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सीजेआई न्यायाधीश लोया की मौत की स्वत: जांच गठित करें : इंदिरा जयसिंह

आल इंडिया पीपुल्स फोरम (एआईपीएफ) की तरफ से आयोजित एक सार्वजनिक सभा में जयसिंह ने उन चार न्यायाधीशों के प्रति समर्थन जताने का भी आह्वान किया, जिन्होंने सामने आकर पिछले सप्ताह मीडिया को संबोधित किया

सीजेआई न्यायाधीश लोया की मौत की स्वत: जांच गठित करें : इंदिरा जयसिंह
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नई दिल्ली। वरिष्ठ अधिवक्ता और पूर्व अतिरिक्त महाधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने सीबीआई न्यायाधीश बृजगोपाल हरकिशन लोया की रहस्यमय मौत की स्वतंत्र एवं निष्पक्ष जांच की सोमवार को मांग की और सवाल किया कि आखिर भारत के प्रधान न्यायाधीश ने स्वत: इस मुद्दे की जांच क्यों नहीं बिठाई।

आल इंडिया पीपुल्स फोरम (एआईपीएफ) की तरफ से आयोजित एक सार्वजनिक सभा में जयसिंह ने उन चार न्यायाधीशों के प्रति समर्थन जताने का भी आह्वान किया, जिन्होंने सामने आकर पिछले सप्ताह मीडिया को संबोधित किया।

जयसिंह ने कहा, "जब न्यायाधीश लोया का निधन हुआ, तभी भारत के प्रधान न्यायाधीश को स्वत: जांच बिठानी चाहिए थी। ऐसा क्यों नहीं किया गया?"

उन्होंने कहा, "इन चार न्यायाधीशों ने सामने आकर और प्रेस को संबोधित कर हमारी बड़ी मदद की है। यह दिखाकर कि न्यायपालिका में पारदर्शिता हो सकती है। यह दिखाकर कि आप और मेरे जैसे लोगों के पास जानने का अधिकार है।"

जयसिंह ने यह भी जानना चाहा कि कहीं न्यायाधीश लोया के निधन के मामले में न्यायपालिका के काम में कार्यपालिका हस्तक्षेप तो नहीं कर रही।

उन्होंने कहा कि वकील और बार एसोसिएशन न्यायपालिका की स्वतंत्रता की रक्षा कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि सरकार वफादार न्यायपालिका चाहती है और हम ऐसा होने से रोक सकते हैं।

न्यायाधीश लोया के निधन पर रपट लिखने वाले पत्रकार निरंजन टाकले ने सवाल खड़ा किया कि आखिर न्यायाधीश लोया के परिवार के सदस्यों को किसने समझाया कि मौत प्राकृतिक कारणों से हुई थी।

न्यायाधीश लोया के पुत्र अनुज लोया ने रविवार को एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि उनके परिवार को मौत के संबंध में अब कोई संदेह नहीं है, और वे किसी राजनीतिक मुद्दे का शिकार नहीं होना चाहते।

बंबई उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश न्यामूर्ति बी.जी. कोलसे पाटील ने न्यायाधीश लोया के निधन की स्वतंत्र जांच की मांग की और कहा कि उनके निधन के बाद न्यायपालिका की विश्वसनीयता दांव पर लग गई है।

उन्होंने यह भी कहा कि न्यायपालिका के इतिहास का यह स्वर्णदिन था, जब सर्वोच्च न्यायालय के चार न्यायाधीशों ने मीडिया को संबोधित किया।


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