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भूख चुनें या मौत : कश्मीर में प्रवासी मजदूरों की दुविधा

कश्मीर में आतंकवादियों ने बिहार से आये तीन श्रमिकों पर गोली चला दी. तीनों की जान तो बचा ली गई है लेकिन इस हमले ने एक बार फिर जान के खतरे के बावजूद काम के लिए कश्मीर जाने की प्रवासी श्रमिकों की मजबूरी को रेखांकित किया है.

भूख चुनें या मौत : कश्मीर में प्रवासी मजदूरों की दुविधा
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कश्मीर पुलिस के बयान के मुताबिक अनमोल कुमार, पिंटू कुमार ठाकुर और हीरालाल यादव बिहार के सुपौल के रहने वाले हैं. 13 जुलाई की शाम शोपियां जिले के गागरन गांव में वो तीनों जिस किराए के मकान में रह रहे थे उसमें दो आतंकवादी घुस आये और तीनों श्रमिकों को गोली मार दी.

तीनों की जान बच गई और बाद में उन्हें अस्पताल पहुंचा दिया गया. पहले पास ही एक जिला अस्पताल में उनका प्राथमिक इलाज किया गया और बाद में उन्हें श्रीनगर स्थित एसएमएचएस अस्पताल में भर्ती करवा दिया गया. वहां अभी भी उनका इलाज चल रहा है. आतंकवादियों की अभी तक पहचान नहीं हो पाई है लेकिन पुलिस ने उन्हें पकड़ने के लिए बड़ा अभियान चलाया हुआ है.

बेरोजगारी से हताश

इसे इस साल प्रवासी मजदूरों पर हुआ पहला हमला बताया जा रहा है, लेकिन बीते कुछ सालों में इस तरह के कई मामले सामने आये हैं. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 2017 से जुलाई 2022 के बीच प्रदेश में कम से कम 28 प्रवासी मजदूर मारे गए, जिनमें सात मजदूर बिहार से थे.

ताजा हमले के बाद इस अवधि में आतंकवादियों द्वारा मारे गए या घायल किये गए बिहारी मजदूरों की संख्या 10 हो गई है. हालांकि माना जा रहा है कि जान के खतरे के बावजूद दूसरे राज्यों से श्रमिकों का कश्मीर में आना रुक नहीं रहा है. इसका कारण प्रवासी श्रमिकों के मूल राज्यों में बढ़ती बेरोजगारी और कश्मीर में मिलने वाली बेहतर मजदूरी को माना जा रहा है.

निजी संस्था सीएमआईई के मुताबिक मार्च 2022 में जहां राष्ट्रीय बेरोजगारी दर 7.60 प्रतिशत थी, वहीं बिहार में दर 14.40 प्रतिशत पर पहुंच चुकी थी. इस वजह से काम की तलाश में बिहार से श्रमिक केरल से कश्मीर तक देश के कोने कोने में चले जाते हैं.

बिहार इस मामले में अकेला नहीं है. झारखंड, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों के मजदूर भी काम की तलाश में कश्मीर जाते हैं. अक्टूबर 2021 में कुलगाम जिले के एक गांव में आतंकवादियों ने जिन पांच श्रमिकों की गोली मार कर हत्या कर दी थी वो सभी पश्चिम बंगाल के रहने वाले थे.

अच्छी कमाई

माना जाता है कि कश्मीर में मजदूर अपने मूल राज्यों के मुकाबले कमा भी ज्यादा पाते हैं. उदाहरण के तौर पर मिस्त्री का काम करने वाला कोई व्यक्ति बिहार में एक दिन में 550 से 600 रुपये कमा सकता है, जबकि उसी व्यक्ति को इसी काम के लिए कश्मीर के कुछ हिस्सों में एक दिन में 1000 से 1200 रुपये तक मिल सकते हैं.

इसी वजह से हर साल 1.5 लाख से दो लाख मजदूर काम की तलाश में दूसरे राज्यों से कश्मीर जाते हैं. कश्मीर में भी बेरोजगारी दर काफी ज्यादा है (सीमीआई के मुताबिक 17 प्रतिशत), लेकिन प्रवासी श्रमिकों को रोजगार के मौके मिल ही जाते हैं. एक रिपोर्ट के मुताबिक पूरे कश्मीर में करीब 10 लाख प्रवासी मजदूर काम करते हैं.

इनमें से कई तो दशकों से कश्मीर में हैं और वहीं बस गए हैं. यहां तक कि 1980 और 1990 के दशकों में जब मिलिटेंसी चरम पर थी, कई प्रवासी मजदूर उस दौरान भी कश्मीर में टिके रहे. 2021 में इस चलन को झटका लगा था जब अचानक आतंकवादियों द्वारा प्रवासियों को निशाना बनाने की घटनाएं बढ़ गई थीं.

उस समय कई प्रवासी मजदूर कश्मीर छोड़ कर अपने अपने राज्य वापस लौटे गए थे. लेकिन अब फिर से खतरे के बावजूद काम की तलाश में प्रवासी श्रमिकों ने कश्मीर जाना शुरू कर दिया है. देखना होगा आने वाले महीनों में हालात क्या मोड़ लेते हैं.


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