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 उत्तर प्रदेश के लखनऊ में फलों की बगिया बनेंगे कालोनियों के पार्क

लखनऊ के एक पार्क को किस्म-किस्म के आमों के बगीचे के रूप में विकसित किये जाने में मिली सफलता को देखते हुए आने वाले समय में शहर के कुछ और पार्क भी फलों के छोटे-छोटे बाग की शक्ल अख्तियार कर सकते हैं

 उत्तर प्रदेश के लखनऊ में फलों की बगिया बनेंगे कालोनियों के पार्क
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नई दिल्ली । उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के एक पार्क को किस्म-किस्म के आमों के बगीचे के रूप में विकसित किये जाने में मिली सफलता को देखते हुए आने वाले समय में शहर के कुछ और पार्क भी फलों के छोटे-छोटे बाग की शक्ल अख्तियार कर सकते हैं।

केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान के तकनीकी सहयोग से गाेमती नगर के विराट खंड दो एसोसिएशन ने अपने पार्क में आम का बाग विकसित किया है जिसकी खासियत है कि इसमें 25 से अधिक किस्मों के आम हैं। इसमें एक ही पेड़ पर कई तरह के आम लगते हैं और अब यह प्रयास किया जा रहा है कि एक पेड़ पर 50 या उससे भी अधिक किस्म के आम लगें। इस पार्क का नाम तो गुलाब पार्क है लेकिन यह आम के विशेष प्रकार के पेड़ों के कारण लोगों के आकर्षण का केंद्र बन गया है। एसोसिएशन के सदस्यों के प्रयासों और केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान, लखनऊ की 25 से अधिक आम की किस्मों और उसकी तकनीकी सहायता ने इसे ‘संकलन बाग़’ में बदल दिया है।

संस्थान के निदेशक शैलेंद्र राजन ने यूनीवार्ता को बताया कि इस पार्क को देखते हुए शहर के कई संगठनों ने अपने-अपने पार्कों के कुछ हिस्से को फलों की बगिया के रूप में विकसित करने की इच्छा जतायी है। संस्थान उन्हें तकनीकी सहायता देने को तैयार है। उन्हें आम के अलावा औषधीय गुणों वाले अमरूद, जामुन और बेल लगाने के लिये प्रेरित किया जायेगा।
विराट खंड दो के पार्क में लंगड़ा, दशहरी, आम्रपाली और चौसा जैसी पुरानी किस्मों के साथ ही संस्थान द्वारा विकसित अरुणिका और अंबिका जैसी नयी किस्में भी फल-फूल रही हैं। यदि एक ही पेड़ पर कई किस्मों के आम को देखना हो तो मलिहाबाद जाने की जरूरत नहीं है, गुलाब पार्क में इसका नजारा देखा जा सकता है। आम के पेड़ों को लंगड़ा की कुछ शाखाओं और अरुणिका की कई शाखाओं के साथ आम्रपाली में बदल दिया गया था। धीरे-धीरे 12 साल की अवधि में, लगभग 25 किस्मों को अच्छे पेड़ों पर ग्राफ्ट किया गया और हर साल इस गतिविधि को जारी रखा गया ताकि अच्छी संख्या में एक ही पेड़ पर कई किस्में हो जाये। यह एक सतत प्रयास है क्योंकि सभी ग्राफ्ट सफल नहीं होते हैं।

ग्राफ्टेड पौधों पर फलने की शुरुआत तीन साल के भीतर हुई। एक ही पेड़ पर लंगड़ा, दशहरी, आम्रपाली और चौसा आम लगे होना देखना कई लोगों के लिए आश्चर्य जैसा है। छोटे से मध्यम आकार के फल वाले आम्रपाली और बड़े आकार के मल्लिका के फलों को इस पार्क में देखा जा सकता है। इस पार्क को विकसित करने में विशेष योगदान देने वाले बी के सिंह के अनुसार तरह-तरह के आम देखने के लिए न केवल आस पास के बल्कि दूसरे शहरों के लोग भी इस पार्क में आते हैं। यहां आम बिना किसी रासायनिक उर्वरक के फलते हैं लेकिन जैविक खादों के नियमित उपयोग से फलों की गुणवत्ता और आकार उत्कृष्ट होता है। यहां पौधों पर हमला करने वाले कोई कीट नहीं मिलेंगे।

डॉ राजन ने बताया कि यह एक ऐसा तरीका है जिसके जरिए शहरों में फलों की दुर्लभ किस्मों को संरक्षित किया जा सकता है, वह भी उन पार्कों में जहाँ लोग ज्यादातर सजावटी पौधे लगाने में रुचि रखते हैं। एक पार्क में पेड़ की विभिन्न शाखाओं पर 50 या अधिक किस्मों का संग्रह हो सकता है। यह तकनीक न केवल संरक्षण में मदद करती है बल्कि लोगों को खाने के लिए कार्बाइड और कीटनाशकों से मुक्त आम भी उपलब्ध कराती है।


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