मुथरा की रामलीला देखने आते है प्रवासी भारतीय
धार्मिक मान्यताओं से समझौता न करने के कारण सैकड़ों साल पुरानी मथुरा की रामलीला को देखने वालों में प्रवासी भारतीयों की अच्छी खासी भीड होती है
मथुरा। धार्मिक मान्यताओं से समझौता न करने के कारण सैकड़ों साल पुरानी मथुरा की रामलीला को देखने वालों में प्रवासी भारतीयों की अच्छी खासी भीड होती है।
रामलीला में राधेश्याम रामायण एवं बाल्मीकि रामायण का पुट तो कहीं कहीं पर मिल जाता है लेकिन फिल्मों की “पैरोडी” आदि से यह कोसों दूर है।
यहां की रामलीला में पात्रों का चयन भी कम आयु विशेषकर किशोरावस्था से भी कम आयु के बालकों में से किया जाता है। वर्ण बंधन के बाद उन्हें देवतुल्य सम्मान दिया जाता है। नियम का पालन उसी के अनुरूप किया जाता है। रामलीला सभा ने ऐसे कलाकार भी तैयार किये हैं जिन्होंने विभिन्न स्वरूपों के रूप में कई दशक तक काम किया है।
यहां की रामलीला और रासलीला अद्वितीय होने के कारण इनकी सराहना विश्व में होती है। इन्हें देखने के लिए प्रवासी भारतीय तक लालायित रहते हैं। रामलीला देखने वालों में प्रवासी भारतीयों की अच्छी खासी भीड होती है। सभा के वरिष्ठ पदाधिकारी गोपेश्वरनाथ चतुर्वेदी ने आज यहां बताया कि मथुरा की रामलीला की पहचान मर्यादा की रक्षा के रूप में है। मथुरा की रामलीला सैकड़ों साल से चली आ रही है लेकिन पिछले 150 वर्ष का इतिहास मथुरा की रामलीला सभा मे आज भी मौजूद है। जनकपुरी के माध्यम से समाज के हर वर्ग को जोड़ने का प्रयास किया जाता है।


