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पांच किलो मुफ्त अनाज में डूबा देश

आचार संहिता वंहिता छोड़िए आप! प्रधानमंत्री मोदी पर वह कोई लागू नहीं होती है

पांच किलो मुफ्त अनाज में डूबा देश
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- शकील अख्तर

पता नहीं कांग्रेसी नेता गांव के लोगों से कितना मिलते हैं। लेकिन अगर मिलते होते और उनकी सुनते समझते तो उन्हें मालूम होता कि यह पांच किलो फ्री अनाज कैसा नशा बन गया है। गांव में अपने घर में मुफ्त राशन मिल जाने के बाद वह किसी काम का नहीं रहता। उससे पांच किलो से ज्यादा अनाज की बात करना होगी। काम देने का भरोसा देना होगा।

आचार संहिता वंहिता छोड़िए आप! प्रधानमंत्री मोदी पर वह कोई लागू नहीं होती है। मोदी से पहले किसी प्रधानमंत्री पर आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन के इतने आरोप नहीं लगे। हर चुनाव में चाहे विधानसभा के हों या लोकसभा के विपक्ष चुनाव आयोग के पास जाता है मगर आज तक कोई कार्रवाई नहीं हुई। एक बार जरूर तीनों चुनाव आयुक्तों को 2019 में मोदी के भाषणों के खिलाफ लंबी सुनवाई करनी पड़ी थी और एक चुनाव आयुक्त अशोक लवासा ने मोदी के भाषणों को आपत्तिजनक माना था। मगर बाकी दो सदस्यों जिनमें एक मुख्य चुनाव आयुक्त भी थे मोदी को क्लीन चिट देना चाह रहे थे और फिर उन्होंने दी भी। मगर दो-एक के बहुमत से। लवासा ने सर्वसम्मति से वह फैसला नहीं होने दिया था। अपने फैसले को सही बताते हुए लवासा ने इस्तीफा दे दिया। मोदी और अमित शाह के खिलाफ 6 मामले चुनाव आयोग के सामने थे।

जिनमें एक यह था जिसमें प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि राहुल वायनाड से इसलिए चुनाव लड़ रहे हैं कि वहां बहुसंख्यक वोट कम हैं। अल्पसंख्यकों की शरण में गए हैं। यह भाषण उन्होंने लोकसभा चुनाव के दौरान महाराष्ट्र में दिया था। दूसरा एक मामला था जहां प्रधानमंत्री पुलवामा के शहीदों के नाम पर वोट मांग रहे थे। एक और भाषण में उन्होंने कहा कि परमाणु बम क्या हमने दीवाली के लिए रखा है। शाह के खिलाफ आरोप था कि उन्होंने भारतीय सेना को मोदी की सेना बोला है। इन सारे मामलों को लवासा गंभीर मान रहे थे जबकि बाकी दोनों उनमें कुछ भी अनुचित नहीं देख रहे थे।

ऐसे जाने कितने मामले हैं। अभी गुजरात विधानसभा में वोट डालने के बाद वे रोड शो करते हुए अपने भाई के घर गए। 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में तो मायावती ने उनकी शिकायत की थी। अब शायद उनसे पूछो तो वे कहेंगी कि मैं वापस ले लेती हूं! मोदी जी के खिलाफ मैं सोच भी नहीं सकती।

तो अब चुनावी राज्य छत्तीसगढ़ से प्रधानमंत्री की पांच साल और मुफ्त राशन की घोषणा आचार संहिता का उल्लंघन है, जैसा सवाल बेमतलब हो गया है।
औपचारिकता के लिए कांग्रेस को चुनाव आयोग जाना हो तो जाए मगर जवाब उसे राजनीतिक ही देना होगा।

टीवी अखबारों में यह घोषणा सुर्खियों में है। मोदी जी परवाह न करते हों मगर मीडिया थोड़ा सा अभी डरता है इसलिए इसे मास्टर स्ट्रोक नहीं कह पा रहा है। मगर है यह वाकई मास्टर स्ट्रोक!

छत्तीसगढ़ में मतदान के पहले चरण से ठीक पहले प्रधानमंत्री द्वारा की गई यह घोषणा लाभार्थियों के लिए बड़ा आश्वासन है। राहुल गांधी के शब्दों में कहें तो गारंटी।
लेकिन अगर कांग्रेस चाहती तो इसकी काउंटर गारंटी दे सकती थी। मोदी जी राजनीति के गहरे खिलाड़ी हैं। उनसे मुकाबला उसी स्तर पर हो सकता है। किसी बड़े माने जाने वाले टीवी एंकर के साथ हैलिकाप्टर में घूमने से नहीं। पार्टी एंकर को देश में नफरत फैलाने के लिए आरोपित करती है। अपने विपक्षी दलों के गठबंधन इन्डिया के द्वारा बाकायदा लिस्ट निकालकर उनका बहिष्कार करती है। मगर उसी को हैलिकाप्टर में घूमाकर इंटरव्यू दिया जाता है। इससे कितने वोट मिल जाएंगे यह कांग्रेस को बताना चाहिए।

मगर इन सब से कुछ होता नहीं। केवल नेता को यह खुशफहमी हो जाती है कि उसका चेहरा टीवी पर चमक गया। मगर उसका जरा सा चेहरा टीवी पर चमकाने के बदले मीडिया राहुल की छवि और खराब करने की छूट पाती है। हमने इन नेताओं को यह कहते सुना है कि हमसे तो अच्छी तरह मिलती हैं या मिलते हैं पता नहीं राहुल के साथ क्या समस्या है। मतलब समस्या राहुल में है। नफरती मीडिया में नहीं।

अभी जो एंकर हैलिकाप्टर में घूम रही थीं उन्होंने कांग्रेसी नेता के लिए एक से एक विशेषणों का प्रयोग किया। ब्राइट एंड फ्रेश। ऊर्जावान और उत्साही। कभी न हारने वाले और जाने क्या क्या! तो नेताजी फूले नहीं समा रहे। मुझमें इतने सारे गुण। तभी तो आईं थीं मेरा इंटरव्यू लेने। मगर कभी यह नहीं सोचते कि क्या राहुल के वास्तविक गुणों में से एक भी ये टीवी एंकर बता सकती हैं? अगर बता दें तो इनकी नौकरी तो छोड़िए ईडी भी पहुंच जाएगी। मगर कांग्रेस के नेताओं को सिर्फ खुद से मतलब है पार्टी और राहुल से नहीं।

खैर इससे राहुल की ताकत पर कोई असर नहीं पड़ता है। तो मुख्य मुद्दा था फ्री राशन पांच साल और। अब इसका जवाब यह नहीं हो सकता जो बहुत सारे लोग और कांग्रेसी भी दे रहे हैं कि साढ़े 9 साल में क्या किया? गरीब की हालत और खराब कर दी कि वह फ्री राशन पर रहने लगा। पांच साल और मतलब उसकी हालत ऐसी ही रखोगे या यह जो कांग्रेस कह रही है कि यह प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना कुछ नहीं है हमारी नेशनल फूड सिक्योरटी एक्ट की ही नकल है इससे कुछ नहीं होगा।
मंगलवार को मिजोरम की सभी और छत्तीसगढ़ की 20 सीटों पर मतदान हो जाएगा। इनमें आदिवासी संभाग बस्तर भी है। जहां के करीब-करीब सभी मतदाता पांच किलो मुफ्त राशन का फायदा उठा रहे हैं। 12 सीटें हैं यहां जिनमें से 11 आदिवासियों के लिए आरक्षित हैं। यह 12 में से 12 सीटें कांग्रेस के पास हैं। अब आप समझ सकते हैं कि प्रधानमंत्री ने छत्तीसगढ़ से यह घोषणा क्यों की और उस दुर्ग जिले में की जहां भी मंगलवार को मतदान होना है।

अब यह घोषणा तात्कालिक रूप से छत्तीसगढ़ की बस्तर और दुर्ग की 20 सीटों पर प्रभाव डाल सकती है। और बाद में हर जगह। इसका जवाब वही जैसा हमने ऊपर कहा राहुल की काउंटर गारंटी। गारंटी पर गारंटी ही दे सकती है। और राहुल का जवाब देना या यूं कहें जनता को और ज्यादा हिम्मत बंधाना वाजिब भी है।

मगर कहा अगर सही समय पर न जाए तो कोई फायदा नहीं। कांग्रेस की अधिकांश कहानी यही है कि जब चिड़िया खेत चुग जाती हैं तब वह पछताती रहती है। बाबा केदारनाथ के पास से अच्छी जगह कौन सी हो सकती है। वहीं से कहना चाहिए कि अगले पांच साल इतना ही! बिल्कुल नहीं। गरीबों को बढ़कर राशन भी मिलेगा और काम भी।

हर हाथ को काम। नौकरी रोजगार। और हां मुफ्त की अगर बात है तो आपके बच्चों को मुफ्त शिक्षा मिलेगी। और आपको और पूरे परिवार को मुफ्त इलाज। काम मिलने से आपके हाथ में नगद पैसे होंगे। आप जो चाहे खरीद सकते हैं। मुफ्त राशन पांच किलो नहीं बढ़ाकर देंगे। और काम देंगे ताकि तेल, घी, दूध, सब्जी, दाल मसाले, कपड़े, जूते खरीद सकें।

स्कूल सारे सरकारी करने और अस्पताल भी यह लोगों की सबसे बड़ी जरूरत है। मोदी जी केवल पांच किलो राशन में लोगों को उलझाए हुए हैं। मगर कांग्रेस चूंकि इसका ठीक से जवाब नहीं दे पा रही है तो मोदी जी का यह फंडा खूब चल रहा है।

हमें पता नहीं कांग्रेसी नेता गांव के लोगों से कितना मिलते हैं। लेकिन अगर मिलते होते और उनकी सुनते समझते तो उन्हें मालूम होता कि यह पांच किलो फ्री अनाज कैसा नशा बन गया है। गांव में अपने घर में मुफ्त राशन मिल जाने के बाद वह किसी काम का नहीं रहता। उससे पांच किलो से ज्यादा अनाज की बात करना होगी। काम देने का भरोसा देना होगा। मर गए सपनों को फिर से जिलाना होगा। बच्चों की पढ़ाई और उससे उनकी अच्छी नौकरी मिलने की कहानी सुनाना होगी। नहीं तो वे पांच किलो मुफ्त अनाज लेते रहेंगे और वोट देते रहेंगे।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है)


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