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नागरिक उठायें विश्व शांति के पक्ष में आवाज़

मंगलवार को प्रकाशित हुई ग्लोबल पीस इंडेक्स की रिपोर्ट चिंताजनक है। इसके अनुसार हाल में दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में 56 संघर्ष हुए हैं

नागरिक उठायें विश्व शांति के पक्ष में आवाज़
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मंगलवार को प्रकाशित हुई ग्लोबल पीस इंडेक्स की रिपोर्ट चिंताजनक है। इसके अनुसार हाल में दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में 56 संघर्ष हुए हैं। दूसरे विश्व युद्ध के बाद के पिछले लगभग 8 दशकों में इतनी अधिक अशांति कभी नहीं रही। यह रिपोर्ट आंकड़ों में प्रकाशित हुई है लेकिन ऐसी अशांति दुनिया को किस ओर ले जा रही है, यह बतलाने की ज़रूरत नहीं। इन संघर्षों के कारण होती तबाही से विकास पीछे रह जाता है। रिपोर्ट दुनिया भर में शांति बहाली के नये प्रयासों की जरूरत को भी दर्शाती है। संघर्षों में एक ओर देशों को अपने बजट का बड़ा हिस्सा सेनाओं, गोला-बारूद आदि पर खर्च करना पड़ता है जिसके कारण नागरिकों की सुविधाओं में कटौतियां होती हैं। विस्थापन, मौतें, भुखमरी, बीमारियां, अशिक्षा आदि युद्धों का प्रत्यक्ष प्रतिफल है। स्वास्थ्य, शिक्षा, सड़क, बिजली, पानी, आवास व्यवस्थाएं या तो सीधी लड़ाइयों में बर्बाद होती हैं अथवा उन पर खर्च करना उन देशों की सरकारों के लिये कठिन हो जाता है जो संघर्षों में शामिल होते हैं। वैश्विक शांति के बिना मानव के विकास और उसकी गरिमा की कल्पना नहीं की जा सकती। यह स्थिति सभ्य समाज के अनुकूल नहीं है। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि 11 करोड़ लोग लड़ाइयों के चलते विस्थापित हुए हैं या शरणार्थी शिविरों में जीवन जी रहे हैं।

रिपोर्ट में बतलाया गया है कि 92 देशों की सीमाओं पर या तो युद्ध जारी हैं अथवा वहां युद्ध सदृश्य परिस्थितियां हैं। 97 देशों में शांति की स्थिति में गिरावट दर्ज की गयी है। रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण यूरोप के तीन चौथाई देशों ने रक्षा बजट में व्यापक बढ़ोतरी की है। वहां पिछले दो वर्षों से अशांति बनी हुई है। ऐसे ही, इज़रायल के साथ फिलीस्तीन, ईरान आदि की लड़ाइयों के कारण बड़े पैमाने पर विनाश हुआ है। हजारों लोग मारे गये हैं और बड़ी संख्या में लोग विस्थापित हुए हैं। इन युद्धों के कारण अधोरचना का विनाश सर्वाधिक होता है। सड़कें, पुल, स्कूल भवन, अस्पताल, आवासों को जो क्षति होती है वह नागरिकों का सीधा नुकसान है। युद्ध चलते तक पुनर्निर्माण सम्भव नहीं होता और युद्ध रूकने के बाद देशों को बदहाली से उबरने में वर्षों लग जाते हैं। युद्ध के कारण माली हालत जर्जर हो जाती है। इन देशों के नागरिकों को अपना जीवन बदहाली में काटना होता है। अशांति का असर किस प्रकार से लोगों के जीवन पर पड़ता है वह इस तथ्य के आधार पर आंका जा सकता है कि इस रिपोर्ट में बताया गया है कि लड़ाइयों के कारण 19 लाख करोड़ डॉलर का नुकसान हुआ है जो दुनिया की जीडीपी का 13.5 फीसदी है- अमूनन प्रति व्यक्ति 2 लाख रुपये का नुकसान।

इन स्थितियों में संयुक्त राष्ट्रसंघ की भूमिका पर भी प्रश्न चिन्ह लगा हुआ है। अक्सर माना जाता है; और जो बड़े पैमाने पर सही भी है कि बड़े व शक्तिशाली देशों पर संयुक्त राष्ट्रसंघ का बस नहीं चलता। उपरोक्त उल्लिखित दोनों ही देशों में ऐसा होता दिखा है। यहां यह भी समझ लेना ज़रूरी है कि बहुत से शक्तिशाली देश हथियार उत्पादक भी हैं जिनकी दिलचस्पी शांति में कम युद्ध या तनाव की स्थिति को बनाये रखने में होती है। दुनिया में चाहे शीत युद्ध समाप्त हो गया हो और विश्व एकधु्रवीय बन गया हो तब भी किसी संघर्ष या युद्ध के दौरान देखा जाता है कि दुनिया दो धड़ों में विभाजित हो जाती है। कुछ देश लड़ाई में शामिल एक पक्ष के साथ खड़े होते हैं तो कुछ दूसरे पक्ष के साथ। लड़ाई हो या न हो, परन्तु तनाव की यह स्थिति भी शक्तिशाली व हथियार निर्माता देशों के मुफ़ीद होती है। लड़ने के लिये अथवा सुरक्षा के मद्देनज़र उनके हथियार बिकते हैं। संयुक्त राष्ट्रसंघ एवं तटस्थ देशों की शांति की अपीलों को अनसुना कर कई देश तनाव को बढ़ाने के प्रयास करते हैं।

इस रिपोर्ट में दक्षिण एशिया के सम्बन्ध में जो रिपोर्ट है वह कुछ सुकून भरी हो सकती है। पिछली रिपोर्ट के बाद भारत एवं उसके पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, अफगानिस्तान, श्रीलंका आदि की रैंकिंग सुधरी है। भारत के परिप्रेक्ष्य में कहें तो उसकी भूमिका महत्वपूर्ण हो सकती है। तीसरी दुनिया कहे जाने वाले एशियाई, अफ्रीकी व लातिन अमेरिका के अविकसित व विकासशील देशों को अशांति का खामियाजा अधिक भुगतना पड़ता है। गुट निरपेक्ष आंदोलन के एक तरह से निष्क्रिय हो जाने के बाद भारत की ओर से शांति की पहल होनी बन्द हो गयी है वरना इन परिस्थितियों में उसकी सुनी जाती थी। आंदोलन के पीछे महात्मा बुद्ध के पंचशील तथा महात्मा गांधी के अहिसा व शांति का संदेश होता था। आज भी इन दोनों के साथ जवाहरलाल नेहरू की बातें वैश्विक शांति के सन्दर्भ में प्रासंगिक बनी हुई हैं।

दुनिया को तरक्की के रास्ते पर ले जाना हो तो सर्वप्रथम वैश्विक शांति ज़रूरी है। इसके लिये सभी देशों को संयम बरते जाने की ज़रूरत है। जो देश हथियारों के सौदागर हैं पहले वे ही युद्ध की स्थिति पैदा करते हैं, फिर शांति की बात करते हैं और अंतत: युद्ध कराकर अपने हथियार बेचते हैं। अच्छी-खासी तबाही कराकर वे युद्ध रूकवा देते हैं। इसके बाद उन देशों में निर्माण कार्यों के ठेके आदि लेते हैं। देखें तो युद्ध एक कुटिल अर्थप्रणाली का हिस्सा है जिससे कुछ देश ही लाभान्वित होते हैं और ज्यादातर तबाह। कभी धर्म तो कभी राष्ट्रवाद के नाम पर होती लड़ाइयां सरकारों के लिये तो लाभप्रद हो सकती हैं पर नागरिकों की भलाई वैश्विक शांति में ही निहीत है। इसलिये शांति के पक्ष में जनता को आवाज उठानी चाहिये। देशों के बीच परस्पर सौहार्द्र व भाई-चारा ज़रूरी है। इसके लिये सम्पूर्ण नि:शस्त्रीकरण और असैन्यीकरण अंतिम उपाय हैं।


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