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बढ़ते तनाव के बीच चीन और ताइवान में टकराव की नौबत?

चीन ताइवान को अपने भूगोल का हिस्सा मानता है और लोकतांत्रिक द्वीप को मुख्य भूभाग यानी खुद से जोड़ने पर आमादा है.

बढ़ते तनाव के बीच चीन और ताइवान में टकराव की नौबत?
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चीन और ताइवान के बीच तनाव हाल के वर्षों मे तीखा होता रहा है, और इसकी वजह है द्वीप के दर्जे को लेकर मतभेद. चीन इलाके पर अपनी संप्रभुता का दावा करता है और उसने संकल्प लिया है कि वो उसे चीनी मुख्य भूभाग से "जोड़" कर के रहेगा- जरूरत पड़ी तो जबरन भी. ताइवान पर संभावित सैन्य टकराव, अमेरिका को भी विवाद में खींच ला सकता है. उसके ताइवान के साथ विशेष संबंध हैं. यहां देखते हैं कि ये पूरा माजरा है क्या.

ये सब शुरू कैसे हुआ था?

चीन और ताइवान 1949 से ही अलग अलग हैं, तब माओत्से तुंग की अगुवाई में कम्युनिस्टों की जीत के साथ चीनी गृहयुद्ध का अंत हुआ था. माओ के धुर विरोधी और कुमिन्तांग पार्टी के प्रमुख शियांग काई-शेक की अगुवाई में पराजित राष्ट्रवादी, ताइवान लौट गए.

ताइवान तब से स्वतंत्र रूप से शासित रहा है. उसे आधिकारिक रूप से रिपब्लिक ऑफ चाइना कहा जाता है जबकि मुख्य भूभाग को पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना कहा जाता है.

ताइवानी जलडमरूमध्य यानी दो समुद्रों को जोड़ने वाले पानी के संकरे गलियारे से द्वीप अलग होता है. इस द्वीप पर लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार का शासन है और यहां करीब दो करोड़ 30 लाख लोग रहते हैं.

सात दशक से भी ज्यादा समय से चीन ताइवान को एक विश्वासघाती सूबे की तरह देखता है और उसे चीनी मुख्य भूभाग से "जोड़ने" की कसमें खाता है.

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ताइवान का अंतरराष्ट्रीय दर्जा क्या है?

चीन का नजरिया यह है कि भूगोल पर सिर्फ "एक चीन" है और ताइवान उसका हिस्सा है. चीन दुनिया भर के देशों को अपनी ओर रखने और ताइवान से कूटनीतिक संबंध तोड़ने के लिए दबाव डालता है.

फिलहाल सिर्फ 14 देशों ने ताइवान के साथ अपने आधिकारिक कूटनीतिक रिश्ते बनाए रखे हैं.

ताइवान संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियों में सदस्य भी नहीं है, हालांकि एशियन डेवलेपमेंट बैंक और विश्व व्यापार संगठन जैसी संस्थाओं की सदस्यता उसके पास है.

चीन दुनिया भर की कंपनियो पर भी दबाव डालता है कि वे ताइवान को चीन के हिस्से के रूप में सूचीबद्ध करें.

जो सरकारें और कंपनियां चीन के कहने पर नहीं आती, उन्हें चीन सरकार से पलटवार का जोखिम रहता है.

मिसाल के लिए 2021 में चीन ने यूरोपीय संघ के सदस्य देश लिथुआनिया से व्यापार संबंध तोड़ लिए क्योंकि उसने अपने यहां ताइवानी प्रतिनिधि का दफ्तर खोला था.

चीन के साथ अमेरिकी रिश्ता क्या है?

चीन की सत्ता पर कम्युनिस्टों के काबिज होने के करीब तीन दशकों तक अमेरिका, ताइवान को पूरे चीनी भूभाग की सरकार के तौर पर मान्यता देता रहा था.

लेकिन 1979 में अमेरिका ने ताइवान के साथ अपने कूटनीतिक रिश्ते और पारस्परिक रक्षा संधि रद्द कर दी और मेनलैंड चाइना के साथ औपचारिक कूटनीतिक रिश्ते स्थापित कर लिए.

इस बदलाव के बावजूद अमेरिका ने ताइवान के साथ नजदीकी अनौपचारिक रिश्ते बनाए रखे हैं.

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वह ताइवान को आत्म सुरक्षा के लिए सैन्य साजोसामान देता रहता है. हालांकि चीन बार बार उसे ऐसा ना करने को कहता रहा है. अमेरिकी नौसेना के जंगी जहाज इलाके में अमेरिकी सैन्य शक्ति की हिफाजत के लिए ताइवानी समुद्र पर नियमित रूप से आवाजाही करते हैं.

अमेरिका कहता है कि उसका लक्ष्य, इलाके में शांति और स्थिरता कायम करने का है. इस नाते वह यथास्थिति बनाए रखने के पक्ष में रहता है.

पूर्व राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के कार्यकाल में अमेरिका ने ताइवान के साथ सैन्य रिश्ते मजबूत किए थे और हथियारों की खेप भी बढ़ाई थी. ताइवान को 18 अरब डॉलर से ज्यादा कीमत के हथियार बेचे गए थे.

राष्ट्रपति जो बाइडन ने कहा है कि अगर चीन ताइवान पर हमला करता है तो अमेरिका उसकी रक्षा करेगा.

क्या चीन ताइवान के मुद्दे पर युद्ध लड़ सकता है?

ताइवान के चीन में विलय को लेकर चीन ने बलप्रयोग से भी इंकार नहीं किया है. जनवरी 2019 में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने अपने एक अहम भाषण में पुनर्एकीकरण का आह्वान करते हुए कहा था कि यथास्थिति हमेशा के लिए बनी रह सकती.

उन्होंने कहा था, "हम लोगों ने बल प्रयोग नहीं करने का वादा नहीं किया है और सभी जरूरी कदम उठाने के अपने विकल्प को खुला रखा है."

चीनी राष्ट्रपति ने यह भी जोर देकर कहा कि 2049 तक देश का महाशक्ति का दर्जा बहाल कराने के "चीनी स्वप्न" को हकीकत बनाने के लिए भी, यह पुनर्एकीकरण अनिवार्य है.

यह भी पढ़ेंः ताइवान की आजादी को रोकने के लिए अंत तक लड़ेगा चीन

अपने लड़ाकू विमानों, बमवर्षकों और टोही विमानों को ताइवान के करीब उड़ाने का सिलसिला चीन ने तेज कर दिया है. अपनी ताकत का प्रदर्शन करते हुए ताइवानी जलडमरूमध्य के रास्ते भी चीन जंगी जहाज भेज रहा है.

बलप्रयोग की चीन की अभिलाषा और उसकी तेजी से व्यापक होती सैन्य क्षमताओं और चीन ताइवान संबंधों में चौड़ी होती दरार से टकराव भड़कने का अंदेश गहरा गया है.

दोनों पक्षों के बीच रिश्तों का ताजा सूरतेहाल क्या है?

ताइवान में 2016 में साई इंग-वेन के राष्ट्रपति पद के लिए चुने जाने के बाद से तनाव बढ़ा है. साई की अगुवाई में ताइवान की आजादी के औपचारिक ऐलान के आंदोलन ने गति पकड़ी है.

राष्ट्रपति की डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी द्वीप की आजादी के पक्ष में है. साई 1992 के समझौते के अस्तित्व पर भी सवाल उठाते रहे हैं. वह ताइवान और चीन के प्रतिनिधियों के बीच आपसी रिश्तों की प्रकृति के बारे में एक राजनीतिक समझौता था. दोनों पक्ष सहमत थे कि केवल "एक चीन" है हालांकि उससे दोनों के आशय अलग अलग ही थे.

साई और उनकी पार्टी ने रक्षा खर्च भी बढ़ा दिया है. 2022 में 17 अरब डॉलर का रिकॉर्ड बजट, रक्षा के लिए रखा गया है.

मंगलवार को ताइवानी राष्ट्रपति अपने छह साल के कार्यकाल में दूसरी बार नौसेना के एक लड़ाकू जहाज पर सवार हुईं. उन्होंने द्वीप की रक्षा के सेना के दृढ़ संकल्प की जमकर प्रशंसा की और नौसेना और वायु सेना के सालान सबसे बड़े अभ्यास भी देखे.

आक्रमणकारी शक्ति के खिलाफ जवाबी कार्रवाई का प्रदर्शन दिखाता हुआ ये अभ्यास, संभावित युद्ध की तैयारियों में जान फूंकने की कोशिशों का हिस्सा है. समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता चाओ लीयन से जब इन अभ्यासों के बारे में पूछा गया तो उन्होंने ताइवान की संभावित सैन्य हरकतों पर चीनी चेतावनी को दोहरा दिया.

उन्होंने कहा, "चीनी सेना से मुकाबले का ताइवानी प्रयास वैसा ही है जैसा कोई कीड़ा रथ को रोकने की कोशिश करे. अंत में उसे नष्ट ही होना है."


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