Top
Begin typing your search above and press return to search.

कपास किसानों को सरकारी खरीद का आसरा

देश के किसानों ने इस साल कपास की फसल लगाने में काफी दिलचस्पी दिखाई है

कपास किसानों को सरकारी खरीद का आसरा
X

नई दिल्ली । देश के किसानों ने इस साल कपास की फसल लगाने में काफी दिलचस्पी दिखाई है, लेकिन अंतर्राष्ट्रीय बाजार में रूई के दाम में नरमी रहने से उन्हें अपनी फसल का उचित भाव पाने के लिए सरकारी खरीद का ही आसरा रहेगा। अमेरिका और चीन के बीच व्यापारिक तनाव के कारण अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कॉटन के दाम में पिछले साल के मुकाबले 20 फीसदी की गिरावट आई है। हालांकि भारत में पिछले साल के मुकाबले कॉटन का भाव तकरीबन आठ फीसदी गिरा है।

इंटरकांटिनेंटल एक्सचेंज पर सोमवार को 60.82 सेंट प्रति पौंड था जबकि पिछले साल सितंबर के आखिर में 76.38 सेंट प्रति पौंड।

वहीं, घरेलू वायदा बाजार मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज पर कॉटन का भाव 19,930 रुपये प्रति गांठ (170 किलो) था, जबकि पिछले साल सितंबर के आखिर में एमसीएक्स पर कॉटन का भाव 21,840 रुपये प्रति गांठ था।

लेकिन विश्लेषकों का मानना है कि अंतर्राष्ट्रीय बाजार के मुकाबले भारतीय बाजार में कॉटन का भाव ऊंचा होने से निर्यात मांग कम रहेगी, जिससे जिनर्स व ट्रेडर्स घरेलू मिलों की मांग को ध्यान में रखकर ही खरीदारी करेंगे। ऐसे में किसानों को अपनी फसल का उचित भाव पाने के लिए सीसीआई की खरीद का ही आसरा रहेगा।

भारत में कपास का नया सीजन एक अक्टूबर से शुरू हो रहा है और नए सीजन में कपास की सरकारी खरीद के लिए भारतीय कपास निगम लिमिटेड (सीसीआई) ने पूरी तैयारी कर रखी है, लेकिन नई फसल में नमी के कारण किसानों को सरकारी खरीद शुरू होने का इंतजार करना होगा।

सीसीआई के एक अधिकारी ने बताया कि सीसीआई 12 फीसदी से अधिक नमी वाली फसल नहीं खरीदेगी। उन्होंने बताया कि देश के प्रमुख कपास उत्पादक इलाकों में सीसीआई ने नए सीजन में कपास की फसल किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदने के लिए पूरी तैयारी कर रखी है, लेकिन इस समय नई फसल की जो आवक हो रही है, उसमें नमी अधिक बताई जा रही है, इसलिए एक अक्टूबर से खरीद शुरू होने की संभावना कम है।

मुंबई स्थित डीडी कॉटन प्राइवेट लिमिटेड के प्रबंध निदेशक अरुण सेकसरिया ने कहा कि भारत में कपास (रॉ कॉटन) का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) ऊंचा होने से कॉटन का भाव विदेशी बाजार के मुकाबले ज्यादा है।

उन्होंने कहा कि इसके अलावा भारत में घरेलू मिलों की सालाना खपत तकरीबन 325 लाख गांठ है, जिसके कारण कीमत ऊंचा रहता है। हालांकि उनका मानना है मौजूदा परिस्थिति में देश से कॉटन का निर्यात ज्यादा होने की संभावना कम है।

उन्होंने कहा कि 2018-19 में पिछले साल के मुकाबले निर्यात में कमी आने की मुख्य वजह अंतर्राष्ट्रीय बाजार के मुकाबले भारतीय कॉटन का भाव ऊंचा होना ही है। उन्होंने कहा कि जहां निर्यात बीते वर्ष में 65 लाख गांठ था वहां इस साल घटकर 45 लाख गांठ रहने का अनुमान है।

मुंबई के कॉटन बाजार विश्लेषक गिरीश काबरा ने बताया कि पिछले साल सितंबर के आखिर में बेंचमार्क कॉटन गुजरात शंकर-6 (29 एमएम) का भाव जहां 46,500 रुपये प्रति कैंडी (356 किलो) था वहां इस समय 41,700 रुपये प्रति कैंडी है।

उन्होंने कहा कि हालांकि कपास की नई फसल की आवक शुरू हो गई है और अभी ट्रेडर जिनर ही कपास खरीद रहे हैं और कपास में मौजूदा नमी को को देखा जाए तो किसानों को एमएसपी के करीब ही दाम मिल रहे हैं, लेकिन जब आवक बढ़ेगी तो दाम घटेंगे। ऐसे में किसानों के लिए सीसीआई को ही कपास बेचना फायदेमंद होगा।

केंद्र सरकार ने कॉटन विपणन सीजन 2019-20 (अक्टूबर-सितंबर) के लिए लंबे रेशे वाले कपास का एमएसपी 5,550 रुपये प्रति कुंटल तय किया जबकि मध्यम रेशे वाले कपास का एमएसपी 5,255 रुपये प्रति कुंतल निर्धारित किया गया है।

काबरा ने कहा कि इस साल कपास का की फसल पिछले साल के मुकाबले ज्यादा होने की संभावना है, ऐसे में भाव आगे गिर सकता है।

केंद्रीय कृषि मंत्रालय के अद्यतन आंकड़ों के अनुसार, देशभर में कपास की बुवाई 127.67 लाख हेक्टेयर में हुई है जोकि पिछले साल से 6.62 लाख हेक्टेयर अधिक है।

हालांकि, गुजरात के एक कारोबारी ने कहा कि पिछले दिनों हुई बारिश के कारण फसल खराब होने की आशंका है। ऐसे में इस समय क्रॉप-साइज को लेकर कुछ नहीं कहा जा सकता।


Next Story

Related Stories

All Rights Reserved. Copyright @2019
Share it