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महाराष्ट्र में सांप्रदायिक तनाव

फिल्म द केरला स्टोरी बॉक्स ऑफिस पर ताबड़तोड़ कमाई कर रही है

महाराष्ट्र में सांप्रदायिक तनाव
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फिल्म द केरला स्टोरी बॉक्स ऑफिस पर ताबड़तोड़ कमाई कर रही है। फिल्म सौ करोड़ के क्लब में शामिल हो गई है। हालांकि इसमें जिस तरह आतंकवाद की समस्या को धर्मांतरण से जोड़कर पेश किया गया है, उस पर विवाद खड़े हुए हैं। प.बंगाल, तमिलनाडु समेत कई गैरभाजपा शासित राज्यों ने फिल्म के प्रदर्शन पर रोक लगाई है, जिस पर फिल्म के निर्माताओं ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। इस मामले पर जून में सुनवाई होगी। वहीं अधिकतर भाजपा शासित राज्यों में फिल्म को न केवल करमुक्त किया गया है, बल्कि राज्यों के मुख्यमंत्री फिल्म के पक्ष में बयान दे रहे हैं। उनसे पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कर्नाटक चुनाव में इस फिल्म का अनावश्यक जिक्र किया था।

उन्हें शायद इससे राजनैतिक लाभ मिलने की उम्मीद थी, मगर ऐसा नहीं हुआ। फिल्मों पर विवाद पहले भी होते रहे हैं। कभी कहानी को लेकर, तो कभी किसी दृश्य को लेकर आलोचनाएं हुई हैं, कुछ हद तक विरोध-प्रदर्शन भी हुए हैं। लेकिन बीते कुछ बरसों में फिल्मों को जिस तरह राजनीति का जरिया बना लिया गया है, वैसा पहले कभी नहीं हुआ। पद्मावत, लाल सिंह चड्ढा, पठान ऐसी अनेक फिल्मों पर हाल के वर्षों में देशव्यापी विरोध-प्रदर्शन हुए। इन विवादों के कारण समाज को नुकसान पहुंचा, मगर सत्ता की रोटियां सेंकने वालों को फायदा हुआ। अब इस कड़ी में द केरला स्टोरी का नाम भी जुड़ गया है। जो केवल विवाद नहीं, हिंसा का सबब भी बन गई है।

महाराष्ट्र के अकोला शहर में दो दिन पहले फिल्म से जुड़े एक इंस्टाग्राम पोस्ट में पैगंबर मोहम्मद पर आपत्तिजनक टिप्पणी को लेकर एक समुदाय ने पुलिस पर शिकायत दर्ज की। जल्द ही दूसरे समुदाय के लोग भी इकठ्ठी हो गए और दोनों समूहों के बीच तनाव बढ़ा इसके साथ ही पत्थरबाजी शुरू हो गई। इस हिंसक झड़प में कई गाड़ियों को नुकसान पहुंचा, कम से कम 10 लोग घायल हुए और एक व्यक्ति की जान ही चली गई। निगम पार्षद साजिद खान पठान के मुताबिक पुलिस की मौजूदगी में एक धार्मिक स्थल को आग लगा दी गई और एक व्यक्ति को मार दिया गया क्योंकि वो जिस ऑटो में बैठा था उस पर दूसरे समुदाय के धार्मिक चिह्न मौजूद थे। हालांकि पुलिस का कहना है कि मृतक दंगाइयों में से एक था और पथराव के दौरान उसके सिर पर पत्थर लगने से उसकी मौत हो गई थी। कारण जो भी रहा हो, एक व्यक्ति धार्मिक उन्माद में अकाल मौत मारा गया और सैकड़ों जिंदगियां दांव पर लग गई हैं। अकोला में फिलहाल धारा 144 लागू है, करीब सौ लोगों पर मामला दर्ज किया गया है, 45 लोगों को हिरासत में लिया गया है। फिल्म को लेकर विवादित इंस्टाग्राम पोस्ट करने वाले व्यक्ति के बारे में अभी तक पता नहीं लगाया जा सका है।

लेकिन पता लग भी गया तो क्या फायदा होगा। उस व्यक्ति को छोटी-मोटी सजा मिल जाएगी। लेकिन समाज में जो धर्मांधता का जहर फैल चुका है, वह न किसी गिरफ्तारी से कम होगा, न किसी कर्फ्यू से रुकेगा। उसके लिए दृढ़ राजनैतिक इच्छाशक्ति दिखाने की जरूरत है, जो फिलहाल राष्ट्रीय पटल से नदारद है।

अकोला में अभी हालात संभले नहीं हैं। सामान्य जनजीवन पर ब्रेक लगा है, परीक्षाएं टल रही हैं, इस बीच महाराष्ट्र के एक दूसरे शहर अहमदनगर में भी हिंसक झड़प की खबर आई है। रविवार को शहर में संभाजी जयंती के अवसर पर जुलूस निकाला गया था। जुलूस जब एक धर्मस्थल के पास से गुजर रहा था तो नारेबाजी शुरू हुई, और फिर दोनों ओर से पत्थरबाजी शुरू हो गई। पुलिस ने भीड़ को संभालने के लिए लाठीचार्ज किया। इस झड़प में कई स्थानीय लोगों के साथ दो पुलिसकर्मियों के घायल होने की भी खबर है। धार्मिक शोभायात्राओं के दौरान अक्सर हिंसक झड़पों की घटनाएं पहले हुई हैं। इस साल रामनवमी पर, पिछले साल हनुमान जयंती पर ऐसी ही झड़पें देश के कई हिस्सों में हुई हैं। ऐसे टकराव को रोकने का सीधा सा उपाय यह है कि कोई भी जुलूस निकालने से पहले सर्वधर्म सद्भाव या शहर के गणमान्य नागरिकों की एक कमेटी पुलिस प्रशासन गठित करे, जुलूस का रास्ता इस तरह बनाया जाए कि उसमें दूसरे धर्मस्थल रास्ते में न आएं, अगर आएं तो वहां पहले ही इत्तिला कर शांति बनाई जाए। जुलूस के आसपास सुरक्षा का प्रबंध रहे और अवांछित तत्वों पर कड़ी निगरानी रखी जाए। ऐसे उपायों से कोई भी धार्मिक जुलूस शांति से निकल सकता है।

जिस देश में दुनिया के सभी धर्मों के लोग रहते हों, वहां हर धार्मिक त्योहार मनाए जाएंगे और लोग रीति-रिवाजों का पालन भी करेंगे। हमारा संविधान इसकी इजाज़त देता है। लेकिन धार्मिक ध्रुवीकरण की राजनीति करने वाले इन मौकों को अपने फायदे के लिए भुनाते हैं, फिर चाहे उसमें धर्म की हानि हो या लोगों के जान-माल की, उन्हें फर्क नहीं पड़ता। धार्मिक उन्माद फैलाने के लिए देश के खाली बैठे नौजवानों को मोहरों की तरह इस्तेमाल किया जाता है, जबकि राजनेताओं के बच्चे ऐसे फसादों से दूर विदेशों में उच्च शिक्षा लेकर आराम की जिंदगी बसर करते हैं। अब यह लोगों को विचार करना चाहिए कि वे अपनी भावी पीढ़ी को धर्म के नाम पर फैलाई जा रही नफरत की आग में झुलसने दें, या उन्हें राजनैतिक दलों की कठपुतली बनने से बचाएं।

महाराष्ट्र में बगावत से हथियाई गई सत्ता तो भाजपा और शिवसेना शिंदे गुट ने बचा ली। लेकिन क्या इस राज्य के सांप्रदायिक सौहार्द्र को सरकार बचा पा रही है, इसका आकलन किया जाना चाहिए।


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