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आखिरकार भाजपा को कांग्रेस ने उतारा यथार्थ की ज़मीन पर

कर्नाटक के बाद छत्तीसगढ़ ने साबित कर दिया है कि भाजपा के साम्प्रदायिक कार्ड के दिन लद गये हैं

आखिरकार भाजपा को कांग्रेस ने उतारा यथार्थ की ज़मीन पर
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- डॉ. दीपक पाचपोर

कर्नाटक के बाद छत्तीसगढ़ ने साबित कर दिया है कि भाजपा के साम्प्रदायिक कार्ड के दिन लद गये हैं। जमीन पर पूरी तरह से उतर चुकी भाजपा अब सस्ते गैस सिलेंडर की बात करती है, वह चुनाव जीतने पर किसानों को प्रति क्विंटल 3100 रुपए का ऊंचा न्यूनतम समर्थन मूल्य देना चाहती है- बिना यह बताये कि पड़ोसी राज्य मध्यप्रदेश में इसका भाव 2100 रुपए क्यों है।

वैसे तो देश के पांच राज्यों (राजस्थान, मध्यप्रदेश, तेलंगाना, मिजोरम एवं छत्तीसगढ़) में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं लेकिन इनमें दूसरा सबसे छोटा राज्य छत्तीसगढ़ कुछ विशिष्ट मायनों में अति महत्वपूर्ण बन गया है। यहां के राजनैतिक विमर्श से पिछले कुछ समय से जो राजनीतिक दबदबा एवं बढ़त भारतीय जनता पार्टी के पास थी, वह अब छूट रही है। पांच साल पहले बड़े बहुमत से छत्तीसगढ़ में बनी कांग्रेस की सरकार ने जहां एक ओर अनेक लोकहितकारी काम किये हैं, उसने भाजपा को राजनैतिक जवाब तो दिया ही है, देश के सम्पूर्ण सियासी नैरेटिव को बदलकर रख दिया है। नुकसान में भाजपा ही है

मतदाताओं को लुभाने के लिये अब जिस तरह से पांच राज्यों के चुनावों में प्रमुख राजनैतिक दल घोषणाएं कर रहे हैं उससे मतदाताओं के विभिन्न वर्गों की सचमुच मौज हो गई है। पिछले कुछ वर्षों से जिस प्रकार से आर्थिक एवं जमीनी मुद्दे सियासी विमर्श से हट गये थे, वे इन चुनावों के जरिये वापस केन्द्र में आ रहे हैं। यथार्थवादी मुद्दों की जगह पर भावनात्मक मसलों को तरज़ीह देने वाली भारतीय जनता पार्टी भी रास्ता बदल रही है। मतदाताओं ने उसे सही राह पर तो लाया है, अब अवाम को केवल यह सीखना बचा है कि गारंटियां देने वाली राजनैतिक पार्टियों के जीतने पर उनके नेताओं को कान पकड़कर उन्हें पूरा करने पर मजबूर किया जाये।

पिछले दिनों हिमाचल एवं कर्नाटक में मिली पराजयों से उम्मीद की जा रही थी कि भाजपा का राजनैतिक विमर्श बदलेगा परन्तु उसका साम्प्रदायिकता, सामाजिक धु्रवीकरण और ऐसे ही भावनात्मक मुद्दों पर विश्वास इतना गहरा है कि वह इस लाइन को सहजता से नहीं छोड़ती। हालांकि उसे कर्नाटक में मिली हार से सबक लेना चाहिये था जब वहां कांग्रेस द्वारा अपने घोषणापत्र में बजरंग दल पर प्रतिबंध के वादे को उसने बजरंग बली से जोड़ दिया था लेकिन उसका कोई फायदा उसे मिल नहीं पाया था। खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा सभाओं में बजरंग बली के नारे लगवाए गए और प्रदेश भर में चुनाव के अंतिम दौर में हनुमान चालीसा के सामूहिक पाठ भी कराये गये। इसके बाद भी जिस तरह से भाजपा को मुंह की खानी पड़ी तो उसके बाद हो रहे इन इन पांच राज्यों में उससे सबक लेते हुए कम से कम इस तरीके के प्रचार से तौबा करनी चाहिये थी। वैसे इसके लिये इन राज्यों में उसकी गुंजाइश बची भी नहीं है।

राजस्थान में भाजपा ने इसकी कोशिश की जहां कुछ अरसा पहले हुए एक दर्जी कन्हैयालाल की हत्या के मामले को भुनाने की कोशिश हुई, पर वह विमर्श भी नहीं बढ़ पाया। वहां के लोगों ने राजस्थान सरकार के कामों को पसंद किया, खासकर सस्ते रसोई गैस सिलिंडर, पुरानी पेंशन योजना आदि। छत्तीसगढ़ ने और भी बेहतर उदाहरण पेश किया। यहां पहले चरण का मतदान (7 नवम्बर) हो जाने के बाद और दूसरे चरण (17 नवम्बर) के पहले भारतीय जनता पार्टी ने ऐलान कर दिया कि अगर वह चुनाव जीतती है तो राज्य की सभी विवाहित महिलाओं को महतारी वंदन योजना के अंतर्गत हर माह 1000 रुपए तक की आर्थिक मदद दी जायेगी। इसके लिये उसने प्रमुख अखबारों में आधे-आधे पेज के विज्ञापन प्रकाशित किये जिसमें एक फॉर्म भी था। महिलाओं से कहा गया कि वे इसे भरकर भाजपा के स्थानीय कार्यालयों में जमा करें।

मकसद साफ है कि जो महिलाएं इन आवेदनों को जमा करेंगी उन्हें पार्टी के पक्ष में मतदान करने के लिये प्रेरित किया जायेगा। आचार संहिता का यह खुला उल्लंघन तो है ही, अनैतिक भी है। निर्वाचन आयोग ने इसे लेकर भाजपा की राज्य इकाई के अध्यक्ष अरुण साव के अलावा कुछ भाजपा प्रत्याशियों को नोटिस भी जारी की है। एक पूर्व मंत्री राजेश मूणत की तरफ से भी मतदाताओं के मोबाइलों पर डायरेक्ट मैसेज मिले हैं जिनमें एक ईमेल आईडी दी गई है और कहा गया था कि वे इस योजना का लाभ लेने के लिये इस लिंक पर आवेदन करें। अब इसके जवाब में कांग्रेस ने इसी की तज़र् पर 15 हजार रुपये सालाना आर्थिक मदद देने का ऐलान कर मतदाताओं के रुख को पलटाने का दांव चल दिया जिसका भाजपा निरूत्तर है।

इसके पहले यहां कुछ जगहों पर साम्प्रदायिकता का रंग देने की कोशिशें हुई हैं, जैसी कि अनेक राज्यों में हुई है। विशेषकर, कद्दावर नेता मोहम्मद अकबर के चुनावी क्षेत्र कवर्धा में उनके खिलाफ प्रचार करने के लिये कई तल्ख़ ज़ुबानी बाहरी नेताओं को उतारा गया। इनमें उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, असम के मुख्यमंत्री हिमंता विस्व सरमा आदि शामिल हैं। इसके अलावा कई साधु-संतों को तक उतारा गया। हिमंता ने तो अंदेशा जताया कि 'एक अकबर के आने से कई अकबर आते हैं,' लेकिन बाद में वे इससे मुकर गये। ऐसे ही, कुछ समय पहले बेमेतरा में एक साम्प्रदायिक झगड़े में मारे गये भुनेश्वर साहू के पिता ईश्वर साहू को मंत्री रवीन्द्र चौबे के विरूद्ध भाजपा ने मैदान में उतारा है। फिर भी ये पैंतरे काम नहीं आ रहे हैं क्योंकि छग सचमुच शांति का टापू है। इसलिये हमेशा की तरह भाजपा सरकार ने केन्द्रीय जांच एजेंसियों के अधिकारियों को भी काम पर लगा दिया है। कर्नाटक में बजरंग दल को बजरंग बली से मिलाने की ही तरह छग में भी भाजपा ने महादेव एप को भगवान महादेव से जोड़ दिया। मोदी, केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह जैसे नेता भी महादेव एप के जरिये भूपेश बघेल को 500 करोड़ रुपये मिलने का प्रचार तो कर रहे हैं परन्तु यह कोई भी नहीं बता पा रहा है कि ये पैसे आए कैसे और खुद छत्तीसगढ़ सरकार के महादेव एप पर प्रतिबंध लगाने की मांग को क्यों केन्द्र ने लम्बे समय तक लटकाये रखा?

कर्नाटक के बाद छत्तीसगढ़ ने साबित कर दिया है कि भाजपा के साम्प्रदायिक कार्ड के दिन लद गये हैं। जमीन पर पूरी तरह से उतर चुकी भाजपा अब सस्ते गैस सिलेंडर की बात करती है, वह चुनाव जीतने पर किसानों को प्रति क्विंटल 3100 रुपए का ऊंचा न्यूनतम समर्थन मूल्य देना चाहती है- बिना यह बताये कि पड़ोसी राज्य मध्यप्रदेश में इसका भाव 2100 रुपए क्यों है जहां उसी की सरकार है। अब वह छत्तीसगढ़ के लोगों को अपने घोषणापत्र में कहती है कि प्रदेश में महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार योजना (मनरेगा) में बेहतरीन काम हुआ है। वही मनरेगा जिसे मोदी भरी संसद में चटकारे लेकर कहते थे कि 'यह कांग्रेस की 'विफलता का स्मारक' है और वह इसे बन्द न करके इसे जारी रखेंगे ताकि जनता देख सके कि आजादी के इतने वर्षों के बाद भी सरकार लोगों को गड्ढे खोदने के लिये भेजती है।' अब भाजपा के लिये किसी को नगद राशि देना रेवड़ियां नहीं रह गया है। हालांकि अभी भी भाजपा यहां ओबीसी और कर्ज माफी के मामले पर मौन है। इसलिये यह चुनाव भाजपा सहित सभी राजनैतिक दलों को यह भी बताएगा कि जनहित के मामलों को जल्दी और वक्त पर लागू किया जाना चाहिये, न कि चुनावी हार को सामने देखकर।

छत्तीसगढ़ का विमर्श अन्य चारों राज्यों में भी फैलता दिख रहा है। उम्मीद है कि वह अगले साल होने जा रहे लोकसभा के चुनाव में भी बना रहेगा। यहां कोई जीते या हारे, तमाम राज्यों में कोई जीते या हारे, लोकसभा-2024 भी कोई हारे या जीते, देश का राजनैतिक विमर्श ठोस जमीनी रहेगा- यही छत्तीसगढ़ का योगदान है।
(लेखक देशबन्धु के राजनीतिक सम्पादक हैं)


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