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सभी 'जाने वालों' से कांग्रेस को परेशान नहीं होना चाहिए

पूर्व केंद्रीय राज्य मंत्री मिलिंद देवड़ा के कांग्रेस पार्टी छोड़ने को लेकर काफी राजनीतिक शोर मचा हुआ है

सभी जाने वालों से कांग्रेस को परेशान नहीं होना चाहिए
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- जगदीश रत्तनानी

इस पृष्ठभूमि में देवड़ा को इस बदलाव के लिए दोष देने या श्रेय देने की आवश्यकता नहीं है। कांग्रेस को 'व्यवसाय विरोधी' बताते हुए पार्टी पर उनके नए हमले समझ में आते हैं। भले ही ये आरोप उनके चुनाव और शिवसेना के शिंदे गुट को वित्त पोषित करने के लिए बड़ा व्यवसाय ला सकते हैं। हालांकि वर्तमान संदर्भ में यह देखना मुश्किल है कि यह दृष्टिकोण उन्हें वोट कैसे दिलाएगा। मुरली देवड़ा की तरह मिलिंद देवड़ा खुद उद्योगपति-व्यापारी हैं।

पूर्व केंद्रीय राज्य मंत्री मिलिंद देवड़ा के कांग्रेस पार्टी छोड़ने को लेकर काफी राजनीतिक शोर मचा हुआ है। एकनाथ शिंदे के नाम पर बनी शिवसेना शिंदे गुट में देवड़ा शामिल हो गए हैं। उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली मूल पार्टी से अलग होकर शिंदे भारतीय जनता पार्टी के साथ मिलकर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने हैं। देवड़ा का बाहर निकलना काफी हद तक एक गैर महत्वपूर्ण घटना है और शायद उनका यह कदम दक्षिण मुंबई के लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र के लिए पार्टी टिकट न पाने की हताशा से प्रभावित है। देवड़ा के दिवंगत पिता मुरली देवड़ा इस सीट का प्रतिनिधित्व करते थे। उसके बाद उनके बेटे को ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना से दो बार हार का सामना करना पड़ा। कांग्रेस के साथ गठबंधन में जाने पर ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना 2024 के चुनाव में उस सीट पर दावा करेगी। ऐसी स्थिति में देवड़ा के पास कुछ भी नहीं बचेगा। इस लिहाज से मिलिंद देवड़ा का जाना समझ में आता है। यह एक तरह से अपना अस्तित्व बचाने की रणनीति का हिस्सा है जो प्रासंगिक और राजनीतिक क्षेत्र में बने रहने तथा परिवार की विरासत को जीवित रखने का अंतिम प्रयास है।

इस पृष्ठभूमि में देवड़ा को इस बदलाव के लिए दोष देने या श्रेय देने की आवश्यकता नहीं है। कांग्रेस को 'व्यवसाय विरोधीc बताते हुए पार्टी पर उनके नए हमले समझ में आते हैं। भले ही ये आरोप उनके चुनाव और शिवसेना के शिंदे गुट को वित्त पोषित करने के लिए बड़ा व्यवसाय ला सकते हैं। हालांकि वर्तमान संदर्भ में यह देखना मुश्किल है कि यह दृष्टिकोण उन्हें वोट कैसे दिलाएगा। मुरली देवड़ा की तरह मिलिंद देवड़ा खुद उद्योगपति-व्यापारी हैं। ये लोग चुनिंदा व्यापारिक परिवारों के करीबी रहे हैं और अतीत में कांग्रेस के लिए सेलिब्रिटी फंड जुटाने वालों के रूप में जाने जाते हैं। मुरली देवड़ा द्वारा मंच पर लाए गए हीरा व्यापारी पार्टी के लिए चेक देने और तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के साथ फोटो खिंचवाने के लिए लाइन में खड़े होते थे। मनमोहन सिंह सरकार में पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्री रहे मुरली देवड़ा रिलायंस समूह के अध्यक्ष मुकेश अंबानी के करीबी और निजी मित्र थे, जिन्होंने हितों के टकराव के मुद्दों को उठाया था, जिसे मुकेश के भाई अनिल अंबानी ने उठाया था।

कांग्रेस ने तब देवड़ा के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की, मनमोहन सिंह ने शासन के स्पष्ट, आमने-सामने के मुद्दों को नजरअंदाज कर दिया था। मुकेश अंबानी (और उदय कोटक ने अलग से) ने 2019 के चुनावों के दौरान मिलिंद देवड़ा का समर्थन किया। वैसे देवड़ा यह चुनाव हार गए थे। खुला समर्थन इस मायने में विचित्र था कि इससे वोटों में वृद्धि होने की संभावना नहीं थी लेकिन इससे यह पता चला कि ऐसे राजनीति के बैकरूम में खेलना पसंद करने वाले व्यापारिक नेता मिलिंद देवड़ा को खुला समर्थन के लिए तैयार थे। यह तब की बात है जब वे कांग्रेस में थे और एक समय यह है जब भाजपा सबसे अच्छी तरह से वित्त पोषित पार्टी है और नई दिल्ली और महाराष्ट्र में सत्तारूढ़ है।

15 जनवरी को देवड़ा का पार्टी छोड़ने का फैसला इस लिहाज से लिया गया था ताकि यह दर्शाया जा सके कि इससे राहुल गांधी द्वारा मणिपुर में शुरू किए गए वॉकेथॉन को कमजोर कर सके। यह एक तरह से 2024 के चुनाव के करीब आने के साथ ही किए जा रहे षड्यंत्र के दयनीय पक्ष को दर्शाता है। फिर भी देवड़ा के कांग्रेस के बाहर निकलने में भी एक बड़ा संदेश है जो पार्टी को मजबूत करने में मदद करेगा क्योंकि यह पार्टी को बताता है कि भारत जोड़ो (एकता) और न्याय (न्याय) के अपने मार्ग पर लोगों के पुनर्निर्माण और फिर से जुड़ने के लिए वास्तव में उसे किस पर निर्भर रहना चाहिए। यह देश भर में राहुल गांधी की चुनाव-पूर्व यात्रा का प्रमुख पाठ है।

किसी भी राजनीतिक पार्टी और विशेष रूप से कांग्रेस, जिसने सफलता देखी है और लंबे समय तक सत्ता में रही है, के जोखिमों में से एक यह है कि यह उन सभी प्रकार के कार्यकर्ताओं को आकर्षित और आत्मसात करता है जो नेतृत्व की भूमिका निभाने के लिए वर्षों से बढ़ते हैं। भाजपा को भी यही नुकसान उठाना पड़ रहा है। उनमें से कुछ अवसरवादी, हां में हां भरने वाले और कुछ ऐसे मित्र होंगे जिनकी वैचारिक प्रतिबद्धता, मूल्यों का सम्मान करना या आम लोगों की आकांक्षाओं की समझ से कोई लेना-देना नहीं है। वे शक्तिशाली धनकुबेर अच्छी तरह से जुड़े नेटवर्कर या संकीर्ण हितों वाले लॉबिस्ट हो सकते हैं जो राजनीतिक अभयारण्य या एक राजनीतिक दल की विशालता में अपनी तरक्की के लिए एक आसान सीढ़ी की तलाश कर रहे होते हैं। उस समय तक जब तक कि पार्टी के पास सत्ता है और वे (धनकुबेर) अपने सदस्यों के राजनीतिक भाग्य को निर्धारित करने में सक्षम है। सत्ता के बिना तथा भविष्य के चुनावों के लिए धन जुटाने की क्षमता के बिना खिलाड़ियों का यह दल जल्दी से असहज हो जाता और बाहर निकलना शुरू कर देता है।

हाल के दिनों में कांग्रेस के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ है। यह कुछ पहलुओं में पार्टी की कमजोरी और कुछ अन्य में इसकी ताकत को दर्शाता है। कमजोरी यह है कि पार्टी इन खिलाड़ियों को पार्टी में बनाए रखने की अनुमति देती है, यहां तक कि उन्हें राजनीतिक संगठन के भीतर महत्वपूर्ण स्थान भी देती है जिसका उपयोग ये छद्म लोग अपने पैर जमाने, अपनी पकड़ मजबूत करने, अपने प्रभाव का विस्तार करने और एक नकली मुखौटे के साथ स्वीकृति प्राप्त करने के लिए करते हैं जो व्यक्ति की असलियत छिपाने के लिए पहना जाता है। कांग्रेस इनमें से कुछ दरबारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने के लिए अनिच्छुक रही है। इसके कई जटिल कारण हैं, जिनमें से कम से कम यह नहीं है कि पार्टी खुद भ्रष्टाचार के लिए जानी जाती है और अब इसे बहुत कम छूट मिली हुई है क्योंकि यह वैसे भी सत्ता में नहीं है और प्रभाव डालने की स्थिति में नहीं है।

फिर भी, कांग्रेस अपने स्वर्णिम दिनों में भी इन अवांछित व्यक्तियों को निकालने में धीमी गति से काम करती रही है। इस मामले में भाजपा चौकस, तत्पर और बहुत स्पष्ट रही है- आप पार्टी के लिए काम करते हैं और यह न समझें कि पार्टी आपके लिए काम करती है। कुछ लोग यह तर्क देंगे जो कि गलत नहीं होगा कि भाजपा में आप एक व्यक्ति के लिए काम करते हैं और भले ही वह आलोचना सही हो, लेकिन नई ऊर्जा के साथ नए चेहरों को लाने के भाजपा के प्रयास को हल्के में नहीं लिया जा सकता।
कांग्रेस को पता होगा कि पार्टी के भीतर लोकतंत्र के लिए लोगों की बात सुनना महत्वपूर्ण है लेकिन मांगों और धमकियों से भयभीत नहीं होना चाहिए। उदाहरण के लिए, देवड़ा के बारे में कहा जाता है कि वे 2024 के चुनावों के लिए अपना टिकट खोने की आशंका के कारण जयराम रमेश के माध्यम से कांग्रेस में अपनी पैरवी करा रहे थे। उन्होंने राहुल गांधी से जुड़ने की कोशिश की।

लेकिन अगर देवड़ा को टिकट न देना और ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना से दो बार के विजेता को टिकट देना कांग्रेस और बड़े विपक्ष के हित में है, तो आखिर किया क्या जाना चाहिए? जवाब बहुत स्पष्ट है- देवड़ा को पार्टी के लिए रास्ता बनाना चाहिए और भाजपा-विरोधी ताकतों के लिए काम करना चाहिए। यहां भी उनकी क्षमता की उतनी ही परीक्षा होती जितनी अगर उन्हें टिकट मिलती तो पार्टी उम्मीदवार के तौर पर होती। यह स्पष्ट संदेश सभी कांग्रेस कार्यकर्ताओं तक जा सकता है। कांग्रेस तब और मजबूत होगी जब सभी कार्यकर्ता यह जान और समझ लें कि उनके सामने एक बड़ा राष्ट्रीय कार्य है जो चुनाव लड़ने के लिए अपना टिकट सुरक्षित करने से कहीं ज्यादा बड़ा है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। सिंडिकेट : द बिलियन प्रेस)


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