सामयिक विषयों पर गहन अध्ययन है 'समग्र समयिकी'
आज का युग उत्तर सत्य यानी पोस्ट ट्रुथ एरा का है और इसमें हम ऐसे वक्त में जी रहे हैं

- डॉ. संतोष पटेल
आज का युग उत्तर सत्य यानी पोस्ट ट्रुथ एरा का है और इसमें हम ऐसे वक्त में जी रहे हैं , जहां हमें स्पीच और राइटिंग दोनों की विश्वनीयता को परखने हेतु नए-नए टूल की जरूरत पड़ती है, क्योंकि कब क्या कहां बोला गया है वह किस रूप में, मसलन फेक या डीपफेक के रूप में हमारे सामने आ जाता है। कब क्या लिखा है, उसमें कितनी सत्यता है और उसे किस एजेंडा से हमारे सामने रखा जाता है, यह कभी - कभी समझना मुश्किल होता है। ऐसे में शोध पूर्ण राइटिंग हमें एक ऐसी दृष्टि देते हैं, जो सत्य को सत्य और ग़लत को ग़लत बतलाने में मददगार होते हैं तो ऐसे सघन वैचारिक घटाटोप के वातावरण में नृपेंद्र अभिषेक 'नृप' की तीसरी पुस्तक 'समग्र सामयिकी' हमारे सामने आती है जो हमारे आसपास घटित होने वाले चीजों को देखने की नवीन दृष्टि प्रदान करती है। जैसा कि हम जानते हैं नृप एक लोकप्रिय स्तंभकार, निबंधकार और एक महत्वपूर्ण रचनाकार हैं, अनेक विषयों पर हस्तक्षेप करते रहे हैं। हमलोगों को विभिन्न विषयों से व्यावहारिक रूप से जोड़ने का प्रयास करते हैं। अपने आलेखों और निबंधों के माध्यम से न केवल वह हमें सजग करते हैं वरन जीवन को इस सत्यातीत युग को समझने का सूत्र भी देते हैं।
नृप की इस पुस्तक में विभिन्न विषयों पर केंद्रित छ: खंडों में विविधतापूर्ण निबंध संकलित है, जिसमें पर्यावरण संबंधित मुद्दों को उन्होंने प्रमुखता से लिखा है। पर्यावरण संकट से जुड़े ये आलेख पूरी मानव जाति के अस्तित्व पर आने वाले खतरे से आगाह करते हैं। आज साहित्य में इकोक्रिटिसिज्म ( चेरी ग्लोटफेल्थी और हैरोल्ड फ्रॉम द्वारा रचित साहित्यिक विद्या) का दौर है जिसमें जोसेफ मिकर जैसे विद्वान ने लिटरेरी इकोलॉजी का एक टर्मियोलॉजी दिया।
इको क्रिटिसिज्म में साहित्य और पर्यावरण के बीच के संबंधों को रिलेट किया जाता है। पहले साहित्य में प्रकृति का चित्रण उसकी सुंदरता को लेकर अधिक हुआ परंतु आज इकोलॉजी और लिटरेचर के नए संबंध को एक विधा के अंतर्गत पढ़ा जा रहा है, जिस साहित्य में पूरी दुनिया में पर्यावरण के बढ़ते संकट से लोगों को जागरूक किया जा रहा है ऐसे में भारत कैसे अछूता रह सकता है! पर्यावरण से जुड़े इन समस्त संकटों को नृपेंद्र ने शोध पूर्ण ढंग से अपने आलेखों में प्रस्तुत करने का प्रयास किया है।
विज्ञान और प्रौद्योगिकी से जुड़े विषय पर नृप ने बहुत ही सूक्ष्मता से चीजों को विश्लेषित किया है, विद्वतापूर्ण ढंग से आलेखित किया है। कैसे ग्रीन हाइड्रोजन ऊर्जा का भविष्य बन रहा है इस पर उनके आलेख को पढ़ना मानो आने वाली संतति को आश्वस्ति देना है कि उनके लिए आज से ही सोचा जा रहा है , इससे भविष्य खुद-ब-खुद दुरुस्त हो जाएगा। जब हम भूतकाल की चिन्ता छोड़ आज में जीने लगते हैं तो हमारा भविष्य स्वयं अच्छा हो जाता है, ऐसा तथागत बुद्ध का मानना था। नृप के सामाजिक विषयक आलेखों को इसलिए पढ़ा जाना चाहिए क्योंकि वे इन आलेखों के माध्यम से एक सोशल साइंटिस्ट के रूप में अवतरित होते हैं जब वे सामाजिक विषयों में महिला सशक्तिकरण , भुखमरी, आत्महत्या, बाल श्रम, बेरोजगारी सहित सड़क हादसों पर लगाम जैसे आलेखों को बड़ी नवीनता के साथ प्रस्तुत करते हैं। आर्थिक मुद्दे, अंतरराष्ट्रीय मुद्दे और विविध विषयों के अंतर्गत नई शिक्षा नीति 2020 पर उनका सकारात्मक पक्ष एवं विविध पक्ष को रखने का उन्होंने प्रयास किया है जो पाठक के ज्ञान को प्रदीप्त करता है।
नृपेंद्र विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में गंभीर आलेख लिखने के लिए प्रसिद्ध हैं। प्रतियोगिता दर्पण जैसे महत्वपूर्ण पत्रिका में उनके गंभीर, ठोस और ज्ञानवर्धक आलेखों का लगातार छपते रहना, विषय पर उनकी मजबूत पकड़ को दर्शाता है। मुझे पूर्ण विश्वास है कि यह पुस्तक अपने उद्देश्यों में सफल होगी। जैसा कि इसमें शामिल सारे आलेख प्रतियोगी परीक्षाओं के अभ्यर्थियों सहित शिक्षक एवं विद्यार्थियों के लिए मददगार साबित होंगे। मैं उनके उज्जवल भविष्य की कामना करता हूं और इस पुस्तक की सफलता के लिए मंगल कामनाएं करता हूं।


