चीन के इरादे
चीन की सत्ता लगातार तीसरी बार संभालने वाले शी जिनपिंग ने अब एक बड़ा ऐलान किया है

चीन की सत्ता लगातार तीसरी बार संभालने वाले शी जिनपिंग ने अब एक बड़ा ऐलान किया है। उन्होंने कहा है कि वे अपने देश की सेना को 'ग्रेट वॉल ऑफ स्टील' में तब्दील करना चाहते हैं। चीनी राष्ट्रपति के मुताबिक चीन अपनी संप्रभुता और दुनिया में विकास से जुड़े अपने हितों के लिए सेना को बेहद मजबूत बनाना चाहता है। इन बातों के मायने काफी गहरे हैं। चीन वीटो शक्तिसंपन्न देश है, दुनिया की बड़ी आर्थिक, सैन्य और सामरिक ताकत रखता है।
अमेरिका जैसी महाशक्ति से सीधे भिड़ने का दुस्साहस चीन करता है। अभी पिछले दिनों सऊदी अरब और ईऱान के बीच चीन की मध्यस्थता के कारण फिर से राजनयिक संबंध बहाल हुए हैं। दोनों ही देश एक-दूसरे की जमीन पर अपने दूतावास एक-दो महीने के भीतर खोलेंगे। सात साल पहले सऊदी अरब और ईरान के बीच राजनयिक संबंध टूट गए थे, दोनों देशों के बीच रिश्ते तल्ख थे। लेकिन अब चीन की दखलंदाजी के बाद मध्यपूर्व के ये दोनों देश फिर से रिश्ते जोड़ने पर राजी हुए हैं। यह घटना वैश्विक राजनीति में चीन के बढ़ते दबदबे का संकेत है।
कयास ये भी लग रहे हैं कि अब शी जिनपिंग रूस और यूक्रेन के बीच भी युद्धविराम के लिए पहल कर सकते हैं। हो सकता है अगले सप्ताह वे रूस के राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन से भेंट करे। अगर चीन के कहने से रूस और यूक्रेन युद्ध रोककर समझौता करते हैं, तो यह बड़ी राहत की बात होगी। लेकिन फिर चीन का प्रभाव और बढ़ जाएगा। क्योंकि अमेरिका और यूरोप के बाकी देश तो युद्ध रोकने की जगह हथियारों की आपूर्ति में लगे हुए हैं। यह उनके लिए मुनाफा कमाने का अवसर है। और भारत की इसमें अहम भूमिका शांति स्थापना में हो सकती है, लेकिन यहां लोग इसी बात से खुश हैं कि हमारे प्रधानमंत्री ने रूस के राष्ट्रपति से युद्ध रोकने की बात कही है।
इस बात का कितना असर हुआ, इसका आकलन जरूरी नहीं है। जरूरी यह है कि माहौल बन गया। यही माहौल लाल आंखें वाले बयान से भी बना था। जबकि उसका कोई प्रभाव चीन की अतिक्रमणकारी नीति पर नहीं पड़ा। सीमा पर अब भी भारतीय सैनिकों को निगाह रखनी पड़ रही है कि चीन किसी बहाने से घुसपैठ न करे। प्रधानमंत्री मोदी ने अब तक चीन का नाम लेकर सीधे उसे अपनी हदों में रहने नहीं कहा है। और विदेश मंत्री एस.जयशंकर तो एक कदम आगे बढ़कर सामान्य समझ की बात कर रहे हैं कि चीन हमसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, इसलिए हम उससे न भिड़ें, इसी में अक्लमंदी है।
अब चीन अपनी सेना को और मजबूत बनाने की बात कह रहा है, तो उसके इरादे क्या हैं, क्या इसकी पड़ताल भी भारत सरकार इसी डर से नहीं करेगी कि चीन हमसे ताकतवर हुआ तो हम क्या करेंगे। पिछले सप्ताह चीन की संसद सत्र के समापन के दौरान शी जिनपिंग ने 3 हजार सांसदों की मौजूदगी में कहा कि चीन ग्लोबल गवर्नेंस सिस्टम यानी वैश्विक प्रशासनिक व्यवस्था में सुधार और विकास में सक्रिय भूमिका निभाएगा। माओ त्से तुंग के बाद जिनपिंग तीसरी बार चीन के सर्वोच्च पद पर काबिज हुए हैं। पिछले साल अक्टूबर में तीसरी बार शी जिनपिंग को चीनी कम्युनिस्ट पार्टी का प्रमुख चुना गया था और अब पांच साल के लिए तीसरी बार राष्ट्रपति बनने के साथ-साथ वे सेंट्रल मिलिट्री कमेटी के प्रमुख के तौर पर भी चुने गए हैं, यानी सेना की कमान भी अब उनके ही हाथों में होगी।
चीन ने लगातार आठवें साल अपने रक्षा बजट में बढ़ोत्तरी करते हुए इस बार 7.2 प्रतिशत रक्षा बजट बढ़ा दिया है। अब चीन का रक्षा बजट 225 अरब डॉलर यानी 18 लाख करोड़ रुपयों से ज्यादा का है। जबकि भारत के अमृतकाल का रक्षा बजट 5.94 लाख करोड़ रुपए है। चीन ने केवल रक्षा बजट ही नहीं बढ़ाया, वह हथियार तैयार करने में भी दुनिया में चौथे नंबर का देश है, उससे ऊपर अमेरिका, रूस और फ्रांस हैं। अमेरिका और फ्रांस का पक्ष एक है, और रूस, चीन एक साथ हैं। चीन ने रूस से काफी हथियार पहले खरीदे हैं। स्टॉकहोम इंटरनैशनल पीस रिसर्च इंस्टिट्यूट की रिपोर्ट के मुताबिक 2016 से 2021 तक चीन ने जितना हथियार आयात किया था, उसका 81 प्रतिशत रूस से आया था। और संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के मुताबिक, रूस को जिस तरह की तोपों के गोलों की जरूरत है, उसकी आपूर्ति चीन से हो सकती है।
चीन ने 2023 में शोध और विकास कार्यों के लिए भी दो प्रतिशत बजट बढ़ाया है। अब इस पर 47 अरब डॉलर खर्च किए जाएंगे। यानी हथियारों की शक्ति के साथ आविष्कारों और विकास की शक्ति भी चीन बढ़ाएगा। चीन ने कहा है कि वह अपने विकास में न सिर्फअंतरराष्ट्रीय बाजार और संसाधनों की मदद लेगा बल्कि वह पूरी दुनिया के विकास में इनका इस्तेमाल करेगा। इसे दूसरे तरीके से पढ़ें तो समझ आएगा कि चीन दुनिया के उन देशों को अपने प्रभाव में लेगा, जो कम विकसित हैं, जिन्हें संसाधनों की जरूरत है, जो आगे बढ़ने के लिए किसी सहारे की तलाश में रहते हैं। चीन ने किस तरह श्रीलंका, पाकिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश जैसे भारत के पड़ोसी देशों में अपने पैर व्यापार और विकास के बहाने पसारे हैं, यह सब जानते हैं। अब यही काम चीन और व्यापक स्तर पर करने की रणनीति बना रहा है। इससे अमेरिका जैसे उसके प्रतिद्वंद्वी देश किस तरह निपटेंगे, यह देखने वाली बात होगी। फिलहाल ज्यादा जरूरी ये जानना है कि भारत सरकार का इस बारे में क्या रुख रहता है।
मोदी सरकार को यह तो याद होगा ही कि द ग्रेट वॉल ऑफ चाइना यानी 20 हजार किमी लंबी चीन की दीवार का निर्माण बाहरी आक्रमणकारियों को रोकने के लिए चीन के शासकों ने किया था। अब चीन के मौजूदा शासक सेना को इस्पात की दीवार की तरह बनाने का इरादा रख रहे हैं। भारत इस दीवार के मुकाबले अपना रक्षा कवच कैसे मजबूत करेगा, यह विचार कर लेना चाहिए।


