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कांग्रेस का ओबीसी कार्ड फ्लाप, सोशल इंजीनियरिंग के सहारे भाजपा जीती चुनाव

विधान सभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी का ओबीसी कार्ड राज्य में कोई कमाल नहीं कर पाया। वहीं दूसरी ओर भाजपा के हिंदुत्व की विचारधारा ने सोशल इंजीनियरिंग साधकर बहुमत के साथ चुनाव जीत लिया।

कांग्रेस का ओबीसी कार्ड फ्लाप, सोशल इंजीनियरिंग के सहारे भाजपा जीती चुनाव
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रायपुर। विधान सभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी का ओबीसी कार्ड राज्य में कोई कमाल नहीं कर पाया। वहीं दूसरी ओर भाजपा के हिंदुत्व की विचारधारा ने सोशल इंजीनियरिंग साधकर बहुमत के साथ चुनाव जीत लिया।

चुनाव परिणाम यह भी बताते हैं कि कांग्रेसी ब्राह्मण प्रत्याशियों को जनता ने नकार दिया है।वहीं भाजपा के 70 प्रतिशत ब्राह्मण प्रत्याशी जीत कर नई विधानसभा में पहुंच गए।भाजपा की जीत में सभी समाज और जाति के प्रत्याशियों ने अहम भूमिका निभाई है। इसकी बड़ी वजह राष्ट्रवाद, हिंदुत्व और सबका साथ- सबका विकास का मुद्दा रहा, जिसके सामने ओबीसी कार्ड धराशायी हो गया। कांग्रेस ने इस विधानसभा चुनाव में आठ विधानसभा से ब्राह्मण प्रत्याशियों को मैदान में उतारा था, जिनमें कोई भी जीत नहीं पाया।

वहीं भाजपा के सात ब्राह्मण प्रत्याशियों में से पांच ने जीत हासिल की है। कांग्रेस के इस निराशाजनक प्रदर्शन के लिए राजनीतिक पर्यवेक्षक पूर्ववर्ती भूपेश बघेल सरकार की मुखर ओबीसी राजनीति को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं, जिसमें कांग्रेस ने ओबीसी आरक्षण लटकाएं रखने के लिए राजभवन को भी जिम्मेदार ठहराया।

विधानसभा चुनाव में 32 ओबीसी उम्मीदवार विधायक चुने गए हैं। इनमें सबसे ज्यादा 12 साहू समाज से हैं। इसके अलावा पांच यादव व पांच कुर्मी समाज से हैं। कांग्रेस और भाजपा दोनों ने 20 साहू प्रत्याशी मैदान पर उतारा था, जिसमें भाजपा के 11 और कांग्रेस की तरफ से नौ प्रत्याशी थे। इनमें से दोनों पार्टियों से छह-छह प्रत्याशियों ने जीत हासिल की है। दोनों पार्टियों ने पांच यादवों को चुनाव में प्रत्याशी बनाया था, जिसमें चार ने जीत दर्ज की है।समाज के अन्य प्रत्याशियों में निषाद, सेन, कलार, कोष्टा समाज से भी एक-एक प्रत्याशियों ने जीत दर्ज की है।

भाजपा के हिंदुत्व कार्ड में सब जीते

भाजपा-कांग्रेस के बीच विधानसभा चुनाव में भाजपा का हिंदुत्व कार्ड कांग्रेस पर भारी पड़ गया। कांग्रेस के ओबीसी प्रत्याशी से लेकर अगड़ी जाति के प्रत्याशियों की करारी हार हुई। साजा विधायक रविंद्र चौबे से लेकर अंबिकापुर विधायक टीएस सिंहदेव भी शामिल हैं। वहीं भाजपा ने साजा क्षेत्र में बिरनपुर गांव की घटना के बाद किसान भुवनेश्वर साहू को प्रत्याशी बनाया। सांप्रदायिक हिंसा की इस घटना ने कांग्रेस के बड़े विधायकों की जड़ें हिला दी। किसान ने सात बार के विधायक रविंद्र चौबे को पराजित कर दिया। साथ ही भाजपा के शीर्ष नेताओं ने चुनाव प्रचार में हिंदुत्व के मुद्दे को जमकर भुनाया।

कांग्रेस से चुनाव हारने वाले ब्राम्हण प्रत्याशी

रवींद्र चौबे (साजा), अमितेश शुक्ला (राजिम), महंत रामसुंदर दास (रायपुर शहर दक्षिण), विकास उपाध्याय (रायपुर शहर पश्चिम), अरुण वोरा (दुर्ग शहर), पंकज शर्मा (रायपुर ग्रामीण), शैलेश पांडे (बिलासपुर) और शैलेश नितिन त्रिवेदी (बलौदाबाजार) शामिल हैं।

कांग्रेस के ओबीसी कार्ड का खामियाजा सवर्णों को भी भुगतना पड़ा। ब्राम्हण के अलावा 13 सवर्ण समाज के कांग्रेसी प्रत्याशियों को पराजय का सामना करना पड़ा है। इसके मुकाबले भाजपा ने सवर्ण वर्ग से 18 उम्मीदवारों को मैदान पर उतारा था। इसमें 16 विजयी हुए हैं। इन 18 में से सात ब्राह्मण थे, जिनमें से पांच ने चुनाव जीता है। भाजपा के ब्राम्हण प्रत्याशियों में सिर्फ शिवरतन शर्मा (भाटापारा) और प्रेमप्रकाश पांडे (भिलाई नगर) को चुनाव में हार का सामना करना पड़ा।


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