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कांग्रेसियों को सतर्कता की ज़रूरत

संगठन के प्रति असंदिग्ध निष्ठा और विद्वता के बावजूद कांग्रेस के नेता मणिशंकर अय्यर को बयान देते वक्त अधिक संयम व सावधानी बरतने की ज़रूरत है

कांग्रेसियों को सतर्कता की ज़रूरत
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संगठन के प्रति असंदिग्ध निष्ठा और विद्वता के बावजूद कांग्रेस के नेता मणिशंकर अय्यर को बयान देते वक्त अधिक संयम व सावधानी बरतने की ज़रूरत है। निवर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिये एक बार व्यक्तिगत अपमान भरी टिप्पणी कर वे पार्टी का ऐसा बड़ा नुकसान कर चुके हैं जिसकी भरपायी कभी नहीं हो सकी थी। फिर, कोई भी बयान देते वक्त उन्हें इस बात को अब तक समझ जाना चाहिये था कि सामने खड़े मोदी और उनकी भारतीय जनता पार्टी विपक्षी दलों का फायदा उठाने में पारंगत है। अब की बार चीन को लेकर उनका आया बयान अधिक संवेदनशील है। और तो और, ऐसे वक्त में यह बयान आया है जब लोकसभा चुनाव के लिये मतदान का अंतिम चरण 1 जून को होगा। नतीजे 4 जून को आ जायेंगे। आखिरी चक्र में ही वाराणसी सीट पर खुद मोदी उम्मीदवार हैं।

हालांकि अब केवल 57 सीटें बची हैं और मणिशंकर का बयान चुनावी परिणामों पर वैसा असर नहीं करेगा जैसा पिछली बार की उनकी टिप्पणी से हुआ था। चुनाव तो पूरा हो चुका है लेकिन कांग्रेस द्वारा जब मोदी एवं भाजपा नेताओं की बदज़ुबानी को लेकर भी एक बड़ी लड़ाई लड़ी जा रही है, तो सावधानी बेहद आवश्यक है। कांग्रेस ही नहीं, सभी विपक्षी दलों के नेताओं को यह पता भी है कि भाजपा के पास अपना एक सुसंगठित प्रचारतंत्र है; साथ ही उसका समर्थक मीडिया है जो मोदी विरोधी बातों को कई गुना बढ़ाकर दिखलाने व सुनाने में महारत रखता है। उनका यह बयान चाहे कांग्रेस को अब सीधे-सीधे कोई नुकसान नहीं पहुंचाएगा लेकिन विपक्ष की कथित रूप से देशविरोधी छवि बनाने में वह मददगार हो सकता है। वर्तमान दौर यथार्थ नहीं अवधारणाओं और छवियों से परिचालित होता है। इसकी रेस में भाजपा कांग्रेस से आगे है। अलबत्ता लम्बे समय के बाद विमर्श के स्तर पर कांग्रेस व सहयोगी दलों का गठबन्धन इंडिया भाजपा को मात देने में कामयाब दिख रहा है। भाजपा ने अपने पिछले 10 वर्षों के कार्यकाल में मुख्य रूप से यही काम किया है, कि विपक्षियों को राष्ट्रविरोधी साबित किया जाये। अय्यर का बयान कांग्रेस की इसी छवि को सघन करने में भाजपा का मददगार हो सकता है।

शनिवार शाम अय्यर दिल्ली में विदेशी संवाददाता क्लब में एक भाषण दे रहे थे जिसमें उन्होंने चीनी आक्रमण का उल्लेख करते हुए 'कथित' शब्द का प्रयोग किया था। उन्होंने कहा- 'अक्टूबर 1962 में चीनियों ने कथित तौर पर भारत पर आक्रमण किया था।' हालांकि उन्होंने अपने इस बयान के लिये माफी मांगते हुए कहा कि- 'मैं चीनी आक्रमण के पहले कथित शब्द का गलती से प्रयोग करने के लिये बिना शर्त माफी मांगता हूं।' वैसे इस बीच अनुमानों के अनुरूप भाजपा के आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने एक्स पर पोस्ट डाल ही दी। इसमें उन्होंने कहा है कि यह बयान कांग्रेस के चीन के प्रति प्रेम को दर्शाता है जबकि इस हमले के बाद चीन ने भारत की 38 हजार वर्ग किलोमीटर जमीन पर अपना कब्जा कर लिया था। लगे हाथ उन्होंने यह भी आरोप लगा दिया कि जवाहरलाल नेहरू ने चीन के पक्ष में राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद की सीट छोड़ दी थी। मालवीय के अनुसार राहुल गांधी ने चीन के साथ एक गुप्त एमओयू पर हस्ताक्षर भी किये थे और राजीव गांधी फाऊंडेशन ने चीनी दूतावास से चंदा तक स्वीकार किया था। इसके बाद यूपीए की सरकार ने चीनी वस्तुओं के लिये भारतीय बाजारों को खोल दिया था।

'कथित' शब्द के गलत प्रयोग का असर कितना घातक हो सकता है, इसका भान होते ही कांग्रेस के महासचिव व प्रचार विभाग के प्रमुख जयराम रमेश ने आनन-फानन में इस पर एक बयान दिया कि 'कांग्रेस अय्यर के बयान से खुद को अलग करती है। वह मानती है कि 1962 का चीन द्वारा किया गया हमला उतना ही वास्तविक था जितना 2020 की शुरुआत में चीन द्वारा लद्दाख में की गई घुसपैठ है।' रमेश ने कहा कि 'मोदी ने 19 जून को एक सार्वजनिक बयान में चीनी घुसपैठ को नकार कर न सिर्फ चीन को क्लीन चिट दी वरन भारतीयों का पक्ष कमजोर कर दिया। देपसांग व डैमचोक सहित 2000 वर्ग किमी का इलाका भारतीय सैनिकों की पहुंच से बाहर कर दिया गया है।' उन्होंने सभी से अय्यर की उम्र का भी ख्याल रखने के लिये कहा है। जिस कार्यक्रम में अय्यर ने चीनी आक्रमण के लिये 'कथित' शब्द का प्रयोग करने की चूक की, उसी में अपने भाषण में पाकिस्तान की भी प्रशंसा करते हुए कहा कि 'उनका पाकिस्तान में दिल खोलकर स्वागत हुआ था।' इसे भारत की एक बड़ी सम्पत्ति बतलाते हुए उन्होंने कहा कि 'पिछले 10 वर्षों में पाकिस्तान के साथ वार्ता के कोई प्रयास नहीं हुए।'

वैसे देखा जाये तो अय्यर के भाषण में एक 'कथित' वाला मामला छोड़ दें तो इतना बड़ा बखेड़ा करने का आधार नहीं बनता लेकिन फिलहाल देश जिस दौर से गुजर रहा है उसमें भाजपा के लिये राष्ट्रवाद एक प्रमुख ताकत है और वह हर ऐसे बयान को भुनाने की कोशिश करती है जिससे उसे सियासी फायदा मिले। यह कांग्रेस का दुर्भाग्य ही कहा जायेगा कि ऐसे वक्त में जब वह देश में लोकतंत्र बचाने की सबसे बड़ी लड़ाई लड़ रही है, उसके अपने संगठन के ही कुछ ऐसे वरिष्ठ सिपहसालार उसके लिये अड़चनें उत्पन्न करते हैं। कुछ दिनों पहले इंडियन ओवरसीज़ कांग्रेस के अध्यक्ष सैम पित्रोदा भी नस्ल तथा इनहेरिटेंस टैक्स सम्बन्धी बयानों द्वारा संगठन की मुश्किलें बढ़ा चुके हैं। वक्त सतर्कतापूर्वक बातें करने का है!


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