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मध्यप्रदेश में कांग्रेस ने वापसी के लिए अपनाया अनुभवी और युवा के समन्वय का फॉर्मूला

 साल के अंत में होने वाले मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव कांग्रेस के लिए 'करो या मरो' की लड़ाई बन चुका है, यही कारण है कि पार्टी हाईकमान ने पार्टी की राज्य इकाई में बड़ा बदलाव किया है

मध्यप्रदेश में कांग्रेस ने वापसी के लिए अपनाया अनुभवी और युवा के समन्वय का फॉर्मूला
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भोपाल। साल के अंत में होने वाले मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव कांग्रेस के लिए 'करो या मरो' की लड़ाई बन चुका है, यही कारण है कि पार्टी हाईकमान ने पार्टी की राज्य इकाई में बड़ा बदलाव किया है और 15 साल बाद सत्ता में वापसी के लिए अनुभवी और युवा के समन्वय का फॉर्मूला बनाया है।

कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता के.के. मिश्रा कहते हैं, "कमलनाथ कोई राज्य सतरीय नेता नहीं, बल्कि देश में कांग्रेस का जाना-पहचाना चेहरा हैं। कांग्रेस को नया अध्यक्ष और प्रचार समिति का चेयरमैन मिलने से नई ऊर्जा आएगी। कार्यकर्ता और पार्टी मिलकर इस भ्रष्ट सरकार को उखाड़ फेंकेंगे।"

कांग्रेस हाईकमान ने लंबी जद्दोजहद और विचार-मंथन के बाद बड़ा बदलाव किया है। प्रदेश अध्यक्ष की कमान कमलनाथ को सौंपी है तो चुनाव प्रचार अभियान समिति का अध्यक्ष ज्योतिरादित्य सिंधिया को बनाया गया है।

कमलनाथ एक अनुभवी राजनेता हैं, नौ बार सांसद और कई बार केंद्र सरकार में मंत्री रहे हैं। इतना ही नहीं, उन्हें मैनेजमेंट का मास्टर माना जाता है। दूसरी ओर, युवा सांसद ज्योतिरादित्य को प्रचार अभियान समिति की कमान सौंपी दी गई है, जो युवाओं की पसंद हैं। उनकी आक्रामकता और जोश कार्यकर्ताओं में आत्मविश्वास जगाता है। पिछले दिनों उनकी अगुवाई में ही कांग्रेस ने राज्य में दो विधानसभा उपचुनाव जीते हैं।

राजनीतिक विश्लेषक गिरिजा शंकर कहते हैं, "कांग्रेस अगर यह प्रयोग वर्ष 2008 के विधानसभा चुनाव में कर लेती तो उसे सफलता मिलने की संभावना थी। कांग्रेस की आंतरिक समस्या यह रही है कि जो भी प्रदेश अध्यक्ष बना, उसे पार्टी ने ही स्वीकारा नहीं। कांतिलाल भूरिया हों, सुरेश पचौरी या अरुण यादव। इन्हें दिग्विजय सिंह, कमलनाथ व ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपना नेता ही नहीं माना, महत्व नहीं दिया। विरोधियों ने इस बात को गुटबाजी के तौर प्रचारित किया, जबकि ऐसा था नहीं। हां, यह बात जरूर थी कि ये बड़े नेता दिल्ली में बैठकर मप्र कांग्रेस को चलाना चाहते थे।"

वह आगे कहते हैं कि कांग्रेस में पहली बार ऐसा हुआ है कि वरिष्ठतम नेता प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बना है। उम्मीद की जानी चाहिए पार्टी आंतरिक समस्याओं से जल्द उबर जाएगी। पार्टी अब पूरे जोश के साथ जनता के बीच जाने की रणनीति बना सकती है।

उन्होंने कहा कि कांग्रेस को फायदा तभी मिलेगा, जब पार्टी को दिल्ली नहीं, मध्यप्रदेश से चलाया जाए। जहां तक सिंधिया को प्रचार समिति की कमान सौंपे जाने का सवाल है, तो वह एक रणनीति का हिस्सा है। कांग्रेस इसे अनुभवी और युवा के समन्वय की बात कहती है, मगर हकीकत यह है कि दो दावेदारों को संतुष्ट किया गया है।"

खुद बदलाव के तहत भाजपा प्रदेशाध्यक्ष बने राकेश सिंह का कहना है कि प्रदेश कांग्रेस में बदलाव का भाजपा पर कोई असर नहीं होगा। पार्टी की सफलता और ताकत तो कार्यकर्ता हैं। वहीं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कमलनाथ को 'मित्र' संबोधित करते हुए बधाई दी है।

भाजपा ने हाल ही में प्रदेश इकाई में बदलाव करते हुए नंदकुमार सिंह चौहान की जगह राकेश सिंह को कमान सौंपी है, साथ ही चुनाव प्रबंध समिति का अध्यक्ष केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को बनाया है।

राजनीति के जानकारों की मानें तो कांग्रेस हाईकमान ने बदलाव के जरिए कार्यकर्ताओं में नया जोश भरने की कोशिश की है। कमलनाथ का प्रभाव महाकौशल क्षेत्र में है, तो सिंधिया का असर राज्य के बड़े हिस्से में है। वहीं जो चार कार्यकारी अध्यक्ष बनाए गए हैं, उनमें ज्यादातर सक्रिय और युवा हैं। उनका अपने-अपने क्षेत्र में अच्छा प्रभाव है। इस तरह इस बार की चुनावी बिसात पर 'पौ बारह' कर लेना भाजपा के लिए आसान नहीं रहने वाला है।

कांग्रेस महासचिव अशोक गहलोत की ओर से जारी विज्ञप्ति में वर्तमान अध्यक्ष अरुण यादव के स्थान पर कमलनाथ को अध्यक्ष बनाया गया है। वहीं, चार कार्यकारी अध्यक्ष बनाए गए हैं। कार्यकारी अध्यक्ष बाला बच्चन, रामनिवास रावत, जीतू पटवारी और सुरेंद्र चौधरी को बनाया गया है।

राज्य की राजनीति में बदलाव की लंबे अरसे से चर्चाएं थीं, जिस पर गुरुवार को विराम लग गया है।


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