग्या शरणार्थी परिवार हैं। उनका कहना है कि वे बेहतर आजीविका कमाने के लिए जम्मू आए हैं।
लेकिन अतीत में उन्होंने जम्मू आधारित राजनीतिक दलों के साथ एक बड़ा विवाद शुरू कर दिया था जिसमें भाजपा जम्मू-कश्मीर से रोहिंग्याओं को बाहर निकालने के लिए अड़ गई थी। हालांकि, पीडीपी और नेशनल कॉन्फ्रेंस सहित कश्मीर केंद्रित पार्टियों का कहना है कि यह एक मानवीय मुद्दा है और इसे इस तरह से देखा जाना चाहिए।
लेकिन वैश्विक महामारी के समय में जम्मू यह सुनिश्चित करने के लिए मदद कर रहा है कि समाज के लोगों की पीड़ाओं को कम किया जा सके।


