5 करोड़ का कोल्ड स्टोरेज, डेढ़ करोड़ अनुदान
बिलासपुर ! कोल्ड स्टोरेज यूनिट के अभाव में किसानों को अब सब्जियों का उत्पादन घाटे का सौदा लगने लगा है।

लघु किसानों के लिए निर्माण बनी समस्या
बिलासपुर ! कोल्ड स्टोरेज यूनिट के अभाव में किसानों को अब सब्जियों का उत्पादन घाटे का सौदा लगने लगा है। प्रतिवर्ष सब्जियों का उत्पादन तो बढ़ रहा है लेकिन सब्जियों को बर्बाद होने से बचाने की दिशा में कोई काम नहीं हो रहा है। यहि वजह है कि किसानों को सब्जियों फेंकनी पड़ जाती है। कोल्ड स्टोरेज व फूड प्रोसेसिंग यूनिट नहीं होने के कारण किसानों को उनकी मेहनत का फल नहीं मिल पाता है। हालांकि शासन द्वारा कोल्ड स्टोरेज यूनिट के लिए अनुदान दिया जाता है लेकिन कोल्ड स्टोरेज बनवाना आम किसानों के बस की बात नहीं है।
गौरतलब है कि किसान धान की फसल के बाद मुख्य रुप से सब्जियों की खेती करते हैं। इसमें धान से ज्यादा फायदा भी है और अच्छा होता है। लेकिन यह भी सच है कि सब्जियों का उत्पादन अच्छा होने से कीमत इतनी गिर जाती है कि किसानों को अपनी सब्जी सडक़ में फेंकनी पड़ जाती है या मवेशियों के हवाले करनी पड़ती है। आश्चर्य तो यह है कि पूरे प्रदेश में एक भी सरकारी कोल्ड स्टोरेज यूनिट नहीं है। ऐसा नहीं कि शासन अनुदान नहीं दे रहा है लेकिन एक यूनिट के निर्माण में लगभग पांच करोड़ खर्च आता है जिसमें मुश्किल से डेढ़ करोड़ रूपए अनुदान दिया जाता है। कोल्ड स्टोरेज यूनिट निर्माण आम किसानों की पहुंच से काफी दूर है।
शासन का कहना है कि कोल्ड स्टोरेज फूडप्रोसेसिंग यूनिट बनाने के लिए शासन स्तर पर योजनाएं बनाई जा रही है ताकि फल-सब्जी उत्पादन को बढ़ाया जा सके एवं उसे नष्ट होने से बचाया जा सके।
अनुदान बढ़ाए या खुद बनवाए शासन
कछार, सेन्दरी व घुटकू के कृषक रामचंद्र पटेल, रामेश्वर पटेल व अन्य का कहना है कि कोल्ड स्टोरेज यूनिट लगाना हमारे बस की बात नहीं है। यह काफी खर्चिला प्रोजेक्ट है और अनुदान बहुत ही कम है। शासन द्वारा अनुदान बढ़ाया जाए या फिर शासन ही कोल्ड स्टोरेज बनाकर हमारे उत्पाद को सुरक्षित रखवाएं ताकि हमारे फसल की सही कीमत मिल सके।
कोचिए करते हैं शोषण
जिले के किसान मुख्य रुप से खरीफ फसल में धान की खेती करते हैं और धान की फसल कटने के बाद सब्जी की खेती करते हैं लेकिन इन किसानों का सही कीमत नहीं मिल पाता है वहीं बिचौलिए भी काफी फायदा उठाते हैं। कभी मौसम अनुकूल नहीं होने के कारण किसानों को घाटा सहन करना पड़ता है, और अपने उत्पाद को औने-पौने में बेचना पड़ता है।


