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संघ को कांग्रेस की फिर से चुनौती

अपने अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के जरिये कांग्रेस ने नागपुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को यह कहकर बड़ी ललकार लगाई है कि 'लोकसभा का आसन्न चुनाव मनुवाद से देश को बचाने तथा संविधान की रक्षा के लिये है

संघ को कांग्रेस की फिर से चुनौती
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अपने अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के जरिये कांग्रेस ने नागपुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को यह कहकर बड़ी ललकार लगाई है कि 'लोकसभा का आसन्न चुनाव मनुवाद से देश को बचाने तथा संविधान की रक्षा के लिये है।' नागपुर लोकसभा सीट से कांग्रेस के प्रत्याशी विकास ठाकरे के पक्ष में सोमवार को आयोजित एक विशाल जनसभा को सम्बोधित करते हुए खरगे ने साफ किया कि उनके लिये 'यह चुनाव प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी या नितिन गडकरी के खिलाफ नहीं बल्कि मनुवादी विचारधारा के खिलाफ लड़ाई है।' उल्लेखनीय है कि नागपुर में ही संघ का मुख्यालय है और ठाकरे भारतीय जनता पार्टी के कद्दावर नेता व केन्द्रीय मंत्री नितिन गडकरी के विरूद्ध मैदान में हैं। खरगे ने चेताया कि अगर इस बार के चुनावों में भाजपा व मोदी की जीत होती है तो देश में फिर कोई चुनाव नहीं होंगे।

खरगे द्वारा जनता को आरएसएस के गढ़ में खड़े होकर चेताना एक तरह से उन्हें इस चुनाव के महत्व एवं स्थिति की गम्भीरता से अवगत कराना है। देश किस नाज़ुक स्थिति में है- यह संदेश जनसामान्य तक जाना ज़रूरी है। संघ की देश के स्वतंत्रता आंदोलन से अनुपस्थिति की आलोचना करते हुए खरगे ने कहा कि अब ये लोग (भाजपा वाले) राममंदिर तथा बाबा साहेब अंबेडकर के नाम पर वोट मांगने आते हैं। उन्होंने याद दिलाया कि इतने वर्षों तक संघ के लोगों ने अंबेडकर की एक तस्वीर भी नहीं लगाई और कार्यालय में राष्ट्रीय ध्वज तक नहीं लगाते थे। मोदी के पिछले दस वर्षीय कार्यकाल में देश की गिरती जीडीपी, भ्रष्टाचार आदि के बारे में मोदी का दोहरा रवैया आदि अनेक बातें थीं, लेकिन उनके भाषण का केन्द्र संघ की विचारधारा को चुनौती देना रहा जिसका संदेश दूर तक जायेगा।

यह पहला अवसर नहीं है जब कांग्रेस ने संघ की सोच को उसके ही मुख्यालय में चुनौती दी हो। पिछले साल 28 दिसम्बर को कांग्रेस ने अपना 139वां स्थापना दिवस इसी शहर में मनाकर अपने इरादे जाहिर कर दिये थे। तब भी खरगे ने अपने भाषण में कहा था कि इस आयोजन के लिये उनकी पार्टी ने नागपुर को इसलिये चुना है ताकि जनता में संदेश जाये कि कांग्रेस अपनी विचारधारा के बल पर आगे बढ़ेगी। वह संघ की विभाजनकारी तथा नफ़रती विचारधारा के विरोध में खड़ी रहेगी। वैसे नागपुर के उस कार्यक्रम के बहुत पहले ही संघ के खिलाफ कांग्रेस की निर्णायक लड़ाई की शुरुआत उसी दिन से मानी जानी चाहिये जब 7 सितम्बर, 2022 को राहुल गांधी ने कन्याकुमारी से कश्मीर की लगभग 3600 किलोमीटर की पैदल यात्रा की थी। उन्होंने इसका नाम दिया था- 'नफरत के बाजार में मोहब्बत की दूकान'। यह नारा अपने आप में संघ पर खुला प्रहार था। इसके साथ ही कांग्रेस की संघ से वैचारिक लड़ाई का बड़ा व खुला स्वरूप देशवासियों के सामने आ गया था।

अपने दो कार्यकालों में मोदी व भाजपा ने जो अनेक तरह की प्रशासनिक अराजकता व आर्थिक बदहाली फैलाई है, उसे अगर एक तरफ रख दें तो जनता के बीच वैमनस्यता फैलाना तथा विभिन्न सम्प्रदायों व वर्णों को आमने-सामने खड़ाकर उसका राजनैतिक फायदा उठाना ही भाजपा का प्रमुख हथियार बन गया है। राहुल की यात्रा 30 जनवरी, 2023 को श्रीनगर के लालचौक में झंडा फहराने के साथ समाप्त हुई थी। यात्रा के दौरान पुनर्रचित विमर्श के माध्यम से कांग्रेस ने संघ व भाजपा की विचारधारा से सीधी लड़ाई प्रारम्भ की थी। यह लड़ाई परवान चढ़ी मणिपुर से 14 जनवरी को शुरू हुई 'भारत जोड़ो न्याय यात्रा' के नाम से निकली राहुल की दूसरी यात्रा से। इसका समापन हुआ था 18 मार्च को मुम्बई पहुंचकर। अगले दिन यहीं के ऐतिहासिक शिवाजी पार्क में संयुक्त प्रतिपक्ष 'इंडिया' के बैनर तले हुई विशाल रैली ने साबित कर दिया कि संघ की विचारधारा के खिलाफ लड़ने के लिये लोग अब कांग्रेस के साथ हैं।

नागरिकों के लिये न्याय हासिल करना संघ एवं भाजपा के साथ लड़ाई का एक अन्य महत्वपूर्ण मोर्चा है। संघ एक तरफ़ सामाजिक विद्वेष फैलाता है, तो दूसरी ओर उसकी मान्यता नागरिक आजादी छीनने और आर्थिक गैरबराबरी में भरोसा करती है। संघ तमाम राजनैतिक व आर्थिक शक्ति कुछ मु_ी भर लोगों के हाथ में ही सौंप देने में विश्वास करता है। पिछले 10 वर्षों का इतिहास देखें तो यही साबित होता है।

आज कांग्रेस को नया रूप और लौटी हुई शक्ति इसी लड़ाई के ऐलान से प्राप्त हुई है। कांग्रेस का वैचारिक आधार ही संघ तथा उसकी संकीर्ण व मध्ययुगीन सोच के मुकाबले समतामूलक व न्यायपूर्ण समाज की रचना करना है। कांग्रेस के लिये यह कोई नयी बात नहीं है क्योंकि देश ने देखा है कि लगभग 65 वर्षों तक भारत इसी रास्ते पर चला है। बीच में कई बार ऐसा भी हुआ जब भारत में गैर कांग्रेसी सरकारें बनी थीं, परन्तु देश व संविधान के निर्माताओं द्वारा जो राह दिखाई गयी थी, उससे किसी ने भी अलग राह नहीं पकड़ी। स्वतंत्रता, समानता व बन्धुत्व पर आधारित समाज और शासन प्रणाली देखने के आदी हो चुके भारत को जब मोदी एवं भाजपा ने अलग राह पर हांकने की कोशिश की तो उसे कुछ हद तक कामयाबी तो ज़रूर मिली लेकिन जैसे-जैसे भाजपा के काम करने के कुटिल उद्देश्य व बुरे परिणाम आने शुरू हुए, देश को समझ में आने लगा कि उसके लिये वही सारा कु छ सही है जो आजादी की लड़ाई के नायकों ने तय किया था। कांग्रेस को भी पता चल गया है कि उसकी ताकत का राज संघ के विरोध में है। प्रगतिशील व लोकतांत्रिक लोगों की उससे अपेक्षा भी यही है।


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