ऐसे आचार्यों से किनारा करे कांग्रेस
ऐसे वक्त में जब कांग्रेस अपने अस्तित्व के साथ-साथ पूरे भारत में लोकतंत्र को बचाने की सबसे बड़ी व निर्णायक लड़ाई लड़ रही है

ऐसे वक्त में जब कांग्रेस अपने अस्तित्व के साथ-साथ पूरे भारत में लोकतंत्र को बचाने की सबसे बड़ी व निर्णायक लड़ाई लड़ रही है, तब आचार्य प्रमोद कृष्ण का वह बयान उसे नुकसान पहुंचा सकता है जिसमें उन्होंने कहा है कि 'कांग्रेस ने एक लफंडर को अपना महासचिव बना रखा है।' साथ ही वे पहले भी अनेक ऐसे बयान दे चुके हैं जो पार्टी के सीधे-सीधे खिलाफ हैं। कांग्रेस अपने इसी प्रकार के सदस्यनुमा खैरख्वाहों की बदौलत भरपूर नुकसान झेल चुकी है। उसे चाहिये कि वह अपने ऐसे आचार्यों और नेताओं पर लगाम कसे या उन्हें बाहर का रास्ता दिखाये।
उल्लेखनीय है कि आचार्य प्रमोद प्रियंका गांधी के करीबी माने जाते हैं और वे दो बार कांग्रेस की तरफ से लोकसभा का चुनाव भी लड़ चुके हैं। पहली बार 2014 में संभल और 2019 में लखनऊ से। हालांकि दोनों ही बार उन्हें मुंह की खानी पड़ी थी। दरअसल हाल ही में आचार्य ने कहा था कि 'कांग्रेस के भीतर कुछ हिन्दू विरोधी भावनाओं के लोग हैं।' इस पर जब कांग्रेस के महासचिव व मध्यप्रदेश के प्रभारी रणदीप सिंह सुरजेवाला से पत्रकारों ने प्रतिक्रिया जाननी चाही तो उन्होंने कहा कि 'वे ऐसे ऊलजलूल लोगों को छोड़ें और बयानों पर न जायें।' इसी बयान से नाराज़ होकर आचार्य ने ट्वीट कर दिया कि 'कांग्रेस के भाग्य की यह विडम्बना है कि एक ऐसे लफंडर को पार्टी का महासचिव बना दिया गया है जिसने राज्यसभा के चुनाव में विधायक रहते हुए भाजपा के उम्मीदवार और जी न्यूज़ के मालिक सुभाष चंद्रा को जितवाने का पाप सिर्फ एक अश्लील सीडी के प्रसारण को रुकवाने के लिये किया।' इसके पहले उन्होंने बयान दिया था कि 'कुछ ऐसे बड़े कांग्रेसी नेता हैं जिन्हें हिन्दू शब्द से ही नफरत हैं।' उनका यह भी कहना था कि 'कुछ नेताओं को राम मंदिर ही नहीं भगवान राम से भी नफरत है'। वे यहीं तक नहीं रुके और उन्होंने यह भी कहा कि 'दुनिया जानती है कि राम मंदिर के निर्माण को रोकने के प्रयास हुए। इससे सनातन धर्म में विश्वास रखने वाले करोड़ों लोगों की आस्था को ठेस पहुंची है।'
आचार्य प्रमोद ऐसे लोगों में हैं जो अपने पार्टी विरोधी बयानों से कांग्रेस को नुकसान पहुंचाते रहे हैं। हाल ही में उन्होंने संयुक्त विपक्षी गठबंधन इंडिया पर भी सवाल उठाते हुए कहा था कि उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती से गठबंधन किये बगैर उप्र में कांग्रेस व समाजवादी पार्टी चुनाव जीत ही नहीं सकते।
प्रमोद आचार्य का गुस्सा स्वामी प्रसाद मौर्य पर भी भड़का है जिन्होंने अपने एक्स हैंडल पर सोमवार को अपनी दिवाली की तस्वीर शेयर करते हुए लिखा है कि 'दुनिया में सभी रंग-रूप, नस्ल वालों के बच्चे दो हाथ, दो पैर, दो कान, दो आंख, दो छिद्रों वाली नाक के साथ एक सिर, एक पीठ व एक पेट के साथ पैदा होते हैं। चार हाथ, आठ हाथ, दस हाथ, बीस हाथ व हजार हाथ वाला बच्चा आज तक पैदा ही नहीं हुआ तो यह चार हाथों वाली लक्ष्मी कैसे पैदा हो सकती है?' उन्होंने यह भी कहा कि 'अगर आपको लक्ष्मी की ही पूजा करनी है तो अपनी पत्नी की पूजा करें जो आपको व आपके परिवार को खाना खिलाती है, देखरेख करती है।' इस पर अनेक हिंदूवादी संगठनों ने आपत्ति जताई लेकिन आचार्य प्रमोद कुछ ज्यादा ही नाराज़ हो गये। उन्होंने यहां तक कह डाला कि मैं उप्र के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से कहूंगा कि उनके बोलने पर पाबंदी लगाई जाए।
इतने समय से कांग्रेस में रहने और कई राजनैतिक उतार-चढ़ाव देखने वाले आचार्य प्रमोद को अगर यह बात नहीं समझ में आती कि ऐसे विवादों से अंतत: फायदा कांग्रेस के विरोधियों, वह भी मुख्यत: भारतीय जनता पार्टी को ही होता है, तो उन्हें वहां रहने और पार्टी द्वारा उन्हें अपने साथ जोड़कर रखे जाने का कोई औचित्य नहीं है। कांग्रेस कई ऐसे अपनों को झेल चुकी है और उसे इसका बहुत खामियाजा उठाना पड़ा है। वे चाहें मणिशंकर अय्यर हों या सलमान खुर्शीद या फिर कपिल सिब्बल अथवा गुलाम नबी आजाद- अलग-अलग अवसरों पर ऐसे ही बयान देकर पार्टी को नुकसान उठाते रहे हैं। इनमें से कुछ ऐसे भी हैं जो अब कांग्रेस में नहीं हैं लेकिन उनके पार्टी छोड़ने से कोई नुकसान नहीं हुआ है। सच तो यह है कि ऐसे लोग पार्टी में रहकर ही उसे नुकसान पहुंचाते हैं।
पार्टी को चाहिये कि ऐसे कथित नेतानुमा आचार्यों पर न केवल अंकुश लगाए वरन ज़रूरत पड़ने पर उन्हें निकाल बाहर करें। यह वही पिच है जिस पर भाजपा चाहती है कि उसके सारे विरोधी दल आकर खेलें। व्यक्तिगत रंजिशों व वाद-विवादों से प्रारम्भ होने वाले ऐसे ही प्रकरण धीरे-धीरे बड़ा रूप धरते हैं। कांग्रेस विरोधी पार्टियां इन्हीं सारे बयानों का संदर्भ देकर पार्टी को घेरती है और जनता के सामने उसका कद व महत्व गिराती जाती है। इसके लिये किसी और को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। इन अंदरूनी विवादों का हवाला देकर भाजपा तंज कस सकती है कि पहले ये (कांग्रेसी) आपस में मोहब्बत कर लें फिर देशवासियों के बीच नफरत को खत्म करें। अपने एक महासचिव पर इस तरह की टिप्पणी करना किसी भी जिम्मेदार नेता को शोभा नहीं देता। इसके बाद कांग्रेस द्वारा अन्य दलों के नेताओं की ऐसी टिप्पणियों पर उंगली उठाने का हक नहीं रह जाता। आचार्य प्रमोद जैसे लोग ही कांग्रेस की लड़ाई को कमजोर बनाते हैं


