मानवाधिकार आयोग से की शिक्षा अधिकार अधिनियम के उल्लघंन की शिकायत
दिल्ली के सरकारी स्कूलों में रिक्त पड़े हजारों पदों पर शिक्षकों की तैनाती न होने से लाखों विद्यार्थियों का भविष्य अंधकार में है और अब इस मामले की शिकायत मानवाधिकार आयोग से की गई है

नई दिल्ली। दिल्ली के सरकारी स्कूलों में रिक्त पड़े हजारों पदों पर शिक्षकों की तैनाती न होने से लाखों विद्यार्थियों का भविष्य अंधकार में है और अब इस मामले की शिकायत मानवाधिकार आयोग से की गई है, क्योंकि सरकारी विद्यालयों में हजारों शिक्षक पद कई वर्षों से खाली पड़े हैं जिन पर अस्थाई अतिथि शिक्षकों को नियुक्त किया जाता रहा है। शिक्षा विभाग की लापरवाही के चलते रिक्त पदों पर अतिथि शिक्षकों की तैनाती भी समय पर नहीं हो पाई है जिससे छात्रों का पाठ्यक्रम विद्यालय शुरू होते ही पिछड़ रहा है और दबाव छात्रों पर है।
अतिथि शिक्षक मानते हैं कि यदि शिक्षा विभाग ग्रीष्मावकाश में समय रहते शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया पूरी कर लेता तो विद्यालय खुलते ही शिक्षक उपलब्ध होते और शिक्षणकार्य प्रभावित नही होता।
शिक्षक अभिभावक मंच ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को पत्र लिखकर नि:शुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा अधिनियम 2009 के उल्लघंन और समय पर शिक्षकों की तैनाती न होने से छात्रों के भविष्य से हो रहे खिलवाड़ को रोकने की मांग की है। शिक्षा के अधिकार कानून के अनुसार शिक्षक-छात्र अनुपात प्राइमरी में 1 पर 30 तथा माध्यमिक और उच्च माध्यमिक स्तर पर 1 पर 35 छात्र निर्धारित है।
हरियाणा में प्राइमरी में शिक्षक- छात्र अनुपात घटाकर कर 1-25 तथा उत्तर प्रदेश जैसे आबादी वाले राज्य में 1-24 निर्धारित किया है, लेकिन दिल्ली के शिक्षा निदेशालय ने पीएफ सी में 1 शिक्षक पर 45 छात्र के आधार पर शिक्षकों के पद निर्धारित किये हैं। इसीलिए शिक्षकों के कई पद सरप्लस बताए गए हैं। यह शिक्षा के कानून का उल्लघंन है तो वहीं दूसरी ओर रिक्त पदों पर समय से शिक्षकों की तैनाती न होने से गुणात्मक शिक्षा से वंचित किया जा रहा है।
स्थाई शिक्षक संदीप शर्मा ने बताया कि एक जुलाई 2017 से लागू पी एफ सी का निर्धारण 2016 की छात्रसंख्या में आधार पर किया है लेकिन सत्र 2017 में प्रवेश प्रक्रिया अभी भी जारी है जिससे छात्रसंख्या में बदलाव हो सकता है फिर 2016 की पी एफ सी को 2017 में लागू करने से भी छात्रों का अहित होगा।


