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जिंदगी में जहर घोलने वालों को नहीं बच्चों-किशोरों की फिक्र

ऊर्जा की नगरी में बच्चों का बचपन और किशोरों की ऊर्जा नशा की गर्त में बड़ी तेजी से जा रही है

जिंदगी में जहर घोलने वालों को नहीं बच्चों-किशोरों की फिक्र
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नशे का सामान बेच रहे दुकानदारों पर नकेल नहीं
कोरबा। ऊर्जा की नगरी में बच्चों का बचपन और किशोरों की ऊर्जा नशा की गर्त में बड़ी तेजी से जा रही है। स्लम बस्तियों के बच्चों की जिंदगी में नशा का जहर घुल रहा है तो इन्हें नशा का सामान बेचने वाले कतिपय दुकानदारों को भी इन पर तरस नहीं आ रहा। सड़कों, गलियों, मोहल्लों मेें ऐसे बच्चे और किशोर नशा की गिरफ्त में सहज ही देखे जा सकते हैं जिनका समय रहते उपचार न हुआ तो इनका भविष्य संकट में पड़ जाएगा। नशा का सामान बेचने वाले दुकानदारों पर भी नकेल कस पाने में खास कामयाबी नहीं मिली है।

बढ़ती बेरोजगारी, शिक्षा का आभाव, माता-पिता के द्वारा अपनी रोजी-मजदूरी की तलाश में बड़े होते बच्चों की देख-रेख में कमी, तनाव, अवसाद और इस तरह के कई कारण नशा की ओर युवा होती पीढ़ी को धकेल रहे हैं। इन दिनों सर्वाधिक तौर पर सुलेशन फेविकोल एसआर 505, हुक्का, एम्पुल, शिव लहरी का नशा करने वालों की तादाद बढ़ रही है।

शराब, गांजा तो आम हो चुका है। मैले-कुचैले कपड़े पहने कबाड़ और कचरे से अपनी जरूरत का सामान तलाशते बच्चों और किशोरों को सुबह से देर शाम तक नशा का सामान खरीदने के लिए जुगाड़ करते देखा जा सकता है। आश्चर्य की बात यह है कि दुकानदारों के द्वारा उपयोग की वस्तुओं को दुरूपयोग करने वालों की पहचान अपने चंद लाभ के नहीं की जाती बल्कि जिसे पाया उसे बिक्री कर देते हैं। दुकानदारों को चाहिए कि वे सुलेशन, फेविकोल एसआर जैसे नशा में उपयोग होने वाले सामान की बिक्री में सावधानी बरतें ताकि गलत हाथों में यह न जाने पाये।

हुक्का पीने का बढ़ने लगा है चलन
नशा के सामान में हुक्का भी शामिल हुआ है। शहर से लगे बस्तियों में बच्चे प्लास्टिक की बोतलों से हुक्का बनाकर, तम्बाकू डाल कर पीते हैं। वर्षों पहले नशा के लिए बदनामशुदा निहारिका से लेकर बालको जाने वाले मार्ग के बीच बसी भीतरी बस्तियों में एक बार फिर एम्पुल का नशा सिर उठाने लगा है। नशा के पुराने सौदागर लुक-छिप कर अपना कारोबार फिर से करने लगे हैं। सरकारी दुकानों से शराब खरीद कर तड़के 4 बजे से बेची जा रही है जिसकी लत बच्चों में भी लगने लगी है। बालको से लगे इलाके में कच्ची महुआ शराब के अलावा चावल को सड़ाकर बनाए जाने वाली रासी (कोसना)की भी बिक्री धड़ल्ले से हो रही है।

तम्बाकू सामान भी थमाते हैं बच्चों को
नियमत: 18 वर्ष से कम उम्र के लोगों खासकर बच्चों को तम्बाकू निर्मित उत्पाद बेचे जाने पर प्रतिबंध है। इसके बावजूद दुकानों, पान ठेलों व अन्य दुकान जहां तम्बाकू उत्पादों की बिक्री होती है, के द्वारा छोटे बच्चोंं को भी सामान बेचे जाते हैं। कुछ हद तक अभिभावक भी गलती करते हैं जो अपने बच्चों को भेज कर इस तरह के सामान मंगाते हैं।

अभिभावकों को इनका सेवन करता देख बच्चों में भी जिज्ञासा उत्पन्न होती है और फिर वे इसे अपनी आदत में शुमार कर लेते हैं। स्कूलों, कॉलेजों के आसपास ठेला, खोमचा में स्कूली बच्चे नशा करते देखे जा सकते हैं जो अपनी जिंदगी धुंए में उड़ा रहे हैं।

जागरूकता के साथ सोच भी जरूरी
नशा में प्रयुक्त होने वाले सामान गलत हाथों में न जाएं और नशा से बच्चों, किशोरों को किस तरह से दूर रखा जाए इसके लिए जागरूकता के साथ सकारात्मक सोच भी जरूरी है। समाज में एक वैचारिक परिवर्तन की आवश्यकता है। पुलिस, प्रशासन, बच्चों के लिए काम करने वाली संस्थाओं, गणमान्यजनों, व्यापारियों को मिलकर एक समन्वित कार्ययोजना बनाने की जरूरत है ताकि नशा की गर्त में समाते जा रहे भविष्य को सुरक्षित और संरक्षित किया जा सके।

जिला चेम्बर ऑफ कामर्स के अध्यक्ष रामसिंह अग्रवाल ने जिले के समस्त व्यापारियों से अपील की है कि वे इस तरह के सामानों की बिक्री के दौरान सावधानी बरतें। कोशिश रहे की गलत हाथों में इस तरह के सामान न जाने पाएं बल्कि अपने आसपास यदि किसी बच्चे को नशा करते देखें तो तत्काल इसकी सूचना पुलिस, चाईल्ड लाईन 1098 को दें।


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