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सीआईए ने शीतयुद्ध के दौरान कबूतर मिशनों का किया खुलासा

सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी (सीआईए) ने शीतयुद्ध के दौरान किए गए अपने गुप्त जासूस कबूतर मिशनों का खुलासा किया है

सीआईए ने शीतयुद्ध के दौरान कबूतर मिशनों का किया खुलासा
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वॉशिंगटन। सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी (सीआईए) ने शीतयुद्ध के दौरान किए गए अपने गुप्त जासूस कबूतर मिशनों का खुलासा किया है। बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार, सीआईए ने खुलासा किया है कि उसने किस तरह से कबूतरों को सोवियत संघ के अंदर संवेदनशील जगहों पर निगरानी करते हुए फोटो लेने के लिए प्रशिक्षित किया था। इन मिशनों के लिए जमीन पर कबूतरों के अलावा पानी के नीचे डॉल्फिन की मदद लेने के बारे में भी बताया गया है।

बीबीसी के अनुसार, फाइलें यह भी बताती हैं कि खिड़की के किनारों पर गुप्त माइक्रोफोन (बगिंग) उपकरणों को गिराने के लिए कैसे कबूतरों की मदद ली गई। रिपोर्ट में कहा गया है कि सीआईए ने अपने गुप्त अभियानों के तहत अद्वितीय कार्यों को पूरा करने के लिए इन पर पूरा भरोसा भी जताया था।

हाल ही में रिलीज हुई फाइलों से पता चला है कि 1970 के दशक के इस ऑपरेशन का नाम 'टाकाना' रखा गया था और स्वचालित रूप से फोटो लेने के लिए कबूतरों के माध्यम से छोटे कैमरों का उपयोग किया गया था।

इस मिशन के लिए कबूतरों का इस्तेमाल किया गया, क्योंकि इनमें एक अद्भुत खासियत होती है। इन्हें अगर ऐसे स्थान पर छोड़ा जाए, जहां ये पहले कभी नहीं लग हों, बावजूद इसके यह मीलों की दूरी तय कर अपने निर्धारित स्थान पर लौट आने की क्षमता रखते हैं।

बीबीसी ने फाइलों का हवाला देते हुए बताया कि संचार के लिए कबूतरों का उपयोग हजारों साल पहले किया जाता था। मगर प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान इनका इस्तेमाल खुफिया जानकारी जुटाने के लिए किया जाने लगा।

फाइल की रिपोर्ट से पता चला है कि द्वितीय विश्वयुद्ध में ब्रिटिश खुफिया एजेंसी की एक छोटी शाखा एमआई-14 (डी) ने एक गुप्त कबूतर मिशन शुरू किया था। इसके तहत यूरोप में एक पैराशूट के माध्यम से कंटेनर में लाए गए काफी कबूतरों को छोड़ा गया था। रिपोर्ट में बताया गया कि एक हजार से अधिक कबूतर संदेशों के साथ लौटे थे, जिनमें वी-1 रॉकेट लॉन्च साइटों और जर्मन रडार स्टेशनों की जानकारी शामिल थी।

लेकिन जब ब्रिटिश ऑपरेशन बड़े पैमाने पर बंद हो गए, तो सीआईए ने कबूतरों की इस काबिलियत का फायदा उठाया।

फाइलों से पता चलता है कि बाद में सीआईए ने दुर्गम इमारतों की खिड़की के माध्यम से 40 ग्राम तक की छोटी वस्तुओं को भेजने के लिए कबूतरों को प्रशिक्षित किया।

लक्ष्य को चिह्न्ति करने के लिए एक चमकती लाल लेजर बीम का उपयोग किया गया था। जबकि पक्षी को वापस बुलाने के लिए एक विशेष लैंप का उपयोग किया गया। रिपोर्ट में बताया गया कि एक बार तो सीआईए ने यूरोप में पक्षी के माध्यम से गुप्त रूप से बातें सुनने के लिए एक इव्सड्रॉपिंग डिवाइस खिड़की पर पहुंचाया था। (निर्धारित लक्ष्य से हालांकि कोई ऑडियो क्लिप प्राप्त नहीं हुआ)

सीआईए ने यह भी देखा कि क्या सोवियत संघ ने रासायनिक हथियारों का परीक्षण किया था या नहीं, इसका पता लगाने के लिए सेंसर लगाने के लिए प्रवासी पक्षियों का इस्तेमाल किया जा सकता है।

इसके अलावा फाइल से पता चला है कि 1960 के दशक में सीआईए ने इस बात के भी परीक्षण किए गए थे कि क्या डॉल्फिन के माध्यम से सोवियत परमाणु पनडुब्बियों की आवाज का पता लगाने के लिए सेंसर का इस्तेमाल किया जा सकता है।

रिपोर्ट में बताया गया कि 1967 तक सीआईए ने अपने तीन मिशनों पर छह लाख डॉलर से अधिक राशि खर्च की थी। इन मिशनों के तहत पक्षियों व डॉल्फिन के साथ ही कुत्तों और बिल्लियों का भी इस्तेमाल किया गया था। इन मिशनों में हालांकि कबूतर सबसे प्रभावी साबित हुए थे।


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