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राष्ट्रीय संग्रहालय के स्थापना दिवस पर लगी चित्रम वस्त्रम प्रदर्शनी

राष्ट्रीय संग्रहालय के स्थापना दिवस पर दिल्ली के दास्तानगो सैयद साहिल आगा का अंगरखा राष्ट्रीय संग्रहालय में लगी 'चित्रम वस्त्रम प्रदर्शनी' का हिस्सा बना

राष्ट्रीय संग्रहालय के स्थापना दिवस पर लगी चित्रम वस्त्रम प्रदर्शनी
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नई दिल्ली। राष्ट्रीय संग्रहालय के स्थापना दिवस पर दिल्ली के दास्तानगो सैयद साहिल आगा का अंगरखा राष्ट्रीय संग्रहालय में लगी 'चित्रम वस्त्रम प्रदर्शनी' का हिस्सा बना। इसे पहनकर साहिल ने देश और विदेश में बहुत सारी दास्तानें सुनाईं। साहिल का यह अंगरखा राष्ट्रीय संग्रहालय के चित्रम वस्त्रम प्रदर्शनी का हिस्सा बना। साहिल ने आईएएनएस से बातचीत में कहा कि दास्तानगोइ तेरहवीं सदी की एक विलुप्त हो चुकी भारतीय लोक कला है, जिसमें कलाकार कहानियां सुनाता है। इसलिए दास्तानगो इस पुरानी वेशभूषा को पहनते हैं, ताकि वह भारत की संस्कृति, सभ्यता और धरोहर को संयोजित कर दर्शकों के सामने प्रस्तुत कर सकें और दर्शक गुजरे हुए इतिहास के आईने में भविष्य को देख सकें।

इस वेशभूषा के चित्र इतिहास की पांडुलिपियों में भी मिलते हैं। भारत में दास्तानगोई के जनक हजरत अमीर खुसरो सूफी के जमाने में बनी पांडुलिपियों और चित्रों में यह वेशभूषा साफ नजर आती है, जिसे गुजरे हुए 800 साल हो गए।

साहिल ने आगे बताया, "यह मौका ना सिर्फ राष्ट्रीय संग्रहालय के लिए, बल्कि पूरे भारतवर्ष के लिए गौरव का क्षण है, क्योंकि भुला दिया इतिहास एक बार फिर जीवित कर दर्शकों के सामने प्रदर्शित किया गया है।"

रूस की रहने वाली कात्या ने आईएएनएस से कहा कि राष्ट्रीय संग्रहालय और इसमें लगी प्रदर्शनी बहुत शानदार है। उन्होंने कहा, "मेरा परिवार भारतीय परंपरागत हैंडलूम को पसंद करता है। इस म्यूजियम में आकर मैंने पुरानी पांडुलिपियों को देखा और पाया कि लगभग 800 साल पुरानी पांडुलिपियां हैं और इन पांडुलिपियों में जो भी चित्र और कला छपी हुई है, वह आज भी भारतीय वस्त्रों और परिधानों पर उसकी छाप साफ दिखाई देती है। भारत की हर चीज अपने आप में सबसे अलग है। मुझे भारत बहुत अच्छा लगता है। राष्ट्रीय संग्रहालय को देखकर मुझे बहुत खुशी हुई। राष्ट्रीय संग्रहालय वाकई बहुत शानदार है।"


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