सीटू ने किसान कर्फ्यू का समर्थन किया
सीटू ने आरोप लगाया है कि राज्य में मजदूर खेतमजदूर और किसानों पर हमले बढ़ते जा रहे हैं तथा किसानों की आत्महत्या के समाचार आने लगे हैं
जयपुर। भारतीय ट्रेड यूनियन केन्द्र (सीटू) ने आरोप लगाया है कि राज्य में मजदूर खेतमजदूर और किसानों पर हमले बढ़ते जा रहे हैं तथा किसानों की आत्महत्या के समाचार आने लगे हैं।
श्रमिक को न्यूनतम वेतन नहीं मिलता तथा किसान को समर्थन मूल्य से भी वंचित होना पड़ रहा है। सीटू ने किसान सभा के आगामी 17 जुलाई को किसान कर्फ्यू, आंदोलन का समर्थन देने का निर्णय लिया है।
भारतीय ट्रेड यूनियन केन्द्र (सीटू) के प्रदेशाध्यक्ष रवीन्द्र शुक्ला एवं प्रदेश महामंत्री, वी.एस.राणा ने आज प्रेस-वार्ता में बताया कि राज्य में मजदूर एवं किसानों के मुद्दों को लेकर अभियान चलायेगा तथा दिल्ली में आयोजित सम्मेलन में राजस्थान से जुड़े श्रमिकों के मुद्दों को भी उठाया जायेगा।
केन्द्रीय श्रम संगठनों ने राजधानी दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में आठ अगस्त को मजदूरों का एक राष्ट्रीय सम्मेलन बुलाया हैं जिसमें देशव्यापी आंदोलन के महत्वपूर्ण फैसले लिये जायेंगे।
उन्होंने बताया कि वसुंधरा सरकार पूंजीपतियों-उद्योगपतियों के लिये श्रम कानूनों में मजदूर विरोधी संशोधन करने वाली देश की पहली सरकार है। उन्होंने कहा कि प्रदेश में श्रमकानूनों के नाम पर जंगलराज कायम कर दिया है और अगर श्रमिक अपनी कानूनी मांगों और अधिकारों के लिये आंदोलन करे तो राज्य सरकार के संरक्षण में पुलिस-प्रशासन के अनुचित हस्तक्षेप से श्रमिक आंदोलन को कुचला जा रहा है।
सरकार के दबाव में श्रमविभाग पूँजीपतियों के पक्ष में ही कार्य करने को बाध्य है। पूरे राज्य में श्रमिकों का निर्मम शोषण हो रहा है। शुक्ला ने आरोप लगाया कि भाजपा सरकार ने तीन वर्ष गुजर जाने के बावजूद भी राजस्थान श्रम सलाहकार मंडल सहित त्रिपक्षीय कमेटियों का गठन तक नहीं किया है।
राज्य में यह दूसरें श्रम मंत्री है।
मुख्यमंत्री सहित किसी भी श्रममंत्री ने अभी तक एक बार भी श्रमसंगठनों के साथ बैठक करना उचित नहीं समझा हैं। उन्होंने बताया कि राज्य के उद्योगों, निजी संस्थानों में यहाँ तक कि नगर निगम सहित कई सरकारी विभागों में राज्य सरकार द्वारा घोषित न्यूनतम वेतन का भुगतान नहीं किया जाता। वर्षों बाद भी राज्य सरकार ने न्यूनतम वेतन ओर मँहगाई भत्ते में बदलाव नहीं किया है।
अभी भी परिवर्तनशील मँहगाई भत्ते की दर एक रूपये प्रति पाईन्ट ही बनी हुई है। जबकि इतन लम्बें समय के बाद इसे कम से कम चार रूपये प्रति पाईन्ट होना चाहिए था।
सीटू सहित श्रम संगठनों की मांग है कि न्यूनतम वेतन कम से कम 18,000/-रूपये प्रति माह किया जाये। उन्होंने बताया कि राज्य में ट्रेड यूनियन का गठन करना बहुत कठिन होता जा रहा है।
राज्य के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र अलवर एवं भरतपुर (विशेषकर नीमकाथाना-भिवाड़ी क्षेत्र) में तो यूनियन के गठन पर अघोषित पाबंदी है। जापानी टोयडा गोसाई डाईकिन, हीरो होंडा आदि कारखानों में यूनियन बनाने की कार्यवाहियों पर ही हजारों श्रमिक कारखानों से बाहर हैं।
पीड़ित को श्रम विभाग से न्याय चाहने में 10-15 वर्षों का समय लग जाता है। श्रम विभाग द्वारा बुलाई गई समझौता वार्ता में मालिक आता नहीं। श्रम अधिकारी भी राज्य सरकार के दबाव के चलते औद्योगिक विवाद अधिनियम सहित अन्य श्रम कानूनों के प्रावधानों की कठोरता से पालना नहीं करते।


